उस समय के पत्रकार कुलदीप नैयर के मुताबिक, उस वक्त बिरला हाउस में जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद और अंग्रेज अफसर लॉर्ड माउंटबेटन मौजूद थे। सभी के चेहरे पर मायूसी बिखरी हुई थी। बाद में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने बिरला हाउस के बाहर मौजूद भीड़ को बताया कि गांधीजी अब इस दुनिया में नहीं हैं।
गांधीजी की हत्या के जुर्म में नाथूराम गोडसे को पकड़ लिया गया और अदालत में पेश किया गया। न्यायाधीश आत्मचरण की अदालत ने गोडसे को फांसी की सजा सुनाई। गोडसे ने भी अदालत में ये स्वीकार किया कि उन्होंने ही गांधीजी को मारा है। अपना पक्ष रखते हुए गोडसे ने अदालत को बताया कि गांधीजी ने जो देश की सेवा की है, उसका मैं आदर करता हूं और इसीलिए उनपर गोली चलाने से पहले मैं उनके सम्मान में झुका भी था, लेकिन चूंकि उन्होंने अखंड भारत के दो टुकड़े कराए, इसीलिए मैंने गांधीजी को गोली मारी।
15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में नाथूराम गोडसे को फांसी दे दी गई। फांसी से पहले गोडसे के एक हाथ में गीता और अखंड भारत का नक्शा था और दूसरे हाथ में भगवा झंडा था। कहा जाता है कि फांसी का फंदा पहनाए जाने से पहले गोडसे ने ‘नमस्ते सदा वत्सले’ का उच्चारण किया था और साथ ही नारे भी लगाए थे।
आपको जानकर हैरानी होगी कि गोडसे की अस्थियां आज तक नदी में प्रवाहित नहीं की गई हैं बल्कि पुणे के शिवाजी नगर इलाके में स्थित इस इमारत के कमरे में सुरक्षित रखी हुई हैं। उस कमरे में गोडसे के अस्थि कलश के अलावा उनके कुछ कपड़े और हाथ से लिखे नोट्स भी संभालकर रखे गए हैं।
नाथूराम गोडसे की भतीजी हिमानी सावरकर ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि गोडसे का शव भी उन्हें नहीं दिया गया था बल्कि फांसी के बाद सरकार ने खुद घग्घर नदी के किनारे उनका अंतिम संस्कार किया था। इसके बाद उनकी अस्थियां हमें एक डिब्बे में भरकर दे दी गई थीं। चूंकि गोडसे की एक अंतिम इच्छा थी, इसलिए उनके परिवार ने आज तक उनकी अस्थियों को नदी में नहीं बहाया है बल्कि वो एक चांदी के कलश में सुरक्षित रखी हुई है।
हिमानी सावरकर के मुताबिक, नाथूराम गोडसे ने अपनी अंतिम इच्छा के तौर पर अपने परिवार वालों से कहा था कि उनकी अस्थियों को तब तक संभाल कर रखा जाए और जब तक सिंधु नदी स्वतंत्र भारत में समाहित न हो जाए और फिर से अखंड भारत का निर्माण न हो जाए। ये सपना पूरा हो जाने के बाद मेरी अस्थियों को सिंधु नदी में प्रवाहित कर दी जाए। बस यही वजह है कि गोडसे के परिवार ने आज तक उनकी अस्थियों को संभाल कर रखा है।