पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने पाकिस्तान सरकार और खुफिया एजेंसी के खराब ट्रैक रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि नागरिकों के फोन कॉल को ट्रेस करने का इस्तेमाल उन्हें डराने, धमकाने, ब्लैकमेल करने, उत्पीड़न में किया जा सकता है।
पाकिस्तान सरकार ने खुफिया एजेंसी आईएसआई को अपने नागरिकों के फोन कॉल को ट्रेस करने का अधिकार दिया। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ सरकार के इस फैसले पर एक मानवाधिकार संगठन ने आलोचना की। राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने एक बयान जारी किया। उन्होंने पाकिस्तान सरकार के इस फैसले को संवैधानिक रूप से संरक्षित कुछ अधिकारों का उल्लंघन बताया।
अपने बयान में पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने कहा, “हम सरकार द्वारा हाल ही में जारी की गई असंवैधानिक अधिसूचना से बहुत चिंतित हैं। सरकार ने खुफिया एजेंसियों को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के हित में किसी भी नागरिक के फोन कॉल को ट्रेस करने का अधिकार दिया है।
इसे संविधानिक रूप से संरक्षित कुछ अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए आयोग ने कहा, “यह अधिसूचना अनुच्छेद 9, 14 और 19 के तहत नागरिकों की स्वतंत्रता, गरिमा और गोपनीयता के संवैधानिक रूप से संरक्षित अधिकारों का घोर उल्लंघन है। यह पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो मामले में शीर्ष अदालत के फैसले की भावना का भी उल्लंघन है।”
क्या था बेनजीर भुट्टो बनाम पाकिस्तान राष्ट्रपति का मामला
बता दें कि बेनजीर भुट्टो बनाम पाकिस्तान राष्ट्रपति 1996-97 तक निजता के अधिकार से संबंधित एक प्रमुख मामला था। इस मामले के अनुसार, पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 14 द्वारा निजता के अधिकार के संदर्भ में टेलीफोन टैपिंग और ईव्सड्रॉपिंग के इस्तेमाल पर फैसला सुनाया था। पांच नवंबर 1996 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति फारूक लेघारी ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया और बेनजीर बुट्टो को प्रधानमंत्री के पद से हटा दिया।
इसके साथ ही उन्होंने पीएम बेनजीर भुट्टो द्वारा निजता के अधिकार के उल्लंघन के आधार पर कैबिनेट को भंग करने और फरवरी 1997 में राष्ट्रीय असेंबली के लिए आम चुनाव कराने का भी आदेश दिया। दरअसल बेनजीर भुट्टो ने शीर्ष अदालत के जजों, राजनीतिक पार्टियों के नेताओं, उच्च स्तरीय सैन्य अधिकारियों और नागरिक अधिकारियों के फोन टैपिंग का आदेश दिया था।
इसके जवाब में 11 और 13 नवंबर 1996 में सैयद यूसुफ रजा गिलानी और बेनजीर भुट्टो ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अनुच्छेद 9, 14 और 17 के की सुरक्षा की मांग करते हुए एक संवैधानिक याचिका दायर की थी। इस याचिका में उन्होंने राष्ट्रपति द्वारा की गई कार्रवाई को अवैध बताया। इस मामले के फैसले के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने बताया कि संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत ‘लोगों की गरिमा’ और ‘घर की गोपनीयता’ का उल्लंघन नहीं किया जा सकता।
अदालत के फैसले में बताया गया कि किसी भी व्यक्ति की गोपनीयता केवल उसके घर या कार्यालय तक ही सीमित नहीं होती, बल्कि सार्वजनिक स्थानों पर भी होती है। इसी के साथ अदालत ने 6:1 के बहुमत से राष्ट्रपति के फैसले को बरकरार रखा था।
पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने पाकिस्तान सरकार और खुफिया एजेंसी के खराब ट्रैक रिकॉर्ड का हवाला देते हुए कहा कि नागरिकों के फोन कॉल को ट्रेस करने का इस्तेमाल उन्हें डराने, धमकाने, ब्लैकमेल करने, उत्पीड़न में किया जाएगा।