भारत में सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने वैसे तो कई युद्ध लड़े और जीते भी। उनके युद्ध कौशल और बहादुरी के आगे मुगल तक नहीं टिक पाते थे। कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिए एक सैनिक के रूप में काम किया था। हालांकि, कुछ साल बाद उन्होंने सूरी वंश की संस्थापना की। सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को भी परास्त किया था। जिस वजह से मुगल बादशाह हुमायूं को भारत छोड़ने के लिए मजबूर तक होना पड़ा था। आइये जानते हैं शेरशाह सूरी के अंत की कहानी, जो अधमरी हालत में भी अपने सेना में जोश भरते रहे थे
पंजाब के होशियारपुर में पैदा हुए थे सूरी
दरअसल, शेरशाह सूरी का जन्म 1486 को पंजाब के होशियारपुर शहर में बजवाड़ा नामक स्थान पर हुआ था। उनका असली नाम फरीद खां था। उनके दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल क्षेत्र में एक जागीरदार थे जो उस समय के दिल्ली के शासकों का प्रतिनिधित्व करते थे। शेरशाह को बचपन के दिनो में सौतेली मां बहुत सताती थी, जिस वजह से उन्होंने घर छोड़ कर जौनपुर में पढ़ाई की।
शेरशाह सूरी | |
जन्म | 1486 (होशियारपुर, बजवाड़ा) |
पिता | मियभारत में सूरी वंश के संस्थापक शेरशाह सूरी ने वैसे तो कई युद्ध लड़े और जीते भी। उनके युद्ध कौशल और बहादुरी के आगे मुगल तक नहीं टिक पाते थे। कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने पहले बाबर के लिए एक सैनिक के रूप में काम किया था। हालांकि, कुछ साल बाद उन्होंने सूरी वंश की संस्थापना की। सूरी ने बाबर के बेटे हुमायूं को भी परास्त किया था। जिस वजह से मुगल बादशाह हुमायूं को भारत छोड़ने के लिए मजबूर तक होना पड़ा था। आइये जानते हैं शेरशाह सूरी के अंत की कहानी, जो अधमरी हालत में भी अपने सेना में जोश भरते रहे थे। पंजाब के होशियारपुर में पैदा हुए थे सूरी दरअसल, शेरशाह सूरी का जन्म 1486 को पंजाब के होशियारपुर शहर में बजवाड़ा नामक स्थान पर हुआ था। उनका असली नाम फरीद खां था। उनके दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल क्षेत्र में एक जागीरदार थे जो उस समय के दिल्ली के शासकों का प्रतिनिधित्व करते थे। शेरशाह को बचपन के दिनो में सौतेली मां बहुत सताती थी, जिस वजह से उन्होंने घर छोड़ कर जौनपुर में पढ़ाई की। शेरशाह सूरी जन्म 1486 (होशियारपुर, बजवाड़ा) पिता मियन हसन खान सूर धर्म इस्लाम 1527-1528 शेरशाह ने किया बाबर की सेना में काम 1539 हुमायूं को चौसा के युद्ध में किया परास्त मई 1545 शेरशाह सूरी का निधन फरीद खां ऐसे बनें शेरशाह सूरी वैसे तो शेरशाह सूरी के नाम पड़ने को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन यह भी कहा जाता है कि कम उम्र में ही उन्होंने अकेले एक शेर का शिकार किया था। इसके बाद उनका नाम शेरशाह पड़ा। हालांकि, सूरी नाम उनके गृहनगर ‘सुर’ से लिया गया था। जिसके बाद से ही उन्हें शेरशाह सूरी कहा जाने लगा। शेरशाह सूरी ने दी हुमायूं को शिकस्त शेरशाह सूरी ने शुरुआती दिनों में बाबर के लिए एक सैनिक के रूप में काम किया था। हालांकि, बाद में सूरी को सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। 1537 में जब मुगल बादशाह हुमायूं किसी अभियान पर थे तो शेरशाह ने बंगाल पर कब्जा कर सूरी वंश की स्थापना की। साल 1539 में शेरशाह ने चौसा की लड़ाई में हुमायूं को हरा दिया था। इसके बाद 1540 में उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। शेरशाह सूरी ने हुमायूं को शिकस्त देने के बाद उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया था। दर्दनाक भरी रही शेरशाह सूरी की मौत शेर शाह सूरी ने 22 मई 1545 में अपनी आखिरी सासें ली थी। उनकी मौत का कारण कालिंजर का दुर्ग बना था। कालिंजर का किला उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में मौजूद है। शेरशाह सूरी ने 1544 में चंदेल राजपूतों के खिलाफ लड़ते हुए कालिंजर किले की घेराबंदी की थी। इस दौरान सूरी के सेना ने कालिंजर को जीतने के लिए हर संभव प्रयास किए, लेकिन करीब 6 तक घेराबंदी करने के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिल पाई थी। हालांकि, जब उन्हें कोई रास्ता नहीं मिल पाया तो शेरशाह ने किले की दीवारों को उड़ाने की कोशिश की। इस दौरान जब उनकी सेना हमला किया तो एक गोला बारूद के ढेर में आकर गिर गया। यहीं शेरशाह सूरी भी खड़े थो जो बुरी तरह जख्मी हो गए। बिहार में स्थित है मकबरा हालांकि, घायल होने के बाद भी शेरशाह सूरी ने अपनी सेना की हौसला अफजाई जारी रखी। जिसके बाद शेरशाह सूरी की सेना ने कालिंजर के किले पर विजय हासिल की और शेरशाह ने किले पर कब्जा होने की खबर के बाद ही अपनी अंतिम सांस ली थी। बता दें कि शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम में है। यह मकबरा हिंदू-मुस्लिम स्थापत्य शैली के काम का बेजोड़ नमूना है। Edited By: Mohd Faisal |
धर्म | इस्लाम |
1527-1528 | शेरशाह ने किया बाबर की सेना में काम |
1539 | हुमायूं को चौसा के युद्ध में किया परास्त |
मई 1545 | शेरशाह सूरी का निधन |
फरीद खां ऐसे बनें शेरशाह सूरी
वैसे तो शेरशाह सूरी के नाम पड़ने को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन यह भी कहा जाता है कि कम उम्र में ही उन्होंने अकेले एक शेर का शिकार किया था। इसके बाद उनका नाम शेरशाह पड़ा। हालांकि, सूरी नाम उनके गृहनगर ‘सुर’ से लिया गया था। जिसके बाद से ही उन्हें शेरशाह सूरी कहा जाने लगा।
शेरशाह सूरी ने दी हुमायूं को शिकस्त
- शेरशाह सूरी ने शुरुआती दिनों में बाबर के लिए एक सैनिक के रूप में काम किया था।
- हालांकि, बाद में सूरी को सेनापति बनाया और फिर बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
- 1537 में जब मुगल बादशाह हुमायूं किसी अभियान पर थे तो शेरशाह ने बंगाल पर कब्जा कर सूरी वंश की स्थापना की।
- साल 1539 में शेरशाह ने चौसा की लड़ाई में हुमायूं को हरा दिया था। इसके बाद 1540 में उन्हें भारत छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा।
- शेरशाह सूरी ने हुमायूं को शिकस्त देने के बाद उत्तर भारत पर अपना साम्रज्य स्थापित कर दिया था।
दर्दनाक भरी रही शेरशाह सूरी की मौत
शेर शाह सूरी ने 22 मई 1545 में अपनी आखिरी सासें ली थी। उनकी मौत का कारण कालिंजर का दुर्ग बना था। कालिंजर का किला उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में मौजूद है। शेरशाह सूरी ने 1544 में चंदेल राजपूतों के खिलाफ लड़ते हुए कालिंजर किले की घेराबंदी की थी। इस दौरान सूरी के सेना ने कालिंजर को जीतने के लिए हर संभव प्रयास किए, लेकिन करीब 6 तक घेराबंदी करने के बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिल पाई थी। हालांकि, जब उन्हें कोई रास्ता नहीं मिल पाया तो शेरशाह ने किले की दीवारों को उड़ाने की कोशिश की। इस दौरान जब उनकी सेना हमला किया तो एक गोला बारूद के ढेर में आकर गिर गया। यहीं शेरशाह सूरी भी खड़े थो जो बुरी तरह जख्मी हो गए।
बिहार में स्थित है मकबरा
हालांकि, घायल होने के बाद भी शेरशाह सूरी ने अपनी सेना की हौसला अफजाई जारी रखी। जिसके बाद शेरशाह सूरी की सेना ने कालिंजर के किले पर विजय हासिल की और शेरशाह ने किले पर कब्जा होने की खबर के बाद ही अपनी अंतिम सांस ली थी। बता दें कि शेरशाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम में है। यह मकबरा हिंदू-मुस्लिम स्थापत्य शैली के काम का बेजोड़ नमूना है।