अर्थव्यवस्था में नरमी का देश में गरीबी उन्मूलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा: अभिजीत बनर्जी

नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी ने रविवार को कहा कि देश में बैंकिंग क्षेत्र दबाव में है और सरकार प्रोत्साहन पैकेज देकर इसे संकट से बाहर निकालने की स्थिति में नहीं है।

जयपुर साहित्य महोत्सव के दौरान संवाददाताओं से बातचीत में बनर्जी ने कहा कि वाहन क्षेत्र में मांग में नरमी से भी पता चलता है कि लोगों में अर्थव्यवस्था को लेकर भरोसे की कमी है।

उन्होंने कहा, ‘वित्तीय क्षेत्र फिलहाल सबसे बड़ा दबाव वाला केंद्र है। बैंक क्षेत्र दबाव में है और यह चिंता वाली बात है। वास्तव में सरकार प्रोत्साहन पैकेज देकर इसे संकट से उबार पाने की स्थिति में नहीं है…।’

बनर्जी ने कहा, ‘‘हम यह भी जानते हैं कि अर्थव्यवस्था में मांग में कमी के कारण कार और दोपहिया वाहनों की बिक्री नहीं हो रही। यह सब संकेत है कि लोगों को अर्थव्यवस्था में तीव्र वृद्धि होने के अनुमान पर भरोसा नहीं है। इसीलिए वे खर्च नहीं कर रहे हैं।’’

‘गुड इकोनॉमिक्स फॉर हार्ड टाइम’ के लेखक ने यह भी कहा कि अर्थव्यवस्था में नरमी का देश में गरीबी उन्मूलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि शहरी और गरीबी क्षेत्र आपस में जुड़े हैं।

उन्होंने कहा, ‘गरीबी उन्मूलन इस आधार पर होता है कि शहरी क्षेत्र कम कौशल वाला रोजगार सृजित करता है और गांवों के लोगों को शहरी क्षेत्र में ऐसे रोजगार मिलते हैं, जिससे पैसा वापस गांव में आता है।’

भारतीय-अमेरिकी अर्थशास्त्री ने कहा, ‘इस प्रकार से शहरी क्षेत्र से वृद्धि ग्रामीण क्षेत्र में जाती है, और जैसे ही शहरी क्षेत्र में नरमी आती है, गांवों पर असर पड़ता है। गांवों के लोगों को निर्माण क्षेत्र में रोजगार नहीं मिलता और इसका असर ग्रामीण क्षेत्र पर पड़ता है।’

यह पूछे जाने पर कि अगर लोगों का आंकड़ों को लेकर भरोसा नहीं है, आर्थिक नीतियां कैसे काम करेंगी, उन्होंने कहा, ‘सरकार को इस मुद्दे को लेकर चिंतित होना चाहिए। इससे विदेशी निवेशक भी परेशान हैं।’

बनर्जी ने कहा, ‘उन्हें नहीं पता कि वे कहां जा रहे हैं…मेरा मतलब है कि ये वास्तविक मसले हैं और सरकार को इस पर गौर करना चाहिए। यदि वह निवेश आकर्षित करने के साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था में शामिल होना चाहती है, तब लोगों को सही आंकड़ा उपलब्ध कराना जरूरी है।’

प्रख्यात अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी ने रविवार को कहा कि भारत को बेहतर विपक्ष की जरूरत है जो किसी भी लोकतंत्र का हृदय है और सत्तारूढ़ पार्टी को भी नियंत्रण में रहने के लिए इसे स्वीकार करना चाहिए।

‘जयपुर साहित्य महोत्सव’ के सत्र को संबोधित करते हुए 58 वर्षीय भारतीय अमेरिकी अर्थशास्त्री ने कहा कि अधिनायकवाद और आर्थिक सफलता में कोई संबंध नहीं है।

उन्होंने कहा, ‘आप आसानी से तर्क कर सकते हैं कि सिंगापुर में सफल तानाशाह था। जिम्बाब्वे की बात भी की जा सकती है। हम इस घृणा उत्पन्न करने वालों के बारे में बात कर सकते हैं…एक स्तर पर सत्ता भ्रम होता है।’

बनर्जी ने कहा, ‘भारत को बेहतर विपक्ष की जरूरत है। विपक्ष लोकतंत्र का दिल होता है और सत्तारूढ़ पार्टी को भी नियंत्रित करने के लिए अच्छे विपक्ष की जरूरत होती है।’

उल्लेखनीय है मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में नवोन्मेषी अर्थशास्त्री और उनकी पत्नी एस्थर डुफलो और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर माइकल क्रेमर को वैश्विक गरीबी उन्मूलन की खातिर प्रायोगिक तरीके अपनाने के लिए संयुक्त रूप से 2019 में अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

बनर्जी ने कहा, ‘गरीबी कैंसर की तरह है और इससे कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इससे कई बीमारियां होती हैं। कुछ लोग शिक्षा के मामले में गरीब हैं, कुछ सेहत से गरीब हैं और कुछ पूंजी के मामले में गरीब हैं। आपको पता लगाना है कि क्या कमी रह गई है। सभी का एक तरह से समाधान नहीं किया जा सकता।’

उन्होंने उस रूढ़िवादिता को भी चुनौती दी जिसके मुताबिक अगर गरीब लोगों को पैसा दिया गया तो वे उसका अपव्यय करेंगे एवं आलसी हो जाएंगे और फिर गरीबी की दलदल में फंस जाएंगे। बनर्जी ने घोर गरीबी में रह रहे लोगों को पूंजी देने और मुफ्त में सुविधाएं देने का समर्थन किया।

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री ने कहा, ‘गरीबों की क्षमता को लेकर पूर्वाग्रह है। सबसे गरीब लोगों को कुछ पूंजी दीजिए जैसे गाय, कुछ बकरियां या छोटी-छोटी वस्तुएं बेचने को और 10 साल बाद इन लोगों को देखें। वे 25 फीसदी अधिक अमीर होंगे, वे अधिक सेहतमंद और खुश होंगे।’

अपने काम का संदर्भ देते हुए बनर्जी ने कहा, ‘यह स्थायी है। हमने निवेश पर धन प्राप्ति का आकलन किया है, यह 400 फीसदी है। इस पूंजी से उत्पन्न शुद्ध आय निवेश के चार गुना होगा। यही प्रयोग दस साल पहले बांग्लादेश में किया गया था।’

उन्होंने कहा कि यह जरूरी है कि गरीबों को शुरू में प्रोत्साहित किया जाए बजाय कि यह आकलन करना कि उन्होंने अपने जीवन में कुछ काम नहीं किया। बनर्जी ने बैंकिंग क्षेत्र के संकट पर भी चर्चा की।

उन्होंने कहा, ‘हम एक दीर्घ चक्र में हैं। चीजों को दुरुस्त करने के लिए कुछ समय लगेगा, खासतौर पर बैंकिंग क्षेत्र में। हमारे पास इतना पैसा नहीं है जैसा कि चीन ने बैंकिंग क्षेत्र में पैसे डालकर और ऋण माफ कर किया। हम इस समय यह वहन नहीं कर सकते हैं।’ उन्होंने कहा कि सत्ता का हस्तांतरण और विकेंद्रीकरण आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है।

बनर्जी ने कहा, ‘चीन का उदाहरण लीजिए, उसने अधिनायकवादी ढांचे के बावजूद लोकतंत्र को जमीन दी। उन्होंने 20 साल पहले ग्राम चुनाव शुरू किए। चुने हुए नेता विभिन्न स्थानों पर जाते हैं। अंतर प्रांतीय प्रतिस्पर्धा अधिक है। सत्ता का हस्तांतरण हुआ है। कम्युनिस्ट पार्टी केंद्रीकृत बल होने के बावजूद चीन में भारत के मुकाबले अधिक विकेंद्रीकरण है।’

भारतीय रिजर्व बैंक का गर्वनर बनने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि अगर उन्हें प्रस्ताव मिलेगा तो वे इस पद को स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि इस पद के लिए बड़े अर्थशास्त्री की जरूरत है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह भारत में रहकर नोबेल पुरस्कार जीत सकते थे, तो बनर्जी ने कहा कि वे ऐसा नहीं मानते

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com