सीएनएन की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में बंदूक ख़रीदना कोई मुश्किल काम नहीं है. यहां सैकड़ों की तादाद में स्टोर खुले हुए हैं जहां बंदूकें बेची जाती हैं. इनमें वॉलमार्ट जैसे बड़े शॉपिंग आउटलेट से लेकर छोटी-छोटी दुकानें भी शामिल हैं. यह सुनने में कुछ अजीब जरूर लग सकता है लेकिन पूरे अमेरिका में हर हफ़्ते के अंत में बंदूकों की प्रदर्शनी लगती है. लोग भी पड़ोस या परिवार के सदस्यों से बंदूकें ख़रीदते हैं. हथियारों के इस खुले लेन-देन में कोई जांच-पड़ताल नहीं होती. जांच केवल दुकान से बंदूक ख़रीदने पर ही होती है. दुकान में ख़रीदार की पृष्ठभूमि के बारे में पूछा जाता है. इस दौरान उन्हें बस एक फॉर्म भरना होता है. इसमें ख़रीदार को अपना नाम, पता, जन्मतिथि और नागरिकता की जानकारी देनी होती है. लास वेगास शूटिंग 11 सितंबर 2001 को न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले के बाद यह अमेरिका में निर्दोष लोगों पर हमले की अब तक की सबसे बड़ी वारदात थी. इससे पहले अमेरिका में जून 2016 में ओरलैंडो के नाइट क्लब में हुई फायरिंग में 49 लोग मारे गए थे.

हथियार रखने संबंधी नियम को कठोर बनाने की मांग

पिछले कुछ सालों में मास शूटिंग की बढ़ती घटनाओं के कारण हथियार रखने संबंधी नियम को कठोर बनाने की मांग उठने लगी है. अमेरिकी कांग्रेस में भी कई बार इस पर बहस हुई लेकिन कोई सहमति नहीं बन पाई. पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा हथियार रखने संबंधी नियमों को कठोर बनाना चाहते थे. लेकिन रिपब्लिकन पार्टी ने इसका काफी विरोध किया था. पिछले राष्ट्रपति चुनाव में भी यह मुद्दा गर्म था. डेमोक्रेट की ओर से उम्मीदवरा हिलेरी क्लिंटन जहां अपने चुनावी भाषणों में हथियारों के लिए कठोर नियम बनाने की बात कर रही थीं, वहीं राष्ट्रपति ट्रंप इसे पूर्ववत रखने की वकालत करते थे.

क्यों हथियार रखना है जरूरी

जानकारों का कहना है कि अमेरिका के विस्तृत भौगोलिक स्थिति और बेहद वीरान इलाकों से गुजरते हाईवे पर चलने वाले सभी लोगों को पुलिस हर समय सुरक्षा नहीं दे सकती. इसी कारण वहां अपने साथ हथियार रखने के नियम आसान बनाए गए हैं. 2014 में जब अमेरिका की आबादी लगभग 32 करोड़ थी. तब वहां की पुलिस और नागरिकों के पास करीब 37 करोड़ हथियार थे. सच बात यही है कि अधिकतर अमेरिकी बंदूक रखना अपनी शान मानते हैं. एक तरह से उन्होंने इसे शक्ति के प्रतीक के रूप में अपनी जीवनशैली का हिस्सा बना दिया है.