उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में चौबीस घंटे बिजली देने की तैयारी शुरू कर दी है. हर स्तर पर सुधार के लिए निर्देश जारी किए जा रहे हैं, इसमें केंद्र भी यूपी सरकार की पूरी मदद कर रहा है.
लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू ये है कि यूपी की जनता के लिए चौबीस घंटे बिजली मिलना अभी किसी सपने से कम नहीं है. जानकारों का मानना है कि जर्जर व्यवस्था इस कवायद की राह में बड़ा रोड़ा है.
योगी सरकार के सामने बिजली उपलब्ध कराने के साथ ही व्यवस्था में गुणात्मक सुधार करने की चुनौती है. उनका मानना है कि सरकार को चौबीस घंटे बिजली देने की प्राथमिकता की बजाए इस पर ध्यान देना चाहिए कि जिन के पास बिजली नहीं है, पहले उन तक पहले बिजली पहुंचाई जाए.
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यूपी में डेढ़ करोड़ घर आज भी हैं अंधेरे में
आॅल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि लोगों को ग्रामीण विद्युतीकरण और पावर टू आॅल योजनाओं में फर्क समझने की सख्त आवश्यकता है. ग्रामीण विद्युतीकरण की परिभाषा है कि जिस गांव में बिजली के खंभे गड़ गए और तार खिंच गया, वह गांव विद्युतीकरण की श्रेणी में आ गया. लेकिन इसमें ये कहीं नहीं लिखा है कि गांव में कितने घरों तक बिजली कनेक्शन पहुंचाया गया.
इसी में सरकारें खेल करती रही हैं. आंकड़े ग्रामीण विद्युतीकरण के बताए जाते हैं और जनता उसे हर घर में बिजली पहुंचना मान लेती है.
ग्रामीण विद्युतीकरण की बात करें तो देश में 2014 में 5 लाख 26 गांवों का विद्युतीकरण शेष था, जिसमें से 5 लाख 8 हजार का विद्युतीकरण किया जा चुका है. लेकिन केंद्र की पावर टू आॅल योजना पर नजर डालें तो अभी भी देश में करीब 6 करोड़ घर ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है. यूपी में सबसे ज्यादा करीब सवा करोड़ घरों में बिजली कनेक्शन नहीं है.
वह कहते हैं कि प्रत्येक घर में कम से कम चार सदस्यों का औसत माना जाए तो सीधे-सीधे यूपी में करीब पांच करोड़ लोगों तक अभी भी बिजली नहीं पहुंची है. स्थिति ये है कि यूपी में गांवों में 71 प्रतिशत घरों में बिजली नहीं पहुंची है, वहीं शहरों में ये प्रतिशत करीब 19 है.
गांव में ट्यूबवेल और घरों को अलग-अलग बिजली देने की चुनौती
शैलेंद्र दुबे कहते हैं कि गांवों की बिजली व्यवस्था कुछ ऐसी है, कि वहां तरह से बिजली की जरूरत रहती है. सबसे अहम ट्यूबवेल के लिए, जिसके लिए तीन फेज में छह से आठ घंटे बिजली की जरूरत है. वहीं दूसरा घरों के लिए.
किसान को चौबीस घंटे बिजली के बल्ब जलने की बजाए छह घंटे ट्यूबवेल के लिए बिजली की ज्यादा जरूरत रहती है. वर्तमान व्यवस्था इस दिक्कत को ठीक करने लायक नहीं है. इस व्यवस्था का लागू करने के लिए प्रदेश भर में तमाम फीडर अलग-अलग करने पड़ेंगे. हालांकि प्रदेश में कई जगह अब काम हो रहा है लेकिन इसमें अभी भी कम से कम दो साल लगने की उम्मीद है.
जर्जर तार, कम क्षमता के ट्रांसफॉर्मर बड़ी चुनौती
उत्तर प्रदेश में जितने बिजली कनेक्शन हैं, वहां चौबीस घंटे बिजली पहुंचाना टेढ़ी खीर है. शैलेंद्र दुबे बताते हैं कि अगर यूपी सरकार चौबीस घंटे की मांग के हिसाब से बिजली केंद्रीय पूल आदि से जुटा भी ले तो भी वह जनता तक इसे पहुंचा नहीं सकेगी. कारण ये है कि प्रदेश में चौबीस घंटे डिस्ट्रीब्यूशन का नेटवर्क सक्षम नहीं है. लगातार बिजली सप्लाई हुई तो ट्रांसफॉर्मर ही उड़ जाएंगे.
सिर्फ राजधानी लखनऊ की ही बात करें तो यहां चौबीस घंटे बिजली उपलब्ध है लेकिन डिस्ट्रीब्यूशन में मजबूरी में एक से डेढ़ घंटे कटौती करनी ही पड़ती है. कारण ये है कि प्रति व्यक्ति खपत इतनी है कि अगर चौबीस घंटे सप्लाई दी गई तो इलाके का ट्रांसफॉर्मर ही उड़ जाएगा क्योंकि उसकी उतनी क्षमता ही नहीं है. इसके अलावा तारों की स्थिति भी बेहद खराब है. इसमें सुधार के लिए काफी समय और धन लगेगा.
महापुरुषों पर सवाल क्यों?
इंटरस्टेट और इंट्रास्टेट डिस्ट्रीब्यूशन चुनौती
उन्होंने बताया कि इसके अलावा इंटरस्टेट और इंट्रास्टेट यानी दूसरे राज्यों से और प्रदेश के अंदर पावर सप्लाई के लिए ट्रांसमिशन लाइनें अभी उतनी सक्षम नहीं हैं. इनमें सुधार करने के लिए कम से कम दो साल का समय लगेगा. गर्मियों में प्रदेश में करीब 19,000 मेगावाट की मांग पहुंच जाती है.
इसीलिए फेडरेशन लगातार मांग करता रह है कि चौबीस घंटे बिजली देने की बजाए सभी तक बिजली पहुंचाने की जरूरत पर पहले काम किया जाए. क्योंकि हमारा मानना है कि जिसे 20 घंटे बिजली मिल रही है, उसे 24 घंटे मिलने लगेगी तो उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन जिसने बिजली देखी ही नहीं है, उसे बिजली मिलने लगेगी तो सही मायने में विकास होगा.