अब देश का पेट पालने वाला किसान नहीं रोएगा खून के आंसू, खत्म होगा फसल बर्बादी का डर

नई दिल्ली। केन्द्र सरकार जल्द ही एक ऐसा बिल संसद में ला सकती है जिससे देश में किसान की दिशा और दशा बदल जाएगी। सरकार के इस नए बिल से रोजाना नई उम्मीदों के सहारे देश का पेट पालने वाले किसान को फसल बर्बादी का भय भी खत्म हो जाएगा। सरकार ठेके पर खेती की व्यवस्था लागू कर सकती है।

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अब देश का पेट पालने वाला किसान नहीं रोएगा खून के आंसू, खत्म होगा फसल बर्बादी का डरदरअसल सरकार देश में किसान की हालत सुधारने के लिए कांट्रैक्ट फार्मिंग (ठेके पर खेती) पर कानून बनाने के लिए जल्द ही संसद में बिल ला सकती है। नीति आयोग इस कानून के लिए मसौदा तैयार कर रहा है। देश के सबसे सम्पन्न राज्यों में गिने जाने वाले पंजाब में कांट्रैक्ट फार्मिंग होती है।

हालांकि अभी सभी संबंधित पक्षों से राय भी ली जा रही है। नीति आयोग द्वारा तैयार किए जा रहे मॉडल कानून में सभी कृषि जिंसों को शामिल किया जाएगा।

देश में इकलौता पंजाब एक ऐसा राज्य हैं जहां ठेके पर खेती का अलग कानून है। पंजाब ने 2013 में द पंजाब कांट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट बनाया। पंजाब में खेती करने वाले किसानों की उन्नति में इस कानून का बड़ा हाथ है।

यह कानून लागू होने के बाद किसानों से अपने लिए फसल उत्पादन करने का समझौता कृषि आधारित उत्पाद तैयार करने वाली कंपनियां कर सकती हैं। इससे फायदा यह होगा कि किसानों द्वारा उपजायी गई फसल को कंपनियां सीधे खरीद सकती हैं।

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ठेके पर खेती से बदल जाएगी किसान की तकदीर!

किसानों की फसल कई बार खऱीदार ना मिलने पर बर्बाद हो जाती है। किसान और बाज़ार के बीच तालमेल की कमी इसके पीछे सबसे बड़ी वजह होती है। ऐसे में ही कॉन्ट्रैक्ट खेती की ज़रूरत महसूस की गई, ताकि किसानों को भी उनके उत्पाद की मुनासिब कीमत मिल सके, सरकार ने केंद्रीय कृषि नीति में, कॉन्ट्रैक्ट खेती के क्षेत्र में, निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने का ऐलान किया था।

आज के समय की बात करें तो ज्यादातर राज्यों में एपीएमसी प्रणाली लागू है। इससे किसानों से सीधे फसल खरीदने के बजाय कंपनियों या ट्रेडर्स को कृषि मंडी में आना पड़ता है। नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक अध्ययन शुरू किया जा चुका है। मौजूदा ठेके में हो रही जमीनी दिक्कतों पर भी गौर किया जा रहा है।

 उदाहरण के तौर पर कई कंपनियां और किसानों के बीच आलू, टमाटर समेत अन्य की आपूर्ति के लिए अनुबंध है, लेकिन जैसे ही दाम में ऊपर नीचे होता है, दोनों पक्षों की ओर से अनुबंध की शर्तें डावांडोल होने लगती है। इसे कानूनी जामा पहनाए जाने से किसी भी सूरत में किसानों को नुकसान नहीं होगा।

आयोग विशेषज्ञों से राय में ऐसे उपाय खोज रहा है जिनके आधार पर जल्द मसौदा तैयार होगा। उन्होंने बताया कि इसे महज एक या दो जिंसों तक सीमित नहीं किया जाएगा। बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कांट्रैक्ट फार्मिंग पर कानून बनाने का प्रस्ताव किया था।

आयोग के अधिकारी के मुताबिक मसौदा तैयार होते ही राज्य सरकारों, कानून मंत्रालय, कृषि से जुड़ी निजी कंपनियों समेत अन्य से विचार-विमर्श कर उनके सुझाव लिए जाएंगे।

उन्होंने बताया कि यह किसान व कंपनी या अन्य के बीच होने वाले आपसी अनुबंध को मजबूती प्रदान करेगा। इसके लागू होने पर किसान को तय बाजार, महंगाई के मुताबिक दाम और दूसरे पक्ष से किए गए करार की शर्तों का लाभ मिलेगा। कांट्रेक्ट खेती से फसल उत्पाद के लिए तयशुदा बाज़ार तैयार होगा। इसके अलावा कृषि के क्षेत्र में पूँजी निवेश को बढ़ावा देना भी कांट्रेक्ट खेती का उद्देश्य है।

कृषि उत्पाद के कारोबार में लगी कई कॉर्पोरेट कंपनियों ने कांट्रेक्ट खेती के सिस्टम को इस तरह सुविधाजनक बनाने की कोशिश कि जिससे उन्हें अपनी पसंद का कच्चा माल, तय वक्त पर और कम कीमत पर मिल जाए।

गौरतलब है कि बजट भाषण में जेटली ने कहा था कि यह कानून भूमि अधिग्रहण कानून के आस पास होगा, जिसे विपक्षी दलों के कड़े विरोध के कारण सरकार को छोडऩा पड़ा।

 

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