Doha: U.S. peace envoy Zalmay Khalilzad, left, and Mullah Abdul Ghani Baradar, the Taliban group's top political leader shack hands after signing a peace agreement between Taliban and U.S. officials in Doha, Qatar, Saturday, Feb. 29, 2020. The United States is poised to sign a peace agreement with Taliban militants on Saturday aimed at bringing an end to 18 years of bloodshed in Afghanistan and allowing U.S. troops to return home from America's longest war. AP/PTI(AP2_29_2020_000213B)

अफगानिस्तान के चरमपंथी संगठन तालिबान ने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के समर्थन में बयान देकर हलचल मचा दी

यह जानते हुए भी कि डोनाल्ड ट्रंप का रवैया शुरू से ही मुस्लिम आव्रजकों के प्रति बेहद नकारात्मक रहा है और राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने छह मुस्लिम देशों से अमेरिका आने वाले आव्रजकों पर रोक लगा दी थी, अफगानिस्तान के चरमपंथी संगठन तालिबान ने ट्रंप के समर्थन में बयान देकर हलचल मचा दी है। तालिबान के प्रवक्ता जबिहुल्लाह मुजाहिद ने एक अमेरिकी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा कि उन्हें यकीन है कि ट्रंप अगले चुनाव में जीतेंगे, क्योंकि उन्होंने अमेरिकी जनता से किए अपने तमाम वादों को निभाया है। मुजाहिद ने ट्रंप पर यकीन जताते हुए कहा कि ट्रंप फैसले लेने की हिम्मत रखते हैं और अपने देश में स्थितियों को नियंत्रण में रख सकते हैं।

जबकि डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन और दूसरे नेता कहते हैं कि वे हवाई नारे उछालते हैं। हालांकि माना जा रहा है कि कुछ दूसरे छोटे समूह, जो हथियार बनाने वाली कंपनियों के मालिकों से जुड़े सैनिक कारोबार से जुड़े हैं और जिन्हें युद्ध जारी रहने से फायदा होता है, वे ट्रंप के खिलाफ और बिडेन के पक्ष में हो सकते हैं, लेकिन ऐसे  मतदाताओं की संख्या कम है। एक दूसरे तालिबान नेता ने भी उसी न्यूज चैनल से बातचीत में उम्मीद जताई कि ट्रंप जीतेंगे और अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की मौजूदगी को खत्म करेंगे।
तालिबान के इस समर्थन से ट्रंप के चुनाव अभियान के लिए फौरी मुश्किल खड़ी हो सकती है। उनके विरोधी यह प्रचार कर सकते हैं कि अमेरिका के दुश्मन ट्रंप की जीत चाहते हैं। इसीलिए उनके चुनाव अभियान के प्रवक्ता ने तुरंत तालिबान के समर्थन को नामंजूर करते हुए ये बयान दिया कि तालिबान को यह समझना चाहिए कि राष्ट्रपति ट्रंप हमेशा अमेरिकी हितों की रक्षा करेंगे। इसके लिए चाहे जो तरीके अपनाने पड़ें, वो अपनाएंगे।

बहरहाल, ट्रंप के लिए तालिबान का समर्थन निराधार नहीं है। ट्रंप ने अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी की दिशा में सचमुच कदम उठाए हैं। अब अफगानिस्तान में 5000 से भी कम अमेरिकी फौजी हैं। ट्रंप के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रॉबर्ट ओ’ब्रायन ये बयान दे चुके हैं कि अगले साल की शुरुआत तक वहां ढाई हजार से भी कम अमेरिकी सैनिक रह जाएंगे। इसके लिए ट्रंप प्रशासन ने इस साल फरवरी में तालिबान से एक महत्वपूर्ण समझौता किया था, जिसके तहत अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने 2021 के वसंत तक अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को पूरी तरह वापस बुला लेने का दावा किया। इसके लिए तालिबान पर ये शर्त लगाई गई कि वह अल-कायदा से रिश्ता तोड़े और दूसरे अफगान समूहों से साथ सत्ता साझा करने के लिए बातचीत करे।

इसी योजना के तहत पिछले महीने दोहा में अफगान शांति वार्ता हुई। यह अमेरिकी कूटनीति का ही प्रभाव है कि उसमें भारत भी शामिल हुआ, जबकि अब तक भारत का रुख यह था कि तालिबान से कोई बातचीत नहीं हो सकती। दोहा में अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने मई 2021 तक सभी अमेरिकी सैनिकों की वापसी का इरादा दोहराया। अमेरिकी सैनिकों की वापसी से अफगानिस्तान में नए हालात पैदा होंगे।

तालिबान अभी भी खासा मजबूत है। दुनिया के अनेक हिस्सों में इस बात पर यकीन नहीं है कि वह सचमुच अल-कायदा से रिश्ता तोड़ लेगा। फिर पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ उसके रिश्ते भी बने हुए हैं। इन्हीं अंदेशों के कारण ऐसी संभावना है कि अगर जो बिडेन जीते तो वो पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की अफगानिस्तान नीति पर चलेंगे और वहां ऐसा खालीपन पैदा नहीं होने देंगे, जिससे तालिबान को अपना राज लौटाने का मौका मिले।

यह एक हकीकत है कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में तानाशाह और कट्टरपंथी नेता और संगठन ट्रंप की वापसी चाहते हैं। यहां तक कि कोरोना महामारी आने के पहले ये चर्चा भी थी कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भी यही रणनीति है कि ट्रंप की मदद की जाए। इस साल जनवरी में चीन और अमेरिका के बीच हुए व्यापार समझौते में कुछ ऐसे प्रावधान थे, जिनसे ट्रंप के समर्थक समूहों को लाभ होता। लेकिन कोरोना महामारी जब अमेरिका में बेकाबू हो गई, तो अपनी जिम्मेदारी को टालने के लिए ट्रंप ने चीन के खिलाफ आक्रामक अभियान छेड़ दिया। रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन का ट्रंप के प्रति नरम रवैया जग-जाहिर है।

पुतिन और शी जैसे नेताओं की राय है कि ट्रंप की नजर अपने कारोबारी और सियासी फायदों पर ज्यादा रहती है, इसलिए वे अमेरिकी हितों की ज्यादा परवाह नहीं करते। इससे बाकी देशों को अपने मकसदों को पूरा करने का मौका मिलता है। शायद ऐसी ही समझ रखने वालों में अब तालिबान भी शामिल हो गया है। तो उसके एक नेता ने अमेरिका के सीबीएस न्यूज चैनल से कहा ‘ट्रंप भले बाकी दुनिया के लिए हास्यास्पद हों, लेकिन तालिबान की निगाह में वे समझदार और बुद्धिमान व्यक्ति हैं’।

 

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