विश्व स्वास्थ्य संगठन के अुनसार, भारत में हर साल पांच लाख लोग कैंसर से अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं. कैंसर रोगियों की संख्या इसी रफ्तार से बढ़ती रही, तो 2015 में यह मृत्युदर सात लाख तक पहुंच जाएगी.
पॉपुलेशन बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) के अनुसार, भारत में एक साल में करीब 1,44,000 नए स्तन कैंसर के रोगी सामने आ रहे हैं. गलत जीवनशैली और जागरूकता की कमी के चलते भारत में स्तन कैंसर रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है.
विश्वभर में अक्टूबर माह स्तन कैंसर जागरूकता माह के रूप में मनाया जाता है. इस मौके पर स्तन कैंसर रोग विशेषज्ञों ने रोग की स्थिति, कारण, बचाव और उपचार के बारे में बताया है.
स्वस्थ जीवनशैली से दूर रखें कैंसर :
बढ़ती उम्र, मोटापा, रजोस्त्राव का उम्र के साथ जल्दी आना और देर तक रहना, पहला बच्चा 30 की उम्र के बाद होना, स्तनपान कम या नहीं करवाना और अनुवांशिकता स्तन कैंसर की संभावना को बढ़ाता है.
इसके साथ ही पिल्स या हार्मोस रिप्लेसमेंट थैरेपी (एचआरटी) का लंबे समय तक प्रयोग भी इसके लिए उतरदायी हो सकता है.
स्वस्थ जीवनशैली को अपनाकर इस रोग की संभावनाओं को कुछ हद तक कम किया जा सकता है. सही उम्र में वैवाहिक जीवन की शुरुआत, गर्भनिरोधक गोलियों से दूरी, स्तनपान करवाने, शारीरिक रूप से स्वस्थ रहकर और शराब से दूरी बनाकर स्तन कैंसरकी संभावनाओं को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
स्वयं स्तन परीक्षण है जरूरी :
बीएमसीएचआरसी रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभागाध्यक्ष, सीनियर कंसल्टेंट डॉ. निधि पाटनी का कहना है कि स्तन कैंसर की पहचान महिलाएं स्वयं स्तन परिक्षण (सेल्फ ब्रेस्ट एग्जामिन) के साथ भी कर सकती है. स्तन में गांठ का उभरना, स्तन के हिस्से में सूजन आना, स्तन के चारों ओर की त्वचा में परिवर्तन होना, स्तन या निप्पल में दर्द होना, निप्पल का मोटा होना या निप्पल में किसी तरल पदार्थ का निकलना, यह सभी स्तन कैंसर रोग के लक्षण हैं.
उन्होंने कहा कि हाथ की उंगलियों का पैड बनाकर स्तन की गांठ, त्वचा का लचीलापन या आकार में परिवर्तन होने की पहचान की जा सकती है.
यदि महिला, स्तन में परिवर्तनों में से कोई भी परिवर्तन देखती है तो उसे कैंसर चिकित्सक से परामर्श करने में देरी नहीं करनी चाहिए . स्तन कैंसर की पहचान के लिए मैमोग्राफी सबसे महत्वपूर्ण जांच है, जिसके जरिए स्तन का एक्स-रे किया जाता है.
समय पर उपचार की शुरुआत जरूरी :
बीएमसीएचआरसी सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभागाध्यक्ष एंव सीनियर कंसल्टेंट डॉ. संजीव पाटनी ने बताया कि कैंसर की मुख्य रूप से चार अवस्थाएं होती हैं. प्रथम और दूसरी अवस्था में रोग की पहचान और उपचार की शुरुआत हो जाने पर रोगी को कैंसर मुक्त करना संभव होता है, वहीं तीसरी या अंतिम अवस्था में उपचार की शुरुआत से रोगी की मृत्युदर बढ़ जाती है.
जागरूकता की कमी के कारण देश में अधिकांश रोगियों में रोग की पहचान तीसरी या अंतिम अवस्था में होती है.
पाटनी ने कहा कि यही कारण है कि अन्य देशों के मुकाबले भारत में कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या सर्वाधिक है. ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं स्वयं स्तन परिक्षण करें, 40 की उम्र के बाद मैमोग्राफी टेस्ट करवाएं.
स्तन कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में उपचार की शुरुआत से अब स्तन को हटाए बगैर उपचार कर रोगी को कैंसर मुक्त किया जा सकता है.
आधुनिक चिकित्सा से बढ़ते सरवाइवर :
भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर (बीएमसीएचआरसी) जयपुर के कीमोथैरेपी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय बापना ने बताया कि आधुनिक चिकित्सा ने स्तन कैंसर के सफल इलाज की प्रतिशतता काफी बढ़ा दी है, जिसके चलते आज स्तन कैंसर सरवाइवर्स की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है.
आज बहुआयामी चिकित्सा पद्धती (मल्टीमोडयूलिटी ट्रीटमेंट प्रोसिजर) के कारण रोगी का उपचार उसकी स्थिति को देखते हुए सर्जरी, कीमोथैरेपी, हार्मोस थैरेपी और रेडिएशन थैरेपी के साथ तय किया जाता है.
उपचार की पद्धती रोगी के रोग के आधार पर तय की जाती है.
इस तरह तेजी से बढ़ रहे हैं आंकड़े :
कैंसर रिसर्च की इंटरनेशनल रिसर्च एजेंसी ग्लोबेकेन में सामने आया है कि इंडिया में 2012 में 1,44,937 स्तन कैंसर रोगी महिलाएं इलाज के लिए सामने आई. वहीं इस साल 70,218 स्तन कैंसर से पीड़ित महिलाओं ने दम तोड़ दिया.
इस रिपोर्ट में सामने आया कि देश में स्तन कैंसर से पीड़ित हर दूसरे रोगी की मृत्यु हो रही है.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च आईसएमआर ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि वर्तमान में कैंसर के एक साल में 14.5 लाख नए मामले दर्ज हो रहे हैं.
ऐसे में 2020 में इन मामलों की संख्या 17.3 लाख तक पहुंच जाएगी.
आईसीएमआर ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि देश में महिलाओं में स्तन कैंसर सबसे ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है.