भारत क्रूड ऑइल का दुनिया में सबसे बड़ा आयातक है। कोयले (जिसका घरेलू उत्पादन होता है) के बाद यह ऊर्जा का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। यह हमारे वीइकल्स, ट्रेनें, बसों और जेनरेटर्स के लिए जरूरी है। हम हर दिन 45 लाख बैरल क्रूड ऑइल का आयात करते हैं। दूसरे शब्दों में, मौजूदा वैश्विक कीमतों के मुताबिक हम क्रूड ऑइल खरीदने पर विदेशी मुद्रा भंडार से प्रतिदिन 17 अरब रुपये से अधिक खर्च करते हैं। हमने अमेरिका से भी इसका निर्यात शुरू कर दिया है।
तीन साल पहले हम क्रूड ऑइल पर दोगुना खर्च कर रहे थे। भारत जरूरत से अधिक क्रूड ऑइल का आयात करता है, क्योंकि हमारी रिफानिंग की क्षमता अधिक है। अतिरिक्त पेट्रोल और डीजल हम दूसरे देशों में निर्यात करते हैं। निर्यात में एक तिहाई हिस्सेदारी प्राइवेट सेक्टर की है। सामानों के निर्यात से मिलने वाले डॉलर्स का पांचवां हिस्सा पेट्रो प्रॉडक्ट्स से आता है। एक समय तो भारत पेट्रोल और डीजल निर्यात से IT निर्यात के बराबर कमाई कर रहा था। निर्यातक ‘रिफाइनिंग’ मार्जिन से कमाई करता है, जोकि क्रूड ऑइल के आयात और पेट्रोल-डीजल की बिक्री का अंतर होता है।
मई 2014 के बाद क्रूड ऑइल की कीमत करीब 60 फीसदी कम हो चुकी है, लेकिन रिटेल पेट्रोल पंप पर पेट्रोल और डीजल के दामों में गिरावट नहीं आई है। आप एक लीटर पेट्रोल पर करीब 80 रुपये और डीजल प्रति लीटर 63 रुपये खर्च कर रहे हैं। तो फिर क्रूड ऑइल में भारी कमी का फायदा किसे मिल रहा है?
इसमें सबसे आगे हैं हमारी सरकारें, केंद्र सरकार और राज्य सरकारें। केंद्र इस पर एक्साइज टैक्स लगाता है और राज्य सरकारें वैट वसूलती हैं। बता दें, पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी से बाहर रखा गया है। इन टैक्सों को रुपये प्रति लीटर के रूप में निर्धारित किया जाता है, ना कि प्रतिशत में। इसलिए जब क्रूड ऑइल की कीमत कम होती है तो एक्साइज और वैट बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप सरकार को अधिक टैक्स मिलने लगता है।
केंद्र सरकार को अप्रैल 2015 से मार्च 2017 के बीच 1.6 खरब रुपये की कमाई हुई। यदि आप इसे प्रतिशत में बदलें तो पेट्रोल पर एक्साइज टैक्स 150 फीसदी बढ़ चुका है और डीजल पर तो इससे भी ज्यादा। इससे सरकार को तेल पर सब्सिडी खर्च घटाने का मौका मिला। मार्च 2014 में समाप्त हुए वित्त वर्ष में सब्सिडी बिल 1.4 खरब रुपये का था। इस साल मार्च में यह बमुश्किल 0.19 खरब (19 हजार करोड़) रुपये था।
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इस बचत का इस्तेलमाल इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वच्छ भारत (क्लीन इंडिया), सार्वजनिक बैंकों की पूंजी जरूरत पूरी करने और नरेगा आदि के लिए किया गया। तेल से हुई कमाई का ही नतीजा है कि इन चीजों पर खर्च बहुत अधिक बढ़ जाने के बावजूद सरकार वित्तीय घाटे को रोक पाई, बल्कि इसमें कमी आई है। यह अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों में हमारी क्रेडिट रेटिंग को स्थिर बनाए रखने के लिए जरूरी है।
यह सच है कि हमारी सरकार सार्वजनिक क्षेभ की तेल कंपनियों इंडियन ऑइल, बीपीसीएल और एचपीसीएल को कीमतें तय करने की छूट दी है, लेकिन एक्साइज टैक्स में बदलाव कर दिए जाने की उपभोक्ताओं को ऊंची कीमतें चुकानी पड़ रही हैं। शुक्र है कि विनिमय दर स्थिर है। पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों के बावजूद महंगाई दर भी काबू में है। ह्यूटन में आए तूफान भी तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है।
तेल की ऊंची कीमतों का दूसरा फायदा ऑइल मार्केटिंग कंपनियों को मिल रहा है। उन्हें कीमतों को तय करने की छूट है और वे कम इनपुट खर्च के साथ पुराने दर पर तेल बेच रही हैं, इससे इनके लाभ में भी वृद्धि हुई है। एविएशन सेक्टर को भी इसका फायदा मिल रहा है। कच्चे तेल में गिरावट को सीधे विमानन टरबाइन ईंधन (एटीएफ) में प्रेषित हुआ। यह एयरलाइन्स चलाने की सीमांत लागत का 90 फीसदी होता है। हैरानी की बात नहीं है कि पिछले तीन साल से हवाई यात्रियों की संख्या में हर साल 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो रही है।
ट्रेन में सेकंड एसी का टिकट लेने की बजाय हवाई यात्रा करने वालों की संख्या बढ़ी है। इसका नतीजा है कि सभी एयरलाइन्स कंपनियां भारी मुनाफा कमा रही हैं। यहां तक कि उन्हें पायलट, एयरक्राफ्ट, लैंडिंग स्लॉट्स और रनवे की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
यह ठीक नहीं है कि कंज्यूमर्स को इस क्रूड ऑइल की कीमतों में कमी का कोई फायदा नहीं मिल रहा है। यह पंप से पेट्रोल और डीजल खऱीदने वाले कंज्यूमर्स को फायदा देने का समय है।