नई दिल्ली World Bank ने एक अहम घटनाक्रम के तहत सिंधु जल संधि के तहत भारत एवं पाकिस्तान द्वारा शुरू की गई विभिन्न प्रक्रियाओं पर विराम लगा दिया है ताकि दोनों देश अपने मतभेदों को सुलझाने के वैकल्पिक तरीकों पर विचार कर सकें।
विश्व बैंक समूह के अध्यक्ष जिम यंग किम ने कहा, ‘हम सिंधु जल संधि को बचाने के लिए और संधि एवं दो पनबिजली संयंत्रों में इसके अमल के संबंध में विरोधाभासी हितों को सुलझाने के वैकल्पिक नजरियों पर विचार करने में भारत एवं पाकिस्तान की मदद करने के लिए इस विराम की घोषणा कर रहे हैं।’ किम ने भारत एवं पाकिस्तान के वित्त मंत्रियों को लिखे पत्रों में इस विराम की घोषणा की। इस बात पर भी जोर दिया गया कि बैंक संधि को बचाने के लिए यह कदम उठा रहा है।अभी के लिए प्रक्रिया को विराम देते हुए बैंक मध्यस्थता अदालत के अध्यक्ष एवं तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्तियों को फिलहाल रोक देगा। बैंक ने जैसा कि पहले बताया था कि ये नियुक्तियां 12 दिसंबर को होने की संभावना थी। भारत ने जम्मू कश्मीर में किशनगंगा एवं राटले पनबिजली परियोजनाओं के संबंध में पाकिस्तान की शिकायत को लेकर मध्यस्थता अदालत गठित करने एवं एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने के विश्व बैंक के फैसले पर पिछले महीने कड़ी आपत्ति जताई थी।
भारत सरकार के अनुरोध के अनुरूप तटस्थ विशेषज्ञ तैनात करने के विश्व बैंक के फैसले पर और इसी के साथ पाकिस्तान की इच्छा के अनुरूप मध्यस्थता अदालत की स्थापना पर हैरानी जताते हुए भारत ने कहा था कि दोनों कदमों को एकसाथ आगे बढ़ाने का ‘‘कानूनी तौर पर समर्थन नहीं किया जा सकता।’’ बैंक ने कहा कि दोनों देशों की ओर से शुरू की गई ये प्रक्रियाएं एक ही समय पर आगे बढ़ रही थीं। इससे ऐसे विरोधाभासी नतीजों का खतरा पैदा हो गया था, जिनसे संधि खतरे में पड़ सकती थी।
किम ने कहा, ‘दोनों देशों के लिए यह अवसर है कि वे इस मुद्दे को सौहार्दपूर्ण तरीके से और संधि के अनुरूप सुलझाने की शुरुआत करें न कि एक समान प्रक्रियाओं को अपनाएं, जो संधि को निष्क्रिय कर सकती हों। मैं उम्मीद करूंगा कि दोनों देश जनवरी तक एक समझौता कर लेंगे।’ संधि के तहत आने वाली मौजूदा प्रक्रियाएं किशनगंगा (330 मेगावाट) और राटले (850 मेगावाट) पनबिजली संयंत्र से जुड़ी हैं। भारत इन संयंत्रों का निर्माण किशनगंगा और चेनाब नदियों पर कर रहा है। इनमें से किसी भी संयंत्र का वित्तपोषण विश्वबैंक नहीं कर रहा है।
बैंक ने कहा कि सिंधु जल संधि, 1960 को सबसे सफल अंतरराष्ट्रीय संधियों में से एक संधि के रूप में देखा जाता है। यह संधि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बावजूद भी बनी रही है। सिंधु जल संधि में मध्यस्थता करने वाले विश्व बैंक ने सितंबर में कहा था कि भारत और पाकिस्तान ने उससे संपर्क किया था और वह संधि में तय अपनी सीमित और प्रक्रियात्मक भूमिका के अनुरूप प्रतिक्रिया दे रहा है।
उसने कहा था, ‘भारत और पाकिस्तान ने विश्व बैंक को सूचित किया है कि दोनों ने ही सिंधु जल संधि 1960 से जुड़ी कार्यवाहियां शुरू कर दी हैं और विश्व बैंक समूह संधि में तय अपनी सीमित और प्रक्रियात्मक भूमिका के अनुरूप प्रतिक्रिया दे रहा है।’ यह संधि दोनों देशों के बीच नदियों के इस्तेमाल के संदर्भ में सहयोग एवं सूचना के आदान-प्रदान की प्रणाली तय करती है। इसे स्थायी सिंधु आयोग कहा जाता है और इसमें दोनों देशों से एक एक आयुक्त शामिल रहता है। यह पक्षों के बीच पैदा हो सकने वाले कथित ‘सवालों’, ‘मतभेदों’ और ‘विवादों’ को सुलझाने की प्रक्रिया भी तय करता है।
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