ज्यों-ज्यों 2019 में होने वाले आम चुनाव करीब आ रहे हैं, केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं. पहले बिहार में राजग के सहयोगी ‘हम’ का अलगाव, फिर विशेष राज्य के मुद्दे पर केंद्र सरकार से तेलुगू देशम पार्टी का हटना, उत्तर प्रदेश में दो लोकसभा सीटों पर हुई पार्टी की जबर्दस्त हार के बाद ताजा उलझन यूपी में होने वाले राज्यसभा चुनाव को लेकर सामने आ गया है. यह मामला भी राजग की सहयोगी पार्टी का ही है. भाजपा के साथ मिलकर 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के चार विधायक 23 मार्च को होने वाले राज्यसभा चुनाव में पार्टी का खेल बिगाड़ सकते हैं.
दरअसल, प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में अपने संख्या बल के आधार पर भाजपा 10 में से आठ सीटें तो आसानी से जीत सकती है, मगर पार्टी ने अपना नौवां प्रत्याशी भी खड़ा किया है. वहीं, सपा और बसपा बाकी दो सीटें जीतने के प्रति आश्वस्त हैं. कई मौकों पर सरकार के प्रति नाराजगी जता चुके ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी अगर राज्यसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में वोट नहीं करती है, तो सत्तारूढ़ दल के लिए नौवें प्रत्याशी को चुनाव जिता लेना कठिन हो जाएगा. राजभर ने आज लखनऊ में समाचार एजेंसी भाषा को बताया, ‘हम अभी से कैसे बता सकते हैं कि अगले राज्यसभा चुनाव में हम भाजपा को वोट देंगे या किसी अन्य पार्टी को. हमने अभी इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं किया है.’ राजभर गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में अपनी उपेक्षा को लेकर नाराज हैं. उन्होंने कहा भी, ‘हालांकि हम अभी भाजपा के साथ गठबंधन में हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या भाजपा ने राज्यसभा और गोरखपुर तथा फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव के लिए अपने प्रत्याशी तय करने से पहले हमसे कोई सलाह ली थी?’
राजग में अपनी उपेक्षा को लेकर है नाराजगी
सुभासपा के ओमप्रकाश राजभर ने कहा कि भाजपा ने नगरीय निकाय चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किए, लेकिन क्या तब उसने गठबंधन धर्म निभाया? यहां तक कि लोकसभा उपचुनाव में भी भाजपा ने अपने सहयोगी दलों से यह नहीं पूछा कि उपचुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी? उन्होंने यह भी कहा कि जब तक भाजपा का कोई नेता उनसे नहीं पूछेगा तब तक बात आगे नहीं बढ़ेगी. राजभर ने कहा कि प्रत्याशी तय करना भाजपा का काम है, लेकिन एक शिष्टाचार के नाते उसे कम से कम एक बार तो पूछना ही चाहिए कि क्या कोई सहयोगी दल चुनाव प्रचार में उसके साथ आना चाहेंगे. मगर भाजपा के किसी भी नेता ने हमसे यह नहीं पूछा. अब ऐसे हालात में हम यह कैसे कह सकते हैं कि हम राज्यसभा चुनाव में भाजपा को वोट देंगे या किसी अन्य पार्टी को.
राज्यसभा चुनाव में क्रॉस वोटिंग के सवाल पर भी दी प्रतिक्रिया
उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री राजभर ने इस सवाल पर कि क्या उनकी पार्टी के विधायक क्रॉस वोटिंग करेंगे, कहा कि हम भाजपा के साथ गठबंधन में हैं और अगर वह गठबंधन धर्म नहीं निभाती है तो क्या हमें उसके साथ जाना चाहिए? उन्होंने कहा कि गोरखपुर में हाल में हुए लोकसभा उपचुनाव में उनकी पार्टी भाजपा को कम से कम 30,000 वोट दिलवा सकती थी, लेकिन ऐसा लगता है कि भाजपा की नजर में हमारी कोई उपयोगिता नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश में दलितों और पिछड़ों की उपेक्षा की जा रही है और यह सिलसिला जारी है.
भाजपा को गठबंधन के बने रहने का भरोसा
इस बीच प्रदेश भाजपा प्रवक्ता मनीष शुक्ला ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की नाराजगी पर कहा कि भाजपा के सभी सहयोगी दल उसके साथ हैं. उन्होंने कहा कि वह आश्वस्त हैं कि राज्यसभा चुनाव के दौरान सुभासपा के विधायक भाजपा प्रत्याशियों को वोट देंगे. गठबंधन मजबूत है और सारे सहयोगी दल भाजपा के साथ खड़े हैं. शुक्ला ने यह विश्वास भी जताया कि राज्यसभा चुनाव के लिए खड़े भाजपा के सभी प्रत्याशी जीत हासिल करेंगे.
ऐसा है राज्यसभा का चुनावी गणित
उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए किसी प्रत्याशी को कम से कम 37 प्रथम वरीयता की वोटों की जरूरत है. राज्य की 403 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा और उसके सहयोगी दलों, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल के पास कुल 324 सीटें हैं. ऐसे में भाजपा अपने आठ प्रत्याशियों को आसानी से चुनाव जितवा सकती है. इसके बावजूद उसके पास 28 वोट बच जाएंगे. अगर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी भाजपा के पक्ष में नहीं भी जाती है तो भी भगवा दल अपने आठ प्रत्याशियों को आसानी से जिता लेगा. लेकिन भाजपा ने यहां अपना नौवां प्रत्याशी भी उतारा है, सुभासपा के समर्थन न देने पर नौवें उम्मीदवार के लिए संकट खड़ा हो सकता है.
सपा और बसपा ने रास चुनाव के लिए किया है गठजोड़
यूपी विधानसभा में समाजवादी पार्टी के पास 47 विधायक हैं. यानी वह अपने एक प्रत्याशी को राज्यसभा भेज सकती है. इसके बाद भी उसके पास 10 वोट बचेंगे. वहीं, बहुजन समाज पार्टी के पास 19 विधायक हैं, जिसके कारण अपने दम पर वह किसी को राज्यसभा नहीं भेज सकती है. इसके लिए उसे सपा के 10, कांग्रेस के सात और राष्ट्रीय लोकदल के एक विधायक का समर्थन चाहिए. समाचार एजेंसी के अनुसार हाल में ही सपा छोड़कर भाजपा में गए नरेश अग्रवाल के बेटे और हरदोई से सपा विधायक नितिन अग्रवाल के भाजपा को वोट देने की संभावना है. ऐसे में सपा का एक वोट कम हो जाएगा. इससे बसपा प्रत्याशी की जीत की राह मुश्किल हो जाएगी, लेकिन अगर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की नाराजगी विपक्ष के पक्ष में गई तो बसपा प्रत्याशी को आसानी से जीत मिल सकती है.