OMG !! ये मक्खी 'स्कूबा डाइविंग सूट पहनकर पानी में छपाछप लगाती है गोते

ये ‘मक्खी’ पहनती है ‘स्कूबा डाइविंग सूट’, उसके बाद पानी में छपाछप लगाती है गोते

क्या आपने कभी सुना है कि ‘मक्खी’ स्कूबा डाइविंग सूट पहन सकती हैं..? ये सुनकर ही किसी को भी उलझन हो सकती है, या फिर यूं कहिए कि लोग इसे कोरी बकवास समझ लेंगे। दरअसल, पूरी दुनिया का यही सोचना है कि सिर्फ इंसान ही स्कूबा डाइविंग सूट पहनता है। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो बताना चाहेंगे कि ये गलत अवधारणा है। 

इसे हम इस बात से आसानी से समझ सकते हैं कि दुनिया में कई बार सर्वमान्य चीजें भी गलत साबित हुई हैं। इसकी गवाही आपको इतिहास बखूबी दे सकता है। ये मक्खी भी इस सर्वमान्य सच के लिए अपवाद बन गई है।

यूं तो इस मक्खी को कहा जा रहा है ‘स्कूबा डाइविंग फ्लाई’ लेकिन इसका असल नाम है ‘Alkali Flies’, इसे  ‘Ephydra hians’भी कहा जाता है। आपको ये जानकर अचंभा होगा कि Alkali Flies स्कूबा डाइविंग सूट पहन कर पानी में छपाछप गोते लगाने में सक्षम है। इसे आप प्रकृति का चमत्कार ही समझे कि ये मक्खी अपने लिए ऐसा सूट तैयार कर पाने में सक्षम है। सबसे ज्यादा हैरानी तो आपको इस बात पर होगी कि ये मक्खी अपने इस सूट की मदद से पानी के भीतर सांस भी ले सकती है।   

nationalgeographic की रिपोर्ट के मुताबिक कैलिफोर्निया की मोनो झील में इस विचित्र मक्खी को पाया गया है। शोधकर्ताओं ने इस मक्खी पर शोध में पाया कि ये मक्खी “गोताखोरी” में माहिर है और यह अन्य मक्खियों से बिल्कुल अलग है। इसके शरीर पर पंखों की जगह भारी मात्रा में बाल मौजूद हैं, जो झील के अत्यधिक क्षारीय पानी का सामना करने में भी सक्षम हैं। यह समुद्र के तीन गुना खारे पानी के भीरत भी गोताखोरी कर सकती है।

सारी बात यही खत्म नहीं हो जाती आगे जानिए स्कूबा डाइविंग सूट वाली बात..

 

दरअसल, ये मक्खी अपने चारों और वायु का एक बुलबुला तैयार कर पाने में सक्षम है जिसके भीतर वह खुद भी समा सकती है। मक्खी के शरीर पर मौजूद बाल इस कार्य में उसकी मदद करते हैं। ये पानी के भीतर गोता लगाते ही मक्खी के लिए ऐसा बुलबुला तैयार कर देते हैं जो उसके लिए बाहरी फेफड़े का काम करते हैं। मक्खी पानी के भीतर सांस लेने में भी कामयाब है। ये मक्खी पानी के भीतर जाकर अंडे दे सकती है।

ये रिर्सच वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के ‘Floris van Breugel’नामक शोधकर्ता ने की है। इस रिसर्च के लिए National Geographic Society Committee ने भी सहयोग किया है। रिसर्च के लिए कमेटी ने उन्हें फंड उपलब्ध कराया है।

 फ्लोरिस को इस मक्खी की प्रजाति के बारे में 150 साल पुरानी एक किताब में पढ़ने को मिला था। यह  किताब  ‘Mark Twain’ ने लिखी है। इस किताब को पढ़ने के बाद फ्लोरिस को इस मक्खी पर शोध करने की सूझी। वह इस मक्खी को ऐसा करते हुए देखने के लिए बेहद उत्सुक हो गए थे। लेकिन फ्लोरिस को जल्द ही यह समझ आ गया था कि यह इतना आसान भी नहीं है। इसके लिए उसे संसाधनों की आवश्यकता पड़ी। तब फ्लोरिस ने अपने इस शोध के बारे में नेशनल जियॉग्रफी कमेटी से सम्पर्क किया। उन्हें फ्लोरिस के इस टॉपिक में इंटरेस्ट आया और इस पर उनकी मदद को तैयार हो गए।  तब जाकर सामने आई दुनिया की ये सबसे अनोखी मक्खी।

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