कलेक्टर आशीष सिंह और एसपी मनोज सिंह ने चौबीस खंबा माता मंदिर में माता महामाया व महालया को मदिरा अर्पित की। इसके बाद दल नगर के विभिन्न कोनों पर स्थित 40 से अधिक देवी व भैरव मंदिरों में पूजा के लिए रवाना हुआ। शहर में 27 किलोमीटर लंबे मार्ग पर मंदिरा की धार लगाने क्रम शुरू हुआ। रात 8 बजे गढ़कालिका क्षेत्र स्थित हांडी फोड़ भैरव मंदिर में नगर पूजा का समापन होगा। बता दें कि नगर की खुशहाली, सुख-समृद्धि तथा रोग निवारण के लिए प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर और 12 वर्ष में एक बार सिंहस्थ महापर्व के पहले नगर पूजा का विधान है। ज्ञात इतिहास में पहला अवसर है जब किसी महामारी के निवारण के लिए नगर पूजा की जा रही है।
नियमों का पालन, घंटियां उतारी
नगर पूजन के दौरान शारीरिक दूरी आदि नियमों का पालन किया गया। पूजन से पहले मंदिर में घंटियां आदि उतरवा दी गई थीं, ताकि संक्रमण न फैले। दल में शामिल सदस्य मास्क आदि भी लगाए हुए थे।
अतृप्तों को तृप्ति मिलती है
परंपरा अनुसार नगर पूजा में 27 किमी मार्ग पर मदिरा की धार लगाई जाती है। कोटवारों का दल तांबे के पात्र में मदिरा भरकर धार लगाते हुए चलता है। रास्तेभर मदिरा के साथ पूड़ी, भजिए आदि सामग्री भी अर्पित की जाती है। इसे बड़बाकुल कहा जाता है। मान्यता है इससे अतृप्तों को तृप्ति मिलती है और वे प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि व आरोग्यता का आशीर्वाद देते हैं। हरसिद्धि मंदिर में दोपहर 12 बजे शासकीय पूजा शक्तिपीठ हरसिद्धि में देवी की सात्विक पूजा की जाती है। जब भी नगर पूजा होती है कलेक्टर दोपहर 12 बजे हरसिद्घि मंदिर में अलग से पूजन करने जाते हैं। माता हरसिद्धि को सौभाग्य सामग्री, चुनरी तथा नैवेद्य अर्पित किया जाता है।
विक्रम कालीन परंपरा आज भी कायम
नगर की सुख, समृद्घि व रोग निवारण के लिए नगर पूजा की परंपरा सम्राट विक्रमादित्य के काल से चली आ रही है। प्रचलित कथाओं में इसका उल्लेख मिलता है। सिंधिया स्टेट ने भी इन्हीं कथानकों के आधार पर नगर पूजा की परंपरा बनाए रखी, जो आज भी कायम है। प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र की महाअष्टमी पर और 12 वर्ष में लगने वाले सिंहस्थ महापर्व से पहले नगर पूजा की जाती है। मान्यता है विधिवत तामसी पूजा से नगर में व्याप्त रोगों का नाश होता है तथा प्रजा सुखी, समृद्ध व प्रसन्न रहती है।