अब वह दिन दूर नहीं जब आप मनपसंद बेडरूम और रसोईघर बाजार से लाकर अपने सपनों का घर बना लेंगे। जल्द ही अलग-अलग कंपनियां अपनी विशेज्ञता से मकान के विभिन्न हिस्सों को तैयार कर प्रस्तुत करेंगी, आप अपनी जरूरत और लागत के हिसाब से मनपसंद रसोई, बेडरूम, शौचालय आदि खरीद सकेंगे। मकान के अलग-अलग हिस्से अलग-अलग जगहों पर तैयार होंगे। बाद में उन्हें एक जगह लाकर (असेंबलकर) भवन का रूप दे दिया जाएगा। वहीं, कोई कंपनी दीवार, कोई छत तो कोई नींव के लिए पिलर तैयार करेगी। आपको जिसका उत्पाद पसंद आए, अपनी जमीन पर लाकर मकान खड़ाकर लें।
इसे प्रिफैब्रिकेटेड भवन भी कहा जाता है। भवनों को अब इसी थ्री डी तकनीक से तैयार किया जाएगा। नई तकनीक का कमाल यह होगा कि मकान पहले से अधिक मजबूत होंगे, निर्माण में आधे समय की बचत होगी और लागत भी कम आएगी। देश भर से पटना पहुंचे भवन निर्माण के विशेषज्ञों ने यह जानकारी हिन्दुस्तान से साझा की।
इंडियन बिल्डिंग कांग्रेस की बैठक इंडियन बिल्डिंग कांग्रेस (आईबीसी) के 101 वें कार्यकारिणी काउंसिल में शनिवार को शामिल होने पटना आए विशेषज्ञों से ‘हिन्दुस्तान’ की विशेष बातचीत नई तकनीक की ये जानकारियां साझा कीं। कार्यकारिणी का विषय नई तकनीक, सुरक्षा और पर्यावरण है। बिहार में आठ साल बाद हो रहे आईबीसी के दो दिवसीय सम्मेलन में देशभर से निर्माण क्षेत्र के जाने माने विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। इनमें प्रमुख रूप से भारतीय मानक ब्यूरो के उप महानिदेशक संजय पंत (मानकीकरण-2), ग्रीन बिल्डिंग विशेषज्ञ व सेवानिवृत्त विशेष महानिदेशक, भारत सरकार डॉ. उषा बत्रा, केंद्रीय लोक कार्मिक विभाग, नई दिल्ली के अपर महानिदेशक (सेवानिवृत) के.एम. सोनी और सीआईएसएफ के पूर्व डीआईजी (फायर) और इंस्टीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग यूके (एनआईबी) के अध्यक्ष और दिल्ली के पूर्व सीएफओ आरसी शर्मा प्रमुख हैं।
पुलों का निर्माण भी नई तकनीक से आसान होगा
अभी तक पुलों के लिए मजबूत पिलर तैयार करने में काफी समय लगता है। बड़े क्षेत्र में गड्ढ़ा कीजिए। फिर सरिए का ढांचा खड़ा कीजिए, फिर ढलाई और इसके बाद सेट करने का इंतजार। तब तक आप कोई दूसरा काम नहीं कर सकते। लेकिन, यह भी अब पुरानी बात हो जाएगी। पूरे खम्भे की ढलाई कहीं और होगी। आप बस गड्ढा खोदिए और बना बनाया खम्भा उसमें डाल दीजिए। इससे पुल निर्माण में समय तो बचेगा ही लागत भी काफी घट जाएगी।
ग्रीन बिल्डिंग में बिजली और पानी की होगी बचत
आने वाले समय में ग्रीन बिल्डिंग का भी चलन बढ़ेगा। इसमें पानी और बिजली का खर्च काफी कम हो जाता है। परंपरागत भवन निर्माण में 40 प्रतिशत बिजली और 24 प्रतिशत कार्बनडाईआक्साईड का उत्सर्जन होता है। ग्रीन बिल्डिंग में 30 से 40 प्रतिशत बिजली और 30 से 70 प्रतिशत पानी की बचत होती है। इसे बचाने के संसाधन अलग होते हैं, जिन्हें ग्रीन मैटेरियल कहा जाता है। प्राकृतिक ऊर्जा के उपयोग के कारण इनमें रहने वालों का स्वास्थ अपेक्षाकृत अच्छा रहता है।