वैसे तो यह बात बिलकुल सत्य है कि हर बच्चो के लिए उनकी दादी ओर नानी किसी महानायक से काम नहीं होती है. फिर चाहे वो उनकी अपनी दादी हों या क्षेत्र की कोई बुजुर्ग महिला, जिन्हें सभी प्यार से दादी अम्मा पुकारते है. वही दादियों के योगदान को किसी भी रूप में कमतर नहीं आंका जा सकता है. वही नई और रोमांचक कहानियां सुनाने से लेकर स्वादिष्ट पकवान बनाने तक दादियां हर काम बखूबी निभाती है. और आज भी हम आपको ऐसी ही एक महान दादी के बारे में आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अकेले 500 से भी अधिक पेड़ लगाकर इलाके को ही पूरा बदल दिया.
मिली जानकारी के अनुसार आज जहां दुनिया जलवायु परिवर्तन के कारण घोर संकट से जूझ रही है, वहीं उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के एक गांव में रहने वाली दादी प्रभादेवी ने 500 से भी अधिक पेड़ लगाकर एक नया जंगल ही उगा दिया और जलवायु परिवर्तन के घोर संकट से लड़ने में अहम भूमिका निभा रही है. जंहा दादी प्रभादेवी शायद जलवायु परिवर्तन जैसे शब्द न जानती हों, लेकिन उन्हें इतना जरूर पता है कि अपनी प्रकृति को बचाना आज हर इंसान के लिए प्राथमिकता है. दादी को जब भी समय मिलता है, वो पेड़ लगाती हैं.
उनका घर फल-फूल के पेड़ों से पूरी तरह घिरा हुआ है.मिली जानकारी के अनुसार दादी का एक 25 वर्षीय पोता भी है, जिसका नाम अतुल सोमवाल है. उनका कहना है कि वे बीते कुछ वर्षों से नौकरी के कारण दादी से दूर देहरादून में रहते हैं, लेकिन उनका बचपन गांव में ही दादी के साथ बीता है. अतुल के अनुसार, उन्होंने कभी भी अपनी दादी को खाली बैठे नहीं देखा, वे हमेशा कुछ न कुछ करती रहती हैं और खुद को व्यस्त रखती हैं. दादी आज 76 वर्ष की आयु हो जाने के बावजूद प्रातः पांच बजे उठ जाती हैं.मिली जानकारी के अनुसार दादी का एक 25 वर्षीय पोता भी है, जिसका नाम अतुल सोमवाल है.
उनका कहना है कि वे बीते कुछ वर्षों से नौकरी के कारण दादी से दूर देहरादून में रहते हैं, लेकिन उनका बचपन गांव में ही दादी के साथ बीता है. अतुल के अनुसार, उन्होंने कभी भी अपनी दादी को खाली बैठे नहीं देखा, वे हमेशा कुछ न कुछ करती रहती हैं और खुद को व्यस्त रखती हैं. दादी आज 76 वर्ष की आयु हो जाने के बावजूद प्रातः पांच बजे उठ जाती हैं.वही दादी के द्वारा लगाए गए पेड़ पौधे आज देहरादून को पूर्ण रूप से सुरक्षित कर रही है इससे हमे भी यह शिख मिलती है कि हमे अपने पर्यावरण का ख्याल रखना चाहिए.