शिरडी के साईं बाबा एक चमत्कारिक संत हैं। उनकी समाधि पर जो भी गया अपनी पोटली भरकर ही लौटा है। सांई बाबा का विजयादशमी से क्या कनेक्शन है आओ जानते हैं इस सिलसिले में 5 स्पेशल बातें।

1- तात्या की मृत्यु:- कहा जाता हैं कि विजयादशमी के कुछ दिन पहले ही सांईं बाबा ने अपने एक श्रद्धालु रामचन्द्र पाटिल को दशहरे पर ‘तात्या’ की मृत्यु की बात कही। तात्या बैजाबाई के बेटे थे तथा बैजाबाई सांईं बाबा की परम भक्त थीं। तात्या, सांईं बाबा को ‘मामा’ कहकर संबोधित करते थे, इसी प्रकार सांईं बाबा ने तात्या को जीवनदान देने का फैसला लिया।
2- रामविजय प्रकरण:- जब बाबा को लगा कि अब जाने का वक़्त आ गया है, तब उन्होंने श्री वझे को ‘रामविजय प्रकरण’ (श्री रामविजय कथासार) सुनाने का आदेश दिया। श्री वझे ने एक हफ्ते रोजाना पाठ सुनाया। इसके बाद ही बाबा ने उन्हें आठों प्रहर पाठ करने का आदेश दिया। श्री वझे ने उस अध्याय की द्घितीय आवृत्ति 3 दिन में पूर्ण कर दी तथा इस तरह 11 दिन गुजर गए। फिर 3 दिन और उन्होंने पाठ किया। अब श्री. वझे बिलकुल थक गए इसलिए उन्हें विश्राम करने की आज्ञा हुई। बाबा अब बिलकुल शांत बैठ गए तथा आत्मस्थित होकर वे आखिरी क्षण का इंतजार करने लगे।
3- साईं बाबा ने ली समाधि:- सांईं बाबा ने शिर्डी में 15 अक्टूबर विजयादशमी के दिन 1918 में समाधि ले ली थी। 27 सितंबर 1918 को सांईं बाबा के शरीर का तापमान बढ़ने लगा। उन्होंने अन्न-जल सब कुछ त्याग दिया। बाबा के समाधिस्त होने के कुछ दिन पूर्व तात्या का स्वास्थ्य इतना बिगड़ा कि जीवित रहना संभव नहीं लग रहा था। मगर उसके स्थान पर सांईं बाबा 15 अक्टूबर, 1918 को अपने नश्वर शरीर का त्याग कर ब्रह्मलीन हो गए। उस दिन विजयादशमी (दशहरा) का दिन था।
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