भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने आज कहा कि यदि केन्द्रीय बैंक का प्रमुख ‘‘नरम’’ है तो अपनी टीम के सदस्यों के बीच उसके सम्मान खोने का खतरा होता है। उन्होंने न्यायपालिका की दृष्टि से भी गवर्नर के कार्यकाल की रक्षा किये जाने की भी वकालत की। राजन ने अपनी पुस्तक ‘‘ आई डू व्हाट आई डू’’ के लोकार्पण के दौरान कहा कि यकीनन केन्द्रीय बैंक के प्रमुख के लिए बेहतर प्रदर्शन करने के लिए कार्यकाल आवश्यक है। उन्होंने कहा ‘‘ यदि आप कोमल और अनुसेवी हैं तो आप अपने स्टाफ सदस्यों से सम्मान खो देते है।
रघुराम राजन ने कहा कि आप एक संस्थान में कितनी दूर तक जा सकते है जहां लोग आपकी पीठ पीछे से बात करते है कि आप बहुत अनुसेवी हैं, इसलिए लोग (कार्यालय में) बहुत जल्द खुद को मजबूत करते है।’’ उन्होंने कहा कि आरबीआई और सरकार के बीच हमेशा तनाव बना रहता है। उन्होंने स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए दोनों ‘‘कार्यकाल (गवर्नर का) और स्थान (आरबीआई का) की रक्षा करने का आहवान किया।
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वहीं हाल ही में रघुराम ने नोटबंदी को लेकर बयान दिया था। पिछले साल नवंबर में 500-1000 रुपए के नोट बंद हो गए थे। ऐसे में सबने मुसीबत झेली। नोट बदलवाने के लिए सबको लाइन में लगना पड़ा। यहां तक कि नोट जारी करने वाली संस्था आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के नोट भी आसानी से नहीं बदले गए। अपनी किताब I Do What I DO के लिए नई दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में रघुराम राजन ने नोटबंदी के दिनों को याद किया। राजन ने यह भी बताया कि वह नोटबंदी के पक्ष में नहीं थे। राजन ने कहा कि वह जानते थे कि लंबे वक्त में होने वाले इसके फायदे छोटे वक्त में होने वाले असर से कमतर रहेंगे।
राजन ने बताया कि सरकार ने फरवरी 2016 में उनसे मौखिक रूप से नोटबंदी के बारे में पूछा था लेकिन तब कोई तारीख तय नहीं की गई थी। फिर रघुराम राजन का कार्यकाल पूरा होने के बाद जब आठ नवंबर 2016 को 500/1000 रुपए के नोटों को बंद करने का फैसला उन्होंने सुना तो वह खुद भी चौंक गए। रघुराम राजन उस वक्त यूएस में थे। उनके पास भी भारतीय करेंसी थी। उनमें वे नोट भी शामिल थे जो कि बंद हो गए थे। इसलिए उन्हें भारत वापस आना पड़ा ताकि वे नोट बदलवा सकें।