यूपी में रविवार को सीएम योगी आदित्यनाथ ने नई जनसंख्या नीति लागू कर दी है। इसके बाद इस मु्द्दे पर बहस छिड़ गई है। यूपी में जनसंख्या नीति लागू होने के बाद इस बारे में बिहार के सीएम नीतीश कुमार की राय सामने आई जिसमें उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण पर कानून को गैरजरूरी बताते हुए महिलाओं को शिक्षित बनाए जाने की जरूरत बताई थी।
वहीं उपमुख्यमंत्री रेणु देवी ने सोमवार को जनसंख्या नियंत्रण पर कुछ ही देर में दो अलग-अलग बयान दिए। पहले आधिकारिक बयान जारी कर उपमुख्यमंत्री ने कहा कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने जनसंख्या नीति का ऐलान कर सराहनीय कार्य किया है। चूंकि यूपी की तुलना में बिहार की प्रजनन दर अधिक है, इसलिए यूपी की तर्ज पर बिहार में भी जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनना चाहिए।
लेकिन कुछ देर बाद ही अपने बयान से रेणु पलट गईं। संशोधित बयान जारी कर उपमुख्यमंत्री ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण पर पुरुषों को जागरूक करना चाहिए। अक्सर देखा गया है कि बेटे की चाहत में पिता और ससुराल वाले महिला पर अधिक बच्चे पैदा करने का दबाव बनाते हैं। बिहार देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्यों में से एक है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के शिविरों में भी गर्भनिरोधक गोलियों के वितरण, परिवार नियोजन के उपायों की जानकारी और सुरक्षित प्रसव की व्यवस्था की जाएगी।
रेणु देवी ने कहा कि अक्सर देखा गया है कि बेटे की चाहत में पतिा और ससुराल वाले महिला पर अधिक बच्चे पैदा करने का दबाव बनाते हैं, जिससे परिवार का आकार बड़ा होता जाता है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए जेंडर इक्वलिटी पर भी काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोगों को समझना होगा कि बेटा-बेटी एक समान हैं। डिप्टी सीएम रेणु देवी ने कहा कि बिहार देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में है। यहां अभी भी प्रजनन दर 3.0 है। राज्य में खुशहाली के लिए जनसंख्या का स्थिर होना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ भी मानते हैं कि अनियंत्रित आबादी चहुमुखी विकास में बाधक होती है। डिप्टी सीएम ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए राज्य में मातृ और शिशु मृत्यु दर में कमी लाने, कुपोषण में कमी, साक्षरता दर बढ़ाने और परिवार नियोजन के बारे में व्याप्क जागरूकता लाने की आवश्यकता है। उन्होंने जोड़ा कि बिहार में ये सभी काम हो रहे हैं और इन कामों के अच्छे परिणाम भी मिले हैं। इसके बावजूद अभी इसमें और तेजी लाने और युद्धस्तर पर काम करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए महिलाओं से ज्यादा पुरुषों को जागरूक करने की जरूरत है। पुरुषों में नसबंदी को लेकर काफी डर देखा जाता है। राज्य के कई जिलों में तो नसबंदी की दर सिर्फ एक प्रतिशत है। महिलाओं के रिप्रोडक्टिव हेल्थ के लिए सरकारी अस्पतालों में कई सुविधाएं दी जाती हैं लेकिन इन सुविधाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक तभी पहुंचेगा जब पुरुष जागरूक होंगे।