पंजाब सरकार ने 7416 कांस्टेबल की भर्ती निकाली थी। भर्ती में 2 प्रतिशत पद पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए आरक्षित थे। इनको भरने को लेकर नियम स्पष्ट न होने के चलते याचिकाकर्ताओं ने सामान्य श्रेणी में आवेदन कर दिया। भर्ती के बीच में ही डीजीपी ने आदेश जारी कर इस कोटे के लिए प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश जारी कर दिया।
पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए आरक्षित कोटे में नियुक्ति को लेकर जारी आदेश का पालन करने में कोताही पंजाब गृह विभाग के प्रधान सचिव व डीजीपी को भारी पड़ गई है। हाईकोर्ट ने दोनों पर 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए पूछा है कि क्यों न उन्हें न्यायालय की अवमानना का दोषी मान सजा सुनाई जाए। साथ ही आदेश का पालन न होने पर चार जुलाई को अगली सुनवाई पर दोनों को हाजिर रहने का आदेश दिया है।
याचिका दाखिल करते हुए राकेश कुमार और अन्य ने एडवोकेट अर्जुन शुक्ला के माध्यम से हाईकोर्ट को बताया कि पंजाब सरकार ने 7416 कांस्टेबल की भर्ती निकाली थी। भर्ती में 2 प्रतिशत पद पुलिसकर्मियों के बच्चों के लिए आरक्षित थे। इनको भरने को लेकर नियम स्पष्ट न होने के चलते याचिकाकर्ताओं ने सामान्य श्रेणी में आवेदन कर दिया। भर्ती के बीच में ही डीजीपी ने आदेश जारी कर इस कोटे के लिए प्रमाणपत्र जारी करने का निर्देश जारी कर दिया।
इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने इस प्रमाणपत्र को प्राप्त किया और अपनी श्रेणी बदलने का निवेदन सरकार को दे दिया। उनके आवेदन पर विचार नहीं किया गया, जबकि कोटे के पद अभी भी रिक्त हैं। हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को याचिकाकर्ता के आवेदन को स्वीकार करने और बाकी शर्तें पूरी करने पर चार माह में नियुक्ति देने का गत वर्ष जनवरी में आदेश दिया था। इसके बाद याची ने सरकार को लीगल नोटिस दिया था जिसके जवाब में बताया गया कि दावा इसलिए खारिज किया गया है क्योंकि प्रमाणपत्र देरी से जमा करवाया गया।
कोर्ट का समय बर्बाद करने पर दोनों अधिकारियों पर लगाया जुर्माना
आदेश का पालन न होने पर अवमानना याचिका दाखिल की गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि जब देरी को लेकर हाईकोर्ट गत वर्ष जनवरी में ही स्थिति स्पष्ट कर चुका है तो इस प्रकार का बहाना बनाकर आवेदन रद्द करना सीधे तौर पर न्यायालय की अवमानना है। ऐसे में हाईकोर्ट ने अब गृह विभाग के प्रधान सचिव व डीजीपी को अगली सुनवाई पर इस विषय पर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है कि क्यों न उन्हें अवमानना का दोषी मान सजा सुनाई जाए। कोर्ट का समय बर्बाद करने पर हाईकोर्ट ने दोनों पर 25 हजार रुपये जुर्माना लगाते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि यदि अगली सुनवाई तक आदेश का पालन न हुआ तो दोनों को खुद अदालत में हाजिर रहना होगा।