उत्तर प्रदेश की सियासत में अंधविश्वास खूब देखने को मिलता है. नोएडा इसका एक उदाहरण है. ऐसा माना जाता है कि जो भी मुख्यमंत्री नोएडा गया, वह दोबारा सत्ता में नहीं लौटा. खास बात ये है कि खुद सीएम अखिलेश अपने कार्यकाल में एक बार भी नोएडा नहीं गए. अब नया अंधविश्वास मेट्रो प्रौजैक्ट के साथ जुड़ता दिख रहा है.
इसे इत्तेफाक ही कहा जाएगा कि देश के कई मेट्रो प्रोजैक्ट में जिस भी सरकार ने इनका शिलान्यास किया, वह अगला चुनाव हार गई. चाहे कोलकाता मेट्रो हो, दिल्ली मेट्रो, बेंगलुरू, मुबई या जयपुर के मेट्रो प्रोजैक्ट, सभी जगह इस तरह का अजीब इत्तेफाक देखा गया.
यूपी के सत्ता के गलियारे में इसी इत्तेफाक को लेकर खासी चर्चा है, सभी लखनऊ मेट्रो प्रौजैक्ट की तरफ देख रहे हैं, जो अखिलेश सरकार की देन है. अखिलेश इस प्रोजैक्ट के शिलान्यास के साथ ही ट्रायल रन का उद्घाटन भी कर चुके हैं.
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एक जून 1972 को जब कोलकाता में मेट्रो प्रोजैक्ट तैयार किया गया, उस समय पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की सरकार थी. तत्कालीन सीएम सिद्धार्थशंकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उपस्थिति में 29 दिसंबर 1972 को कोलकाता मेट्रो का शिलान्यास किया. इसके बाद 30 अप्रैल 1977 में राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा. 24 अक्टूबर 1984 को मेट्रो प्रोजैक्ट के पूरा होने पर नए मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने इसका उद्घाटन किया.
बात अगर दिल्ली मेट्रो की करें तो दिल्ली मेट्र रेल कॉर्पोरेशन का गठन मई 1995 में किया गया. एक अक्टूबर 1998 को इसका काम शुरू हुआ, उस समय दिल्ली में भाजपा की सरकार थी. लेकिन 3 दिसंबर 1998 को कांग्रेस की शीला दीक्षित दिल्ली की नई मुख्यमंत्री बन गईं. उन्होंने ही 25 दिसंबर 2002 को पहली मेट्रो रेल का उद्घाटन किया.
जयपुर मेट्रो पर काम 13 नवंबर 2010 को शुरू हुआ, 18 सितंबर 2013 को मुख्यमंत्री कांग्रेस के सीएम अशोक गहलोत ने इसका उद्घटन भी कर दिया लेकिन अगला चुनाव काग्रेस हार गई और भाजपा ने सत्ता में वापसी कर ली.
महाराष्ट्र में विलासराव देशमुख की सरकार ने मुंबई मेट्रो का शिलान्यास किया. इसके बाद मेट्रो का काम भी कांग्रेस सरकार के दौरान पूरा कर लिया गया लेकिन अगला चुनाव पार्टी भाजपा के हाथों हार गई.
वहीं बेंगलुरू की नम्मा मेट्रो के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. फरवरी 2006 में इसका शिलान्यास कांग्रेस सरकार ने किया, लेकिन जब 20 अक्टूबर 2011 को इसका उद्घाटन किया गया, उस समय राज्य में भाजपा का शासन था.