नई दिल्ली। बजट में सरकार ने लांग टर्म कैपिटल गेन पर फिर से टैक्स लगाने की घोषणा की है। इस घोषणा से शेयर बाजार में तेज गिरावट आई है। आम निवेशकों के मन में भी इससे जुड़े कई सवाल हैं। ऐसे में यह जानना भी जरूरी है कि निवेश करते हुए कौन सी रणनीतियां अपनाकर आप इसके असर को कम कर सकते हैं। निवेश का तरीका ही आपके रिटर्न पर इस टैक्स से पड़ने वाले असर को कम या ज्यादा करेगा। बार-बार खरीद-बिक्री करते रहने वालों को ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
लिस्टेड शेयरों और इक्विटी म्यूचुअल फंडों में लांग टर्म कैपिटल गेंस पर दोबारा टैक्स लगाने का फैसला 2005 के बाद से पर्सनल सेविंग्स टैक्सेशन में सबसे बड़ा बदलाव है। 2005 में ही इस टैक्स को हटाया गया था। इन 13 साल में भारत में निवेशकों की दुनिया बहुत बदल चुकी है। अब बहुत बड़ी संख्या में लोग निवेश करने लगे हैं। 2005 से पहले कर की यह व्यवस्था आम थी, लेकिन आज बहुत से लोग ऐसे हैं, जो इस कराधान की व्यवस्था से बिलकुल परिचित नहीं हैं।
कुछ आधारभूत बातों पर ध्यान देते हैं। एक फरवरी के बाद से ऐसे किसी स्टॉक या इक्विटी म्यूचुअल फंड को बेचने पर, जिसे आपने लंबे समय (एक साल या उससे ज्यादा) से रखा हुआ है, उस पर हुए गेन पर टैक्स लगेगा। इस टैक्स के लिए आपकी कमाई का आकलन 31 जनवरी के बाजार भाव के हिसाब से किया जाएगा। अगर साल भर में आपने एक लाख रुपये से ज्यादा का लाभ कमाया तो 10.04 फीसद (सेस समेत) टैक्स के रूप में देना होगा।
इसे लेकर आप खुद को यह कहकर समझा सकते हैं कि आपकी आय तो 30 फीसद वाली आयकर स्लैब में आती है, उसकी तुलना में तो यह टैक्स बहुत कम है। सच यह है कि यह टैक्स 10 फीसद से ज्यादा भारी पड़ सकता है। वैसे तो सरकार को आपकी कमाई में से 10 फीसद ही मिलेगा, लेकिन आपको रिटर्न में 30 से 40 फीसद तक का नुकसान हो सकता है। यह निर्भर करेगा आपके निवेश के तरीके पर। हालात को समझकर और तरीके में बदलाव कर आप इस नुकसान को कम कर सकते हैं।
पिछले साल दिसंबर में जब इस टैक्स की वापसी की चर्चाएं चली थीं, तब मैंने उल्लेख किया था कि 10 या 15 साल लंबी अवधि के निवेशकों को ज्यादा नुकसान होगा। वजह है कि कोई इक्विटी निवेशक इतनी अवधि तक निवेश को बचाकर नहीं रखता है। किसी ना किसी वक्त पर वह कुछ शेयरों को बेच देता है और नए खरीद लेता है। कराधान के नियम के अनुसार, लेनदेन में ऐसे हर बदलाव से होने वाली कमाई पर टैक्स लगेगा। कुल मिलाकर अंत में होने वाली कमाई कम हो जाती है। अंतिम प्रभाव बड़ा भी हो सकता है, लेकिन यह निवेशक की खरीद-बिक्री के पैटर्न पर निर्भर करता है।