अपने दांतों को ब्रश करने और बाल संवारने जैसी आपकी रोज की आदतों में दिन में दो बार फोन चार्ज करना भी जरूर शामिल होगा। बहुत हद तक मुमकिन है कि भविष्य में आप फोन चार्ज करने के बाद चार्जर के बारे में भूल जाएं। वैज्ञानिकों को ऐसी तकनीक खोजने में सफलता हासिल हुई है, जिससे हर तीन महीने में सिर्फ एक बार फोन चार्ज करना होगा। वैज्ञानिकों ने एक नया मटीरियल तैयार किया है, जो प्रोसेसर को 100 गुना कम ऊर्जा का उपयोग करने की अनुमति देता है। मिशिगन और कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का खोजा यह मैग्नेटोइलेक्ट्रिक मल्टीफेरिक मटीरियल परमाणुओं की पतली परतों का निर्माण करता है जो चुंबकीय ध्रुवीय फिल्म बनाते हैं। इस सिद्धांत का उपयोग बाइनरी कोड 1 और 0 को भेजने के लिए किया जा सकता है, जिस पर हमारे कंप्यूटर काम करते हैं। आसान भाषा में वे बिजली के केवल एक छोटे से हिस्से का उपयोग करके डेटा रिसीव और सेंड कर सकते हैं। मौजूदा प्रोसेसर सेमीकंडक्टर बेस्ड सिस्टम के उपयोग से बनाए जाते हैं, जिन्हें लगातार करंट फ्लो की जरूरत होती है। मैग्नेटोइलेक्ट्रिक मल्टीफेरिक्स सिस्टम का उपयोग कर बनाए जाने वाले प्रोसेसर को बिजली के कम पल्स की जरूरत होगी, जिससे कम ऊर्जा का उपयोग लंबे समय तक किया जा सकेगा। लॉरेंस बर्कले नैशनल लैबरेटरी में सहयोगी प्रयोगशाला निदेशक राममूर्ति रमेश के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स वर्तमान में कुल वैश्विक ऊर्जा के 5 प्रतिशत का कन्ज्यूम करते हैं। 2030 तक यह कंजंप्शन बढ़कर 40 फीसदी से 50 फीसदी हो जाएगा। यह तकनीक ऊर्जा उपभोग के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी।

एक बार चार्ज करने पर तीन महीने तक चलेगा मोबाइल

अपने दांतों को ब्रश करने और बाल संवारने जैसी आपकी रोज की आदतों में दिन में दो बार फोन चार्ज करना भी जरूर शामिल होगा। बहुत हद तक मुमकिन है कि भविष्य में आप फोन चार्ज करने के बाद चार्जर के बारे में भूल जाएं। वैज्ञानिकों को ऐसी तकनीक खोजने में सफलता हासिल हुई है, जिससे हर तीन महीने में सिर्फ एक बार फोन चार्ज करना होगा।अपने दांतों को ब्रश करने और बाल संवारने जैसी आपकी रोज की आदतों में दिन में दो बार फोन चार्ज करना भी जरूर शामिल होगा। बहुत हद तक मुमकिन है कि भविष्य में आप फोन चार्ज करने के बाद चार्जर के बारे में भूल जाएं। वैज्ञानिकों को ऐसी तकनीक खोजने में सफलता हासिल हुई है, जिससे हर तीन महीने में सिर्फ एक बार फोन चार्ज करना होगा।  वैज्ञानिकों ने एक नया मटीरियल तैयार किया है, जो प्रोसेसर को 100 गुना कम ऊर्जा का उपयोग करने की अनुमति देता है। मिशिगन और कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का खोजा यह मैग्नेटोइलेक्ट्रिक मल्टीफेरिक मटीरियल परमाणुओं की पतली परतों का निर्माण करता है जो चुंबकीय ध्रुवीय फिल्म बनाते हैं। इस सिद्धांत का उपयोग बाइनरी कोड 1 और 0 को भेजने के लिए किया जा सकता है, जिस पर हमारे कंप्यूटर काम करते हैं। आसान भाषा में वे बिजली के केवल एक छोटे से हिस्से का उपयोग करके डेटा रिसीव और सेंड कर सकते हैं।  मौजूदा प्रोसेसर सेमीकंडक्टर बेस्ड सिस्टम के उपयोग से बनाए जाते हैं, जिन्हें लगातार करंट फ्लो की जरूरत होती है। मैग्नेटोइलेक्ट्रिक मल्टीफेरिक्स सिस्टम का उपयोग कर बनाए जाने वाले प्रोसेसर को बिजली के कम पल्स की जरूरत होगी, जिससे कम ऊर्जा का उपयोग लंबे समय तक किया जा सकेगा।   लॉरेंस बर्कले नैशनल लैबरेटरी में सहयोगी प्रयोगशाला निदेशक राममूर्ति रमेश के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स वर्तमान में कुल वैश्विक ऊर्जा के 5 प्रतिशत का कन्ज्यूम करते हैं। 2030 तक यह कंजंप्शन बढ़कर 40 फीसदी से 50 फीसदी हो जाएगा। यह तकनीक ऊर्जा उपभोग के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी।

वैज्ञानिकों ने एक नया मटीरियल तैयार किया है, जो प्रोसेसर को 100 गुना कम ऊर्जा का उपयोग करने की अनुमति देता है। मिशिगन और कॉर्नेल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का खोजा यह मैग्नेटोइलेक्ट्रिक मल्टीफेरिक मटीरियल परमाणुओं की पतली परतों का निर्माण करता है जो चुंबकीय ध्रुवीय फिल्म बनाते हैं। इस सिद्धांत का उपयोग बाइनरी कोड 1 और 0 को भेजने के लिए किया जा सकता है, जिस पर हमारे कंप्यूटर काम करते हैं। आसान भाषा में वे बिजली के केवल एक छोटे से हिस्से का उपयोग करके डेटा रिसीव और सेंड कर सकते हैं।

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मौजूदा प्रोसेसर सेमीकंडक्टर बेस्ड सिस्टम के उपयोग से बनाए जाते हैं, जिन्हें लगातार करंट फ्लो की जरूरत होती है। मैग्नेटोइलेक्ट्रिक मल्टीफेरिक्स सिस्टम का उपयोग कर बनाए जाने वाले प्रोसेसर को बिजली के कम पल्स की जरूरत होगी, जिससे कम ऊर्जा का उपयोग लंबे समय तक किया जा सकेगा।

लॉरेंस बर्कले नैशनल लैबरेटरी में सहयोगी प्रयोगशाला निदेशक राममूर्ति रमेश के मुताबिक, इलेक्ट्रॉनिक्स वर्तमान में कुल वैश्विक ऊर्जा के 5 प्रतिशत का कन्ज्यूम करते हैं। 2030 तक यह कंजंप्शन बढ़कर 40 फीसदी से 50 फीसदी हो जाएगा। यह तकनीक ऊर्जा उपभोग के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी।

 

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