देहरादून: लंबे इंतजार के बाद ही सही आखिरकार वन महकमे को बारिश की बूंदों का मोल समझ आ ही गया। राज्य में हर साल बड़े पैमाने पर आग से तबाह हो रही वन संपदा को बचाने के लिए उसने वर्षा जल संरक्षण की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। कोशिशें परवान चढ़ी तो इस मर्तबा मानसून सीजन में ही वनों में जलाशय और जलकुंडों के जरिए ही करीब 17 करोड़ लीटर पानी को रोका जा सकेगा। यही नहीं, खाल-चाल, ट्रैंच व चेकडैम पर भी फोकस किया जा रहा है, ताकि जंगलों में अधिक से अधिक नमी रहने पर वहां आग लगने की आशंका कम से कम हो।
राज्य के वनों में आग लगने के कारणों के पीछे वहां नमी का अभाव एक बड़ी वजह है। वर्ष 2016 में आग के विकराल रूप धारण करने के बाद तब संसदीय समिति के दल ने प्रदेश का दौरा कर जंगलों का निरीक्षण किया। दल ने अपनी रिपोर्ट में आग के पीछे नमी की कमी को प्रमुख कारण बताते हुए इस दिशा में कदम उठाने का सुझाव दिया था। इसे देखते हुए वर्षा जल संरक्षण की दिशा में फोकस करने का निर्णय लिया गया।
बता दें कि प्रदेश में सालभर में सामान्य तौर पर 1581 मिमी वर्षा होती है, जिसमें मानसून सीजन का योगदान 1229 मिमी का है। बारिश का यह पानी यूं ही जाया न हो, इसे सहेजने के लिए वन महकमे ने जंगलों में तीन हजार जलाशय व जलकुंड तैयार हो रहे हैं, जिनकी क्षमता 16.75 करोड़ लीटर है। इसके साथ ही 12 हजार ट्रैंच, चेकडैम भी तैयार किए गए हैं। यही नहीं, वनों में वर्षा जल संरक्षण के लिए पारंपरिक तौर तरीकों खाल-चाल पर भी फोकस किया जा रहा है।
प्रमुख मुख्य वन संरक्षक उत्तराखंड जयराज के मुताबिक इस बार 20 लाख से अधिक खाल-चाल (तालाबनुमा छोटे-बड़े गड्ढे) भी ध्यान केंद्रित किया गया है। जलाशय, जलकुंड, टैंच, खाल-चाल, चेकडैम के जरिए बड़े पैमाने पर वर्षाजल को वनों में रोकने की तैयारी है। इससे जंगलों में नमी रहने से आग की संभावना कम से कम रहेगी, वहीं जैव विविधता के संरक्षण के साथ ही जलस्रोतों को पुनर्जीवन देने में यह मददगार साबित होगा।
ऐसे सहेजी जाएंगी बूंदें
क्षमता, संख्या