वेश्यावृत्ति की कहानी – उसे अंधेरा पसंद नहीं था. अब गांव में बिजली कहां होती है जो रात में उसे रोशनी नसीब होती. दीए की मध्यम रोशनी में उसे वो राहत नहीं मिलती थी, इसलिए शाम होते ही वो नदी के पास आकर बैठ जाया करती थी. जहां पर जुगनू झुंड बनाकर उजाला फैलाते थे. लेकिन रोशनी की ये तलाश उसके लिए जिंदगी भर का अंधेरा साबित हुई. पड़ोस के एक आदमी की नजर न जाने उस पर कब से थी. उसे बस इतना ही याद है कि अगली सुबह जब उसकी आंखें खुली, तो वो एक अंधेरी कोठरी में बंद थी. फिर तो हमेशा के लिए उसके नसीब में अंधेरा ही लिख दिया गया. 17 साल की उम्र में उसे ज्यादा कुछ पता नहीं था लेकिन उसके पास आने वाले लोग उसके ग्राहक बताए जाते थे और वो रात की रानी. जिसकी रातों के सौदे कभी चंद सिक्कों तो कभी लाखों में होते थे.
ये कहानी हर उस लड़की की हो सकती है जो जबरन वेश्यावृत्ति के धंधे में गांवों या शहर के दूर-दराज के इलाकों से लाकर धकेल दी जाती हैं. देशभर में ऐसे कई रेड लाइट एरिया हैं जो जिस्मफरोशी का दलदल कहे जाते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में आखिर वेश्यावृत्ति शुरू कैसे हुई थी.
आइए डालते हैं एक नजर भारत में वेश्यावृत्ति के इतिहास पर
‘नगरवधु’ से शुरू दोहरे समाज की कहानी
जैसा कि नामसे ही पता चलता है कि प्राचीन भारत में नगरवधु हुआ करती थी. जिस पर किसी एक आदमी का नहीं बल्कि नगरभर के प्रभावशाली व्यक्तियों का स्वामित्व होता था. शुरूआत में नगरवधुएं केवल नाचने, गाने और मनोरंजन का ही काम किया करती थी लेकिन धीरे-धीरे इन्हें दाम देकर खरीदा जाने लगा. दूसरी सदी में सुदरका नाम के लेखक द्वारा संस्कृत में लिखी गई ‘मृछकतिका’ में नगरवधु का पूरा विवरण मिलता है जिससे ये साबित होता है कि दिन में मनोरंजन करने वाली ये लड़कियां रात में दाम देकर राजाओं के पास बुलाई जाती थी. इनमें आम्रपाली नाम की नगरवधु बहुत मशहूर है. कहते हैं वो इतनी सुंदर थी कि पूरा नगर ही नहीं बल्कि कई राज्यों के राजा उसे जीतने का प्रयास करते थे.
तवायफों को भी बनाया गया वेश्यावृत्ति का हिस्सा
शुरूआत में मुगल काल के दौरान तवायफें केवल दरबार में नाच-गाना करके शाही परिवार का मनोरंजन किया करती थी, लेकिन धीरे-धीरे इनके कोठों को वेश्यावृत्ति के ठिकानों में बदल दिया गया.
गोवा में जापान से लाई जाती थी सेक्स गुलाम
16-17वीं शताब्दी में गोवा पर पुर्तगालियों का कब्जा हुआ करता था. उस समय ये लोग जापान से मुंह मांगे पैसे देकर सेक्स गुलाम बनाई गई लड़कियों को जापान से खरीदकर लाया करते थे. धीरे-धीरे जब पुर्तगालियों की दोस्ती भारत के अन्य ब्रिटिश शासकों से हुई तो वो भारत से गरीब लड़कियों के परिवारों को पैसे देकर या जबरन लड़कियों को उठाकर वेश्यावृत्ति के ठिकानों पर भेजने लगे. इस तरह आर्मी कैंप के पास ही वेश्यावृत्ति के कोठे बनाकर ब्रिटिश सिपाही अपनी मनमर्जी से इन लड़कियों के ठिकाने पर पहुंच जाते थे.
19वीं सदी से फैलने शुरू हुए रेड लाइट एरिया
आज शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसने भारत में फैले इन रेड लाइट एरिया के बारे में न सुना हो. महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई इलाकों में ‘देवदासी बेल्ट’ वेश्यावृत्ति से ही जुड़ा हुआ नाम है. साथ ही कोलकत्ता का सोनागाछी, मुंबई का कमाटीपुरा, दिल्ली का जीबी रोड़, आगरा की कश्मीरी मार्केट, ग्वालियर का रेशमपुरा आदि इलाके रेड लाइट एरिया के लिए बदनाम है.
पुलिस और प्रशासन आज भी हैं नाकाम
ये एक ज्वंलत सवाल है कि इतनी सदियां गुजर जाने के बाद भी आज तक पुलिस, प्रशासन और सरकार वेश्यावृत्ति पर लगाम लगाने के लिए कोई सार्थक कदम नहीं उठा पाई है. वहीं दूसरी तरफ वेश्यावृत्ति को नियमित करके या कानूनी वैधता दिलाने के लिए बहस होती दिखाई देती है.
एक सवाल समाज से भी
जरा उस स्थिति के बारे में सोचिए, जब कोई लड़की भीड़ से गुजरती है और कोई व्यक्ति उसे गलत तरीके से स्पर्श करता है, ऐसे में घर जाकर न जाने वो अपना हाथ कितनी बार धोती है. अनचाहे स्पर्श की व्यथा सिर्फ एक लड़की ही समझ सकती है. इसी तरह अपनी मर्जी के खिलाफ इस दलदल में उतारी गई लड़कियों को हर रोज किसी भी पुरूष के साथ हमबिस्तर होना पड़ता है. क्या इंसानियत के तौर पर ही सही, समाज से उपेक्षित इन लड़कियों के प्रति क्या हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है?