भारत और पाकिस्तान 18 साल बाद एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय अदालत में आमने-सामने हैं. अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारतीय नौसेना के अधिकारी कुलभूषण जाधव मामले पर पाकिस्तान ने दलील दी कि यह उसके राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला है. लिहाजा इस पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय को दखल देने का कोई हक नहीं है. हालांकि पाकिस्तान को फिर से अंतरराष्ट्रीय अदालत में मुंह की खानी पड़ेगी.
18 साल पहले भी उसको अंतरराष्ट्रीय अदालत में भारत ने करारी शिकस्त दी थी. दरअसल, 10 अगस्त 1999 को पाकिस्तानी नौसेना का टोही विमान भारतीय क्षेत्र में घुस आया था, जिसे भारतीय वायुसेना ने मार गिराया था. इस घटना में विमान में सवार 16 पाकिस्तानी नौसैनिकों की मौत हो गई थी. इस पर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय अदालत गया था.
पाकिस्तान ने मांगा था छह करोड़ डॉलर का मुआवजा
PAK का दावा था कि भारत ने उसके वायुक्षेत्र में इस विमान को मार गिराया है. उसने इस नुकसान के एवज में छह करोड़ रुपये डॉलर के मुआवजे की मांग की थी. हालांकि अंतरराष्ट्रीय अदालत ने पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया था. अदालत ने कहा था कि यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. लिहाजा वह इस पर दखल नहीं देगा. अदालत की 16 जजों की पीठ ने 21 जून 2000 को 14-2 से पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया.
जाधव मामले की सुनवाई खत्म
सोमवार को नीदरलैंड के हेग की अंतर्राष्ट्रीय अदालत में कुलभूषण जाधव मामले पर सुनवाई खत्म हो गई है. सुनवाई में भारत की दलीलों के बाद पाकिस्तानी पक्ष ने जवाब पेश किया. पाक के वकीलों ने जाधव पर आतंकवाद के आरोपों को जायज ठहराते हुए फांसी के फैसले को जायज ठहराया. पाकिस्तान ने इस मामले में अंतर्राष्ट्रीय अदालत के अधिकार क्षेत्र को भी चुनौती दी और दावा किया कि इस मामले में विएना संधि लागू नहीं होती. अदालत ने फैसले की तारीख जल्द तय करने की बात कही है. भारत ने कहा कि पाकिस्तान ने पूर्व नौसैनिक अधिकारी से राजनयिक से मिलने के लिए 16 बार आवेदन किया, लेकिन उसने खारिज कर दिया, जो विएना संधि का खुला उल्लंघन है.