गुमनाम जिंदगी जी रहे अवध के प्रिंस अली रजा उर्फ साइरस की मौत हो गई है. वे कई दशकों से खंडहर हो चुके मालचा महल में राजकुमारी सकीना के साथ रह रहे थे. बताया जा रहा है कि उनकी मौत करीब एक माह पहले हुई, लेकिन इसकी किसी को जानकारी नहीं थी.
मालूम हो कि मालचा महल दिल्ली के पास सेंट्रल रिज के घने जंगल में है स्थित है. यह महल आज खंडहर है. यहां ना तो बिजली है और ना ही पानी. इसके बावजूद प्रिंस अली रजा और राजकुमारी सकीना अपने 12 कुत्तों के साथ इस महल में रहा करते थे.
शायद यह बात आपको हैरान कर देगी कि प्रिंस रजा एक साइकिल से चलते थे. उनके पास ना तो कोई आलीशान गाड़ी थी और ना ही बैंक बैलेंस. वे राजकुमारी सकीना के गहने बेचकर कुत्तों के लिए हड्डियां और अपने लिए खाना लाते थे.
सबसे ख़ास बात तो यह कि तंगी के बावजूद वे देसी घी में खाना खाते थे. जर्जर महल में उनके पास ना तो सोफा बचा था और ना ही सोने के लिए बिस्तर. वे जमीन पर कालीन बिछा कर सोते थे.
बता दें कि जिस मालचा महल में प्रिंस रजा और सकीना रहते थे उसे दिल्ली के मुस्लिम शासक फिरोजशाह तुगलक ने बनवाया था. इतिहासकारों की मानें तो उस वक्त तुगलक इसे शिकारगाह की तरह इस्तेमाल करते थे.
बताया जाता है कि भारत में राजशाही रियासतों के विलय के बाद अवध राजघराने की बेगम विलायत महल 1975 में 12 कुत्ते, नौकर, बेटी सकीना महल और बेटे अली रजा के साथ नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आई.
यहां वे करीब 10 साल तक नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज में रहीं और भारत सरकार के खिलाफ धरना दिया. धरने के दौरान जब रेलवे के अफसर उनको हटाने आते, तो उनके कुत्ते उन पर झपट पड़ते. पीछे से वो धमकी देतीं कि अगर कोई भी आगे आया, तो सांप का जहर पीकर वो जान दे देंगी.
कई बार बातचीत भी हुई पर नतीजा नहीं निकला. आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उनसे मिलने रेलवे स्टेशन पहुंचीं और आखिरकार 1985 में भारत सरकार ने बेगम विलायत महल को इसका मालिकाना हक दे दिया.
उन्होंने भारत सरकार से पेंशन की भी मांग की, लेकिन सरकार ने इसे नहीं माना. हालांकि, उनके महल की मरम्मत कराने का वादा जरूर इंदिरा गांधी ने किया था, लेकिन उनके निधन के बाद उन्हें कोई मदद नहीं मिल सकी.