‘क़िताब’, ‘इजाज़त’ और ‘ लिबास’ जैसी फिल्मों के कथानकों की तरह जीवन में चले आये हुए रिश्तों के गहरे धागे आज कहीं दरक गए हैं , भारत और पाकिस्तान की सरहदों पर रची गयीं नो मैंन्स लैंड की अनेकों कहानियां आज अधूरी छूट गईं हैं, जिनकी ख़ातिर एक शायर के भीतर का अफसानानिगार वैसे ही तड़पता है जैसे गीतों के पतंग की डोर से कटा, कहानियों का कोई सूफ़ी दरवेश. आप ‘यार जुलाहे’ से कुछ अशआर पढ़कर इस बात की तस्दीक़ कर सकते हैं. ‘राख को भी कुरेद कर देखो, अब भी जलता हो कोई पल शायद, कितना अरसा हुआ कोई उम्मीद जलाए, कितना अरसा हुआ किसी कंदील पर जलती रोशनी रखे…’ यह भी पढ़ें: गीत लिखना मेरा पेशा है, लेकिन कविता मेरे जीवन का वृतान्त है: गुलजार प्रेम, दोस्ती, विश्वास, रिश्ते, अधूरेपन, दर्द, रूहानी एहसास, पीड़ा, मनुहार, उदासी, भय , उत्साह, उमंग, उल्लास, तल्लीनता, सभी तरह के मनोभावों के कवि के रूप में गुलज़ार को पहचान मिली है. वो अपने शायर का एक सिरा पकड़कर दूसरे से मुख़ातिब रह सकते हैं. वो विचार के इस या उस तरफ़ खड़े न भी हों, तो भी गहरे मानवीय सरोकारों से हम सबको भीगते रहने के सौजन्य रच सकते हैं. उनका होना इसी अर्थ में एक शायर, गीतकार, लेखक और अफसाना लिखने वाले के किरदार में अत्यंत प्रमाणिक बन जाया करता है. इसी एहसाह के तहत यह जज्बा भी कायम रहता है कि गीत लिखते वक्त उनके शायर से मुलाक़ात होती है, तो अफसाने के समय कहीं गहरे गीतकार गुनगुना रहा होता है. हर उम्र की दहलीज़ पर, वय को परे खिसकाते हुये और बिल्कुल नयी पीढ़ी से उसकी ही शब्दावली में सम्वाद को तत्पर गुलज़ार साहब की कलम ये कहने का हौसला रखती है.. ऐसी उलझी नज़र उनसे हटती नहीं दांत से रेशमी डोर कटती नहीं.. उम्र कब की बरस के सुफैद हो गयी कारी बदरी जवानी की छटती नहीं… वल्लाह ये धड़कन बढ़ने लगी है चेहरे की रंगत उड़ने लगी है डर लगता है तन्हा सोने में जी दिल तो बच्चा है जी, थोड़ा कच्चा है जी… लेखक गुलजार पर ‘यार जुलाहे…’ नाम से किताब लिख चुके हैं और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता किताब लता सुर गाथा के लेखक हैं. डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

Birthday Special

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‘राख को भी कुरेद कर देखो,
अब भी जलता हो कोई पल शायद,
कितना अरसा हुआ कोई उम्मीद जलाए,
कितना अरसा हुआ किसी कंदील पर जलती रोशनी रखे…’

यह भी पढ़ें: गीत लिखना मेरा पेशा है, लेकिन कविता मेरे जीवन का वृतान्त है: गुलजार

प्रेम, दोस्ती, विश्वास, रिश्ते, अधूरेपन, दर्द, रूहानी एहसास, पीड़ा, मनुहार, उदासी, भय , उत्साह, उमंग, उल्लास, तल्लीनता, सभी तरह के मनोभावों के कवि के रूप में गुलज़ार को पहचान मिली है. वो अपने शायर का एक सिरा पकड़कर दूसरे से मुख़ातिब रह सकते हैं. वो विचार के इस या उस तरफ़ खड़े न भी हों, तो भी गहरे मानवीय सरोकारों से हम सबको भीगते रहने के सौजन्य रच सकते हैं. उनका होना इसी अर्थ में एक शायर, गीतकार, लेखक और अफसाना लिखने वाले के किरदार में अत्यंत प्रमाणिक बन जाया करता है.

इसी एहसाह के तहत यह जज्बा भी कायम रहता है कि गीत लिखते वक्त उनके शायर से मुलाक़ात होती है, तो अफसाने के समय कहीं गहरे गीतकार गुनगुना रहा होता है. हर उम्र की दहलीज़ पर, वय को परे खिसकाते हुये और बिल्कुल नयी पीढ़ी से उसकी ही शब्दावली में सम्वाद को तत्पर गुलज़ार साहब की कलम ये कहने का हौसला रखती है..

ऐसी उलझी नज़र उनसे हटती नहीं
दांत से रेशमी डोर कटती नहीं..
उम्र कब की बरस के सुफैद हो गयी
कारी बदरी जवानी की छटती नहीं…
वल्लाह ये धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी
दिल तो बच्चा है जी, थोड़ा कच्चा है जी…

लेखक गुलजार पर ‘यार जुलाहे…’ नाम से किताब लिख चुके हैं और राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता किताब लता सुर गाथा के लेखक हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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