अभी-अभी: प्रियंका को यूपी के बड़ी जिम्मेदारी, राजी हो गये राहुल

अभी-अभी: प्रियंका को यूपी के सीएम ने दी बड़ी जिम्मेदारी, राजी हो गये राहुल

गुजरात के सीएम रहते नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार बनके प्रशांत किशोर ने उन्हें पीएम की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए रणनीति बनाई थी. फिर मोदी-शाह से नाराजगी हुई तो बिहार में नीतीश कुमार और महागठबंधन के साथ खड़े होकर बीजेपी को चारों खाने चित्त करने में अपनी भूमिका अदा की. बाद में यूपी और पंजाब चुनाव में कांग्रेस के रणनीतिकार रहे पीके आजकल कांग्रेस से दूर हैं. दरअसल, यूपी की बड़ी हार ने पंजाब में कांग्रेस की बड़ी जीत पर बड़ा पर्दा जो डाल दिया है. लेकिन पीके फिलहाल कांग्रेस के खिलाफ नहीं जाना चाहते.अभी-अभी: प्रियंका को यूपी के बड़ी जिम्मेदारी, राजी हो गये राहुल

सियासी रणनीतिकार प्रशांत किशोर इन दिनों वाईएसआर कांग्रेस के लिए सियासी रणनीति बना रहे हैं. उन्होंने आंध्र प्रदेश को इसलिए चुना है क्योंकि, वहां कांग्रेस लड़ाई में नहीं है. पीके के करीबियों की मानें तो उनको तेलंगाना में भी आमंत्रित किया गया लेकिन वहां कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है, इसलिए उन्होंने ऑफर ठुकरा दिया. दरअसल, पीके कांग्रेस के खिलाफ नहीं जाना चाहते, उनके करीबियों का मानना है कि, पीके और राहुल गांधी में तमाम मुद्दों पर सहमति होती है और रही भी है, लेकिन कांग्रेस पार्टी राहुल के कहने पर चलती नहीं है.

सूत्रों के मुताबिक, पीके ने राहुल गांधी को दो टूक बता दिया है कि, उनके और राहुल गांधी बीच तकरीबन हर मुद्दे पर सहमति होती है लेकिन दुख की बात है कि, कांग्रेस पार्टी उसके उलट रणनीति बनाती है और नतीजा भी खिलाफ जाता है. पीके ने राहुल को उदाहरण देते हुए कहा है कि पंजाब में कांग्रेस ने उनकी रणनीति मानी तो आम आदमी पार्टी की हवा को रोककर सरकार बन गयी लेकिन यूपी में राहुल गांधी की सहमति के बावजूद कांग्रेस ने अलग रुख अपनाया और चुनाव में उसकी दुर्दशा हो गयी.

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सूत्रों के मुताबिक, पीके ने राहुल से यूपी की हार के बाद अपनी बात रख दी है. भविष्य का प्लान भी बताया है. लेकिन वो तभी कांग्रेस के साथ आगे बढ़ना चाहते हैं, जब पार्टी उनकी उन बातों पर पर पूरी तरह अमल करने को तैयार हो, कम से कम जिन पर उनके और राहुल के बीच सहमति हो, उन बातों को माना जाए. पीके ने राहुल से से इन अहम मुद्दों पर चर्चा की है.

1. यूपी में 27 साल यूपी बेहाल का नारा और किसान कर्ज माफी का दांव खेलकर कांग्रेस बेहतर कर सकती थी, लेकिन पार्टी ने उलट फैसला किया.

2. यूपी में प्रियंका गांधी को सीएम उम्मीदवार बनाने पर हमारी सहमति थी, लेकिन पार्टी तैयार नहीं हुई.

3. प्रियंका नहीं तो राहुल गांधी सीएम उम्मीदवार बनते, इस पर भी पीके और राहुल में सहमति थी, लेकिन पार्टी ने इसको भी नहीं माना.

 

4. आखिर में शीला दीक्षित के नाम के सहारे भी किसान यात्रा निकालकर सब ठीक चला. ब्राह्मण, राजपूत, मुस्लिम और गैर-जाटव दलित की रणनीति पर हम बेहतर कर रहे थे. लेकिन फिर पार्टी को रणनीति बदलने को मजबूर किया गया.

5. इसी ऊहापोह में नवंबर से लेकर तीन महीने कांग्रेस का चुनाव प्रचार यूपी में नहीं हुआ. क्योंकि अचानक सपा से गठबंधन की बात आ गयी, जिसके लिए राहुल और पीके सहमत नहीं थे. गठबंधन की बात आते ही पीके आगे यूपी में काम ही नहीं करना चाहते थे.

6. पीके को इन तीन महीनों में जबरन सपा से तालमेल करने को मजबूर किया गया, जिसके लिए दोनों ही तैयार नहीं थे. फिर भी पीछे हटने के बजाय दोनों ही पार्टी की रणनीति के मुताबिक आगे बढ़े.

7. पीके ने राहुल को चेताया था कि, सपा से तालमेल नुकसान का सौदा है और इससे बीजेपी को फायदा होगा. फिर भी दोनों को पार्टी की तय रणनीति के मुताबिक चलना पड़ा.

साथ ही पीके के करीबियों ने साफ किया है कि, बिहार के तख्ता पलट में उनका कोई भूमिका नहीं है. बेवजह उनको बदनाम किया जा रहा है. पीके के करीबियों का कहना है कि, वो अभी भी कांग्रेस और राहुल के साथ काम करने को तैयार हैं बशर्ते पार्टी उनकी कम से कम वो बातें मानने को तैयार हो जिस पर उनकी और राहुल की सहमति बने. पीके के करीबी कहते हैं कि, बिहार और नीतीश कुमार से तक़रीबन डेढ़ साल से उनका कोई लेना देना नहीं है. नीतीश का दिया मंत्री पद का दर्जा भी वो पहले ही छोड़ चुके हैं. इसलिए बिहार के घटनाक्रम से उनकी भूमिका को जोड़ना एक मजाक से ज़्यादा कुछ नहीं है.

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