आजादी की जंग में शहादत देने वाले बख्शीश सिंह के परिवार को 72 सालों की जद्दोजहद के बाद करीब 104 साल बाद इंसाफ मिला है। अंग्रेजी शासन द्वारा छीनी गई33 एकड़ जमीन का अब मुआवजा मिलेगा।
देश की आजादी के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग छेड़ने और शहादत देने वाले बख्शीश सिंह के परिवार को करीब 104 साल बाद इंसाफ मिला है। 26 साल की उम्र में बलिदान देने वाले शहीद बख्शीश सिंह के परिवार की लगभग 72 सालों से चलती जद्दोजहद खत्म हो गई। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ब्रिटिश सरकार द्वारा 1915 में छीनी गई लगभग 33 एकड़ जमीन का वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर शहीद बख्शीश सिंह के परिवार को मुआवजा देने को कहा है। हाई काेर्ट ने कहा कि सरकार शहीद बख्शीश सिंह के कानूनी वारिसों को यह मुआवजा दे।
जानकारी के अनुसार, ब्रिटिश सरकार ने साल 1915 में अमृतसर के गिलवाली गांव में शहीद बख्शीश सिंह की लगभग 33 एकड़ जमीन कब्जे में ले ली थी। इस जमीन के मुआवजे के लिए शहीद बख्शीश के परिवार ने कानूनी लड़ाई शुरू की। इसके बाद पंजाब सरकार ने शहीद बख्शीश के परिवार को साल 1988 में दिए गए 13 हजार रुपये का मुआवजा दिया।
इसके बाद शहीद बख्शीश सिंह का परिवार पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट पहुंचा था। अब हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को आदेश दिया कि शहीद बख्शीश सिंह के कानूनी वारिसों को वर्तमान बाजार मूल्य के आधार पर इस जमीन का मुआवजा दे। पंजाब सरकार द्वारा महज 13 हजार रुपये का मुआवजा देेने पर कड़ी टिप्पणी करते हुए जस्टिस अरुण मोंगा ने कहा है कि क्या अपने शहीदों के सम्मान का हमारा यही तरीका है। हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि जहां एक ओर भारत सरकार 150 करोड़ रुपये की लागत से राष्ट्रीय वार मेमोरियल बना रही है, वहीं देश के लिए शहीदी देने वालों के परिवारों का हाल इस केस से समझा जा सकता है।
गौरतलब है कि शहीद करतार सिंह सराभा, बख्शीश सिंह गिलवाली, विष्णु गोपाल पिंगल, जगत सिंह, सुर सिंह, हरनाम सिंह सियालकोटी, सुरैन सिंह पुत्र गुर सिंह और सुरैन सिंह पुत्र ईशर सिंह को पहली लाहौर साजिश के लिए 13 सितंबर 1915 को फांसी की सजा सुनाई गई थी। इन सभी को लाहौर सेंट्रल जेल में 17 नवंबर 1915 को फांसी दे दी गई थी।
ब्रिटिश सरकार ने बख्शीश सिंह की अमृतसर के गिलवाली गांव में स्थित लगभग 262 कनाल और 12 मरला जमीन पर साल 1915 में कब्जा कर लिया था। देश की आजादी के बाद उनकी पत्नी ने स्वतंत्र भारत की सरकार से उनकी ब्रिटिश सरकार द्वारा छीनी गई जमीन वापस किए जाने की मांग की। इस लड़ाई को बाद में उनकी बेटी गुरबचन कौर उर्फ प्रीतो ने आगे बढ़ाया।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, 27 सितंबर, 1962 को गुरबचन कौर ने पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री को ज्ञापन देकर जमीन उनके परिवार को लौटाए जाने की मांग की थी। 25 अप्रैल, 1988 को पंजाब सरकार ने उनकी लगभग 33 एकड़ भूमि के लिए 13 हजार रुपये का मुआवजा और इस जमीन पर 1 अप्रैल 1926 से 25 जून, 1988 तक के लिए 40,814 रुपये बतौर ब्याज दिए। हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान पंजाब सरकार ने दावा किया था कि शहीद के परिवार को मुआवजा दिया जा चुका है।
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में मलविंदर सिंह वड़ैच बनाम पंजाब मामले में दिए गए आदेशों का जिक्र करते हुए कहा है कि या तो ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की हड़पी गई जमीन सरकार उनके परिवारों को वापस करे या फिर उन्हें उस जमीन की बाजार कीमत के अनुसार मुआवजा दे। इस मामले में अमृतसर के उपायुक्त द्वारा गिलवाली गांव में जमीन की बाजार कीमत 25 लाख रुपये प्रति एकड़ होने की रिपोर्ट को आधार बनाते हुए जस्टिस मोंगा ने अपने आदेशों में कहा है कि शहीद के कानूनी वारिसों को 25 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से मुआवजा दिया जाए। इस रकम में से पहले दी जा चुकी 13 हजार और लगभग 40 हजार रुपये की रकम को ब्याज समेत कटौती कर ली जाए। हाईकोर्ट ने मुआवजे की रकम दो महीने के अंदर दिए जाना का आदेश दिया।