कोरोना संक्रमण की वजह से हमें इंसानियत के सबसे अच्छे और बुरे, दोनों पहलू देखने को मिल रहे हैं। सबसे पहले तो न केवल दिल्ली, बल्कि विश्वभर से हवा के साफ होने की खबरें आईं। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में गिरावट के भी संकेत प्राप्त हुए। इसके अलावा मानवीय दृढ़ता, समानुभूति व इन सबसे बढ़कर स्वास्थ्य तथा आवश्यक सेवाओं के लिए काम करने वाले लाखों लोगों द्वारा बिना किसी स्वार्थ के कार्य करने का प्रमाण प्राप्त हुआ। इस वायरस के खिलाफ चल रहे युद्ध को किसी भी सूरत में जीतने व लोगों की जान बचाने का जज्बा ही कोविड-19 की लड़ाई का हॉलमार्क बनेगा। तो वहीं दूसरी तरफ, इस वायरस से लड़ने के क्रम में हमारे द्वारा इस्तेमाल हो रही प्लास्टिक की मात्रा में आशातीत वृद्धि हुई।
देश में कई शहर हैं, जो अब कचरा अलग करने की प्रक्रिया बंद कर रहे हैं, क्योंकि लगातार बढ़ते मेडिकल कचरे और प्लास्टिक कीव्यक्तिगत सुरक्षा किट (पीपीई) की संख्या के सामने सफाई कर्मचारी बेबस हैं। तो कह सकते हैं कि हम इस लड़ाई में पीछे भी जा रहे हैं। इसके अलावा, लोग सार्वजनिक परिवहन के साधनों का प्रयोग नहीं करना चाहते। उन्हें डर है कि भीड़भाड़ वाले सार्वजनिक स्थानों पर संक्रमण का खतरा बढ़ जाएगा। इसलिए, लॉकडाउन खुलने के बाद सड़कों पर निजी वाहनों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है।
यह वह समय भी है जब हम मानवता को उसके सबसे बुरे रूप में देख रहे हैं। चाहे गरीबों को पैसे एवं भोजन उपलब्ध कराने में हुई देरी हो, प्रवासी मजदूर हों या फिर वे लोग जिन्होंने समय पर चिकित्सकीय मदद नहीं मिल पाने की वजह से अपने सगे-संबंधी खो दिए, इन दिनों यह सब देखने को मिला। इन हालातों के बाद भी हमें भविष्य की ओर अग्रसर होना चाहिए क्योंकि कोविड-19 की इस रात का सवेरा भी अवश्य होगा और आज जब हम इस स्वास्थ्य संकट के चरम पर पहुंच चुके हैं, हमें काम करने के नए तरीके ढूंढ़ने होंगे। हम हालात के सामान्य होने का इंतजार नहीं कर सकते, क्योंकि तब यह न तो नया होगा और न ही अलग।
आवश्यकता है तो बस ऐसे रचनात्मक उत्तर ढूंढ़ने की जो कई चुनौतियों से एक साथ निपट सकें। उदाहरण के लिए, शहरों में होने वाले वायु प्रदूषण को लें। हम जानते हैं कि हवा में विषाक्त पदार्थों के उत्सर्जन के लिए वाहन सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। अब हम ऐसा क्या करें जिससे प्रदूषण लॉकडाउन वाले दौर के स्तर पर ही रहे? यह भी सच है कि ऑटोमोबाइल उद्योग बड़े पैमाने पर वित्तीय संकट झेल रहा है। ऐसे में यह वक्त एक अवसर बन सकता है। अगर सरकार अपने पुराने वाहनों को नए से बदलने के लिए सब्सिडी देने की स्मार्ट योजना तैयार करे तो यह गेम चेंजर साबित हो सकता है।
यह भी सच्चाई है कि सार्वजनिक परिवहन के बिना हमारे शहर ठप हो जाएंगे। हमें अब जाकर इसके महत्व का अहसास हुआ है। जरूरी है कि भविष्य में ऐसे शहरों का पुनर्निर्माण हो जो साइकिल चालकों एवं पैदल चलने वालों को भी साथ लेकर चले। जहां तक उद्योगों व उनसे होने वाले प्रदूषण की बात है तो अगर हम यहां ईंधन के तौर पर कोयले की जगह प्राकृतिक गैस या बिजली का प्रयोग करें और वह बिजली प्राकृतिक गैस एवं हाइडेल, बायोमास इत्यादि जैसे स्वच्छ साधनों से मिले तो स्थानीय स्तर पर प्रदूषण में कमी तो आएगी ही, साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन पर भी लगाम लगेगी।
यह सब संभव है लेकिन यह इस विश्वास पर आधारित है कि हम एक बेहतर कल चाहते हैं। कोविड-19 केवल एक भूल या दुर्घटना नहीं है, बल्कि उन कार्यों का परिणाम है जो हमने ऐसी दुनिया के निर्माण के लिए किए, जो असमान और विभाजनकारी थे। तो इस मुगालते में न रहें कि कल बेहतर होगा, यह और बेहतर हो सकता है लेकिन तभी जब हम स्वयं इस दिशा में कदम उठाएंगे।