सिर पर लगी टोपी बताती है कितना पढ़ा लिखें है मौलवी साहब…

आपने कभी गौर किया है, मौलवी अलग-अलग तरह की टोपी पहनते हैं. जो उनके कपड़ों के स्टाइल के मुताबिक नहीं बदलती. मौलवियों की टोपी उनके इल्म (ज्ञान)/डिग्री पर निर्भर करती है. मतलब ये कि उन्होंने कितनी मज़हबी तालीम ली है. उनके पास कितनी डिग्रियां है. वे मज़हबी तालीम वाले स्कूलों में कौन सी क्लास तक के स्टूडेंट्स को पढ़ा सकते हैं. कौन से पद के मौलवी को किस ‘नाम’ से बुलाया जाएगा, वो कैसी टोपी पहनेगा, ये सुन्नी-शिया समुदाय में अलग-अलग तरीकों से तय होता है.

‘इमाम’ और उसकी टोपी
‘इमाम’ शब्द अमूमन मस्जिद में जमात पढ़ाने वाले मौलाना के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन सिर्फ सुन्नी समुदाय में. सुन्नी समुदाय के मुताबिक, ‘इमाम’ सभी मजहबी कार्यक्रमों का नेतृत्व कर सकते हैं, वे कम्यूनिटी लीडर का काम भी कर सकते हैं और साथ-साथ धार्मिक मार्गदर्शन भी कर सकते हैं. ये सफेद या किसी और रंग की गोल टोपी पहनते हैं.

शिया मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने और मजहबी कार्यक्रमों का नेतृत्व भी करने वाले मौलवी को सिर्फ मौलाना/मौलवी कहा जाता है, इमाम नहीं. ये गोल टोपी पहनते हैं.

शिया समुदाय में ‘इमाम’ के मायने अलग हैं. यहां इमाम का रोल इमामा (Imamah/Amameh) के ज़रिए तय होता है. ‘इमामा’ (पगड़ी) एक पद जैसा है. इसे वे मौलवी पहनते हैं जिन्होंने मज़हबी तालीम में डॉक्टरेट उपाधी ली हो. ये उन्हें भी मिलती है जो Ahl al-Bayt के सदस्य हो. ‘अहल अल-बैयत’ पैगंबर मोहम्मद के घराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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सफेद और काले इमामे का फर्क
‘इमामा’ दो रंग का होता है. सफेद और काला. काला इमामा वे मौलवी पहनते हैं, जो पैगंबर मुहम्मद के बाद उनकी बेटी और दामाद के कुनबे की पीढ़ीयों (12 इमामों में से) से हैं. उदाहरण के लिए शिया मौलवी और ईरान के पूर्व सुप्रीम लीडर ‘आयातुल्ला ख़ौमैनी’ काला इमाम पहनते थे.

‘आयातुल्ला ख़ोमोनी’ का पूरा नाम ‘रूहुल्ला मुस्तफा अहमद अल-मस्वी अल ख़ौमेनी’ था. इनके नाम में जुड़े अल-मस्वी का मतलब है कि वे सातवें इमाम (मूसा) के कुन्बे से हैं.

ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति हसन रूहानी

सफेद इमामा
ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति हसन रूहानी, सफेद इमामा पहनते हैं. जिसका मतलब ये है कि वे पैगंबर मुहम्मद के बाद उनकी बेटी और दामाद के कुनबे की पीढ़ींयों (12 इमामों में से) से नहीं हैं.

कौन सी तालीम लेने वाला पहनता है इमामा
शिया समुदाय में ‘इमामा’ (Ammamah) इस्लामिक तालीम लेने वाले सिर्फ उन स्टूडेंट्स को दिया जाता है जो Howzah-Elmiyah एग्जाम पास करते है. Howza टर्म इस्लामिक तालीम में एक तरह की पढ़ाई/यूनिवर्सिटी के लिए इस्तेमाल की जाती है. होज़वा पढ़ने वाले स्टूडेंट्स अलग तरह के इस्लामिक इश्यूज पर पढ़ाई करते हैं.

आम व्यक्ति नहीं पहन सकता ‘इमामा’
ईरान में आम नागरिक को ‘इमामा’ पहनने की इजाजत नहीं. ये उसी तरह है, जैसे कि आप पुलिस ऑफिसर न हो, लेकिन पुलिस की वर्दी पहनें. आलिम की वर्दी को आलिम ही पहन सकता है.

सुन्नी आलिम मानते हैं कि हदीस के मुताबिक, सफेद पगड़ी पहनना बेहतर है. जबकि काली पगड़ी पहनना सुन्नत बताया गया है.

उलेमा क्यों पहनते हैं इमामा
शिया उलेमा ये भी मानते हैं कि ‘इमामा’ पहनना पैगंबर मुहम्मद और 12 इमामों के पहनावे को फॉलो करना है. इमामा पहनने वाले को मज़हबी मसअलों की इतनी तालीम होती है कि उनसे लोग किसी भी मसअले का इस्लामिक हल पूछ सकते हैं. ‘इमामा’ पहनने वाले शिया मौलवियों को शिया शेख़ (Shia Shaikh) भी कहा जाता है. ‘इमामा’ नॉन-अरब, मुस्लिम मिडिल ईस्ट कंट्रीज में पहना जाता है.

अबा और Bisht भी डिप्लोमा के बाद मिलती है
टोपी के अलावा मौलवी कुर्तो के ऊपर अबा (लंबा श्रग-नुमा कपड़ा) जो पहनते हैं, वह भी फॉर्मल ड्रेस है. उसे भी एक हद तक पढ़ा लिखा व्यक्ति ही पहन सकता है. अबा को Bisht भी कहा जाता है. परंपरागत रूप से इस्लामिक स्कूल (मदरसा), यूनिवर्सिटी एक-दूसरे से जुड़े होते हैं. जो भी इन स्कूल्स से डिप्लोमा लेता है, वह अबा पहन सकता है. हालांकि पश्चिमी प्रभाव के चलते कुछ देशों में अबा पहनने का चलन हुआ है. पर स्कोलर लेक्चर देते या मजलिस पढ़ते हुए इसे ज़रूर पहनता है.

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