Satdhara Stupa विश्व प्रसिद्ध सांची में सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए स्तूप किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। सांची के आसपास ही चार और स्थान ऐसे हैं जहां शांति और साधना के लिए बने प्राचीन स्तूप आज भी विद्यमान हैं। सांची के पास ही सतधारा में बने स्तूप तो सांची के स्तूपों के समकालीन हैं। सांची के आसपास ही सुनारी, मुरेल कला और अंधेर में शुंग काल में बनाए गए स्तूप मौजूद हैं। सांची से भोपाल मार्ग पर महज 11 किमी की दूरी पर ही सतधारा में दो बड़े बौद्ध मठ और 25 से अधिक छोटे स्तूप बने हैं। वरिष्ठ पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास बताते है कि यह सांची के समकालीन हैं और इनका निर्माण भी सम्राट अशोक द्वारा ही करवाया गया था। गौरतलब है कि इन दिनों सांची में महाबोधि मेला चल रहा है।
सतधारा नाम के पीछे यह कहानी : सतधारा का आशय सात धाराओं से है। ये स्तूप हलाली नदी के किनारे बने हुए हैं। धाराओं के नजदीक होने से नाम सतधारा होने की संभावना है। इन स्तूपों का दुर्भाग्य बस यही है कि सांची के पास होते हुए भी देखरेख के अभाव में इनमें से ज्यादातर जर्जर हो चुके हैं। हालांकि कुछ स्तूपों का जीर्णाेद्धार किया गया लेकिन इस जगह से बौद्ध अनुयायी और पर्यटक दोनों से दूरी बनाए हुए हैं। सबसे खास बात यह है कि यहां बने स्तूप भी 13 मीटर तक ऊंचे हैं। यहां स्तूपों पर रॉक पेंटिंग्स भी नजर आती है। सुरम्य और शांत वातावरण में पहाड़ी पर स्थित सतधारा की ऊंचाई से हलाली नदी की खूबसूरती देखते ही बनती है। ईंटों से निर्मित यह स्तूप अपने रंग के कारण दूर से दिखाई दे जाता है।
शुंग काल के हैं सुनारी के स्तूप
सांची से करीब 38 किमी दूर सुनारी के बौद्ध स्तूप शुंग काल के हैं। यहां चार स्तूप और एक मठ है। स्तूप तक जाने के लिए जो रास्ता बना है, उस रास्ते में आज भी प्राचीनकाल के कई निशान बने हैं। इसी तरह सांची के पास मुरेल कला और अंधेर में सीमित संख्या में बने छोटे-छोटे स्तूप संरक्षण के अभाव में नष्ट हो रहे हैं।
बौद्ध सर्किट बनाने से होगा प्रचार
यदि सांची से सतधारा, सुनारी, मुरेल कला और अंधेर को जोड़कर बौद्ध सर्किट बनाया जाए तो लोग इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानेंगे, यहां आएंगे और यह क्षेत्र पर्यटन के मामले में भी आगे बढ़ेगा। – डॉ. नारायण व्यास, वरिष्ठ पुरातत्वविद