एजेंसी/ कहते हैं की ईश्वर नें कहा है की कभी किसी के साथ कुछ बुरा नही करना चाहिए न किसी को धोखा देना चाहिए मगर जब भगवान् खुद ही ऐसा करें तो फिर आप ये सोचने में अवश्य मजबूर हो जायेंगे की स्वयं भगवान नें ऐसा क्यों किया. श्रीहरि विष्णु नें भी छल का सहारा लिया था जिससे मानवजाति पर आये खतरे को टाला जा सका.
भगवान शंकर ने भस्मासुर को एक ऐसा वरदान दिया था की वो जिसपर भी हाथ रख देगा वो भस्म हो जायेगा मगर समस्या तब आ गई जब भस्मासुर का मन पार्वती माता पर आ गया. जिसके लिए वो भगवान् शंकर को ही भस्म करने पहुँच गया था. तब श्री हरि विष्णु ने भगवान् शंकर की मदद करने के लिए मोहिनी रूप रखा और भस्मासुर को नृत्य करवाया और उसका हाथ उसी के सिर पर रखवा दिया. ऐसा ही एक प्रसंग समुद्रमंथन के समय का है. इस पूरे प्रसंग का विस्तार से उल्लेख हिंदू धर्म ग्रंथों में मिलता है.
जब समुद्रमंथन से अमृतकलश निकला तो दानव और देवों दोनों ने ही अमृत पीने की इच्छा जाहिर की. देवो के सामने समस्या ये थी कि यदि दैत्य अमृत पी लेते तो उन्हें मारना असंभव था. पृथ्वी पर अधर्म का साम्राज्य हमेशा के लिए हो जाता. तब श्री हरि ने मोहिनी का रूप धारण करके देवताओं को छल से अमृत और दानवों को जल पिलाया.
यह कार्य भी उनके द्वारा मानव निमित्त की रक्षा के लिए किया गया था. एक प्रसंग में श्रीहरि विष्णु ने वामन अवतार रखा था जिसमें उन्होंने बलि से तीनों लोकों का दान लिया. क्यूंकि यदि श्रीहरि ऐसा छल नहीं करते तो तीनों लोकों में हमेशा के लिए दानवों का अधिकार हो जाता. श्रीहरि ने श्रीकृष्ण के अवातार में भी छल के द्वारा धर्म और धार्मिक लोगों की सहायता की थी.
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal