श्रीलंका के हालात हर रोज खराब हो रहे हैं। केबिनेट रविवार को ही इस्तीफा दे चुकी है और सोमवार को राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने चार नए मंत्रियों की नियुक्ति भी कर दी है। इस बीच राष्ट्रपति ने ये भी कहा है कि वो अपने पद से इस्तीफा नहीं देंगे लेकिन यदि किसी के पास बहुमत का आंकड़ा है तो वो उसको सत्ता सौंपने को तैयार हैं। इस बीच श्रीलंका में लगातार संकट गहराता जा रहा है। महंगाई लगातार बढ़ रही है जिसकी वजह से देश की आम जनता की जेब पर बोझ बढ़ता ही जा रहा है।
देश में जारी है धरना प्रदर्शन
देश में धरना प्रदर्शन का भी सिलसिला लगातार जारी है। श्रीलंका के इन हालातों के पीछे दरअसल सरकार के कुप्रबंधन का ही नतीजा है। श्रीलंका को विश्व के कई देश महंगाई बढ़ने की चेतावनी दे चुके हैं। यूरोप से लेकर एशिया तक दी गई इस चेतावनी में कहा गया है कि श्रीलंका की स्थिति बेहद खराब होने वाली है और यहां पर जीवन यापन मुश्किल होने वाला है।
पयर्टन पर टिकी अर्थव्यवस्था
आपको बता दें कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में पर्यटकों की सबसे बड़ी भूमिका रहती है। कोरोना महामारी के दौरान विश्व भर में लगे प्रतिबंधों ने यहां की अर्थ व्यवस्था को चौपट कर दिया है। हालांकि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि फरवरी 2022 में यहां पर आने वाले पर्यटकों की संख्या में ढ़ाई हजार फीसद से अधिक का इजाफा हुआ है। यहां पर भारत से सबसे अधिक पर्यटक जाते हैं। इसके बाद ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस का नाम आता है।
रूस पर प्रतिबंधों का असर
यूक्रेन से जंग के चलते रूस पर लगे प्रतिबंधों की वजह से भी श्रीलंका की माली हालत काफी खराब हुई है देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी आई है। एक तरफ जहां खाद्य पदार्थों पर महंगाई की दर में 30 फीसद से अधिक का इजाफा हुआ है वहीं डालर के मुकाबले श्रीलंका की मुद्रा 40 फीसद तक कमजोर हो गई है। श्रीलंका की बदहाली की एक बड़ी वजह चीन भी है जिसने बीते वर्ष दिसंबर में डेढ़ करोड़ डालर की राशि एक साथ खींच ली थी। वहीं भारत से जाने वाले तेल की कीमतें भी अधिक हो गई थीं। उस वक्त आईएमएफ ने आगाह किया था कि कर्ज को कम कर दे।
श्रीलंका और पाकिस्तान में समानता
श्रीलंका की हालत काफी कुछ पाकिस्तान की ही तरह हो गई है जहां पर महंगाई की दर दो नंबरों में चली गई है। पाकिस्तान में भी राजनीतिक हालात काफी खराब हैं और वहां के पीएम को विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव का भी सामना करना पड़ा है। हालांकि अब मामला सुप्रीम कोर्ट में है और वहां पर चुनाव होना तय है। लेकिन, इन दोनों ही देशों के लोगों को अपनी आय का बड़ा हिस्सा खाने पर खर्च करना पड़ रहा है।