हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। आज सुहागिन महिलाएं अपनी पति की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए व्रत रख रही हैं। हिंदू धर्म में हर एक तीज त्योहार के अपने-अपने नियम है। इसी तरह वट सावित्री व्रत के भी कुछ नियम है जिनका पालन जरूर करना चाहिए। जानिए वट सावित्री व्रत के दौरान किन गलतियों को करने से बचें।
वट सावित्री व्रत रखते समय न करें ये गलतियां
- माना जाता है कि वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन महिलाओं को लाल, पीले, हरे जैसे कपड़े पहनना चाहिए। नीले, काले और सफेद रंग के कपड़े पहनने से बचना चाहिए।
- सुहागिन महिलाओं को वट सावित्री व्रत की पूजा के दौरान नीली, काले रंग की चूड़ियां या फिर बिंदी लगाने से बचना चाहिए।
- जो महिला पहली बार व्रत कर रही हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि पहला व्रत मायके में करना चाहिए। ससुराल से इस व्रत की शुरुआत करना अशुभ माना जाता है।
- जो महिला पहली बार व्रत रख रही हैं उसे वट सावित्री वन्रच ते दिन पूजा संबंधी सभी समाना मायके के द्नारा दिए गए ही इस्तेमाल करना चाहिए।
- अगर किसी महिला को वट सावित्री व्रत के दिन मासिक धर्म हैं तो वह खुद पूजा न करके दूसरी महिला से पूजा करा लें और पूजा स्थल से दूर बैठकर कथा सुनें।
- वट सावित्री व्रत के दौरान घी और तेल का दीरपक जलाया जाता है। जिन्हें सही दिशा में रखना बेहद जरूरी है। अगर आप घी का दीपक जला रही हैं तो इसे हमेशा दाएं ओर ही रखें और तेल का दीपक जला रही हैं तो बाएं ओर रखना चाहिए।
- पूजा सामग्री को हमेशा बाईं ओर रखना चाहिए। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
- वट सावित्री व्रत का मुहूर्तज्येष्ठ अमावस्या तिथि प्रारंभ:
- 29 मई को दोपहर 02 बजकर 54 मिनट से शुरू
- अमावस्या तिथि का समापन: 30 मई को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर
- अभिजीत मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 57 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट से
- ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 08 मिनट से 04 बजकर 56 मिनट से
- सर्वार्थ सिद्धि योग- सुबह 07 बजकर 12 मिनट से 31 मई सुबह 05 बजकर 24 मिनट तक
- वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
- ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों ने निवृत्त होकर स्नान आदि करके सुहागिन महिलाएं साफ वस्त्र धारण करने के साथ सोलह श्रृंगार कर लें। आप चाहे को लाल रंग के वस्त्र धारण करें तो यह शुभ होगा।
- बरगद के पेड़ के नीचे जाकर गाय के गोबर से सावित्री और माता पार्वती की मूर्ति बना लें।
- अगर गोबर उपलब्ध नहीं है तो दो सुपारी में कलावा लपेटकर सावित्री और माता पार्वती की प्रतीक के रूप में रख लें।
- इसके बाद चावल, हल्दी और पानी से मिक्स पेस्ट को हथेलियों में लगाकर सात बार बरगद में छापा लगाएं।
- अब वट वृक्ष में जल अर्पित करें।
- फिर फूल, सिंदूर, अक्षत, मिठाई, खरबूज सहित अन्य फल अर्पित करें।
- फिर 14 आटा की पूड़ियों लें और हर एक पूड़ी में 2 भिगोए हुए चने और आटा-गुड़ के बने गुलगुले रख दें और इसे बरगद की जड़ में रख दें।
- फिर जल अर्पित कर दें। और दीपक और धूप जला दें।
- फिर सफेद सूत का धागा या फिर सफेद नार्मल धागा, कलावा आदि लेकर वृक्ष के चारों ओर परिक्रमा करते हुए बांध दें।
- 5 से 7 या फिर अपनी श्रद्धा के अनुसार परिक्रमा कर लें। इसके बाद बचा हुआ धागा वहीं पर छोड़ दें।
- इसके बाद हाथों में भिगोए हुए चना लेकर व्रत की कथा सुन लें। फिर इन चने को अर्पित कर दें।
- फिर सुहागिन महिलाएं माता पार्वती और सावित्री के को चढ़ाए गए सिंदूर को तीन बार लेकर अपनी मांग में लगा लें।
- अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
- इसके बाद महिलाएं अपना व्रत खोल सकती हैं।
- व्रत खोलने के लिए बरगद के वृक्ष की एक कोपल और 7 चना लेकर पानी के साथ निगल लें।
- इसके बाद आप प्रसाद के रूप में पूड़ियां, गुलगुले आदि खा सकती हैं।