दिहाड़ी मजदूर साप्ताहिक मजदूरी लेकर अपना घर चलाते हैं, लेकिन अब जब ठेकेदारों को नई करेंसी नहीं मिल पा रही है तो ऐसे में वह श्रमिकों को उनके वेतन का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। बाहरी प्रदेशों से सिडकुल में काम करने आए कर्मचारियों की हालत इसलिए अधिक खराब हो गई है कि वह किराये पर रहकर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं।
– सीपी शर्मा, सिडकुल कांट्रेक्टर एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष
अभी तक नहीं हुआ सर्वे सिडकुल में लगातार गिरते उत्पादन को शासन ने भी गंभीरता से लेते हुए पांच से सात दिसंबर के बीच सर्वे के लिए तीन विभागों को जिम्मेदारी दी थी, लेकिन उनका सर्वे कितना हुआ इसका कुछ पता नहीं चल रहा है। इस पर अभी कोई अधिकारी बोलने को तैयार नहीं है।
चेन्नई और महाराष्ट्र से आने वाले ट्रकों के पहिये भी जाम पंतनगर सिडकुल में रोजाना चेन्नई और महाराष्ट्र से 1500 से दो हजार ट्रक माल लेकर आते-जाते हैं, लेकिन नोटबंदी ने इनके पहियों को सिडकुल में ही जाम कर दिया है। कैश नहीं मिलने के कारण ट्रक मालिक न ही ट्रकों में डीजल डलवा पा रहे हैं और न ही चालकों का उनका वेतन दे पा रहे हैं। ट्रक मालिकों की मानें तो पंतनगर सिडकुल से एक ट्रक का चेन्नई और महाराष्ट्र तक जाने में कम से कम 10 से 12 हजार रुपए का खर्चा डीजल और टोल भाड़े का होता है।
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आठ नवंबर की रात को नोटबंदी के बाद से जहां कंपनियों में होने वाला प्रोडक्शन प्रभावित हुआ है, वहीं अब कंपनियों में काम करने वाले श्रमिकों की रोजी रोटी पर भी संकट गहरा गया है। बैंकों में पर्याप्त कैश उपलब्ध नहीं होने के कारण कंपनियों में श्रमिकों की सप्लाई करने वाले ठेकेदार उन्हें तनख्वाह नहीं दे पा रहे हैं।