कश्मीर में उपद्रवी तत्वों के खिलाफ केंद्र सरकार ने और सख्ती बरतने का फैसला किया है। केंद्र सरकार अपना सख्त रुख पहले ही प्रदर्शनकारियों के लिए दिखा चुकी है। केंद्र का साफ मानना है कि लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार को हटाकर कश्मीर में हिंसक प्रदर्शनों के जरिए ‘वहाबी कट्टरपंथियों’ को सत्ता में आने का कोई मौका नहीं दिया जाएगा। विपक्ष की कुछ पार्टियों द्वारा लगातार कश्मीर में सभी दलों के प्रतिनिधियों से बातचीत के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
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आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि सरकार इस दबाव के आगे झुकने के मूड में नहीं है। सूत्रों के अनुसार, ‘सार्थक बातचीत की पहल तभी संभव है जब तक सुरक्षा बल वहाबी कट्टरपंथी ताकतों पर जब तक पूरी तरह से नियंत्रण नहीं करती तब तक बातचीत नहीं होगी।’ केंद्र सरकार के इस रुख का साफ अर्थ है कि वहाबी कट्टरपंथियों की शह पर घाटी में उपद्रव करने वालों को काबू में लाने के लिए सुरक्षा बलों के शक्ति प्रयोग को बंद नहीं किया जाएगा।
केंद्र सरकार के सख्त रुख का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि पेलेट गन की जगह पर इस्तेमाल होने वाले मिर्ची के गोले और एक प्रकार के पत्थर के गोले जम्मू-कश्मीर में प्रयोग के लिए भेजे गए हैं।प्रतिदिन के हिसाब से एक हजार गोले भेजे जा रहे हैं और यह क्रम घाटी में स्थिति नियंत्रित होने तक जारी रहेगा। केंद्र सरकार की सख्ती इससे भी स्पष्ट है कि राज्य से अमरनाथ यात्रा के लिए तैनात की गई पैरामिलिट्री फोर्स और सशस्त्र सुरक्षा कानून को नहीं हटाया गया।
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार की सख्ती के बाद उपद्रवियों के हौसले जरूर पस्त होंगे। साथ ही, अब्दुल गनी भट जैसे अलगाववादी नेताओं के रुख में भी कुछ नरमी के संकेत देखे जा रहे है। अलगाववादी धड़े को पूरी तरह से नजरअंदाज करने का सरकार का फैसला कई तथ्यों को ध्यान में रखकर लिया गया है। सरकार का मूल्यांकन यह है कि हुर्रियत नेताओं को वर्तमान की स्थिति में पूरी तरह से साइडलाइन रखा जा रहा है।