क्या आप जानते है कि माउंट एवरेस्ट की चोटी के पास शवों से लेकर कूड़ा जमा पड़ा हुआ है। शेरपाओं की टीम का नेतृत्व अंग बाबू शेरपा बताते है कि साउथ कोल में अभी भी 40-50 टन तक कचरा है। साउथ कोलपर्वतारोहियों के शिखर पर चढ़ने से पहले का आखिरी शिविर है। इससे पहले शेरपा की टीम ने एवरेस्ट से 11 टन कचरा चार शव और एक कंकाल निकाला है।
शेरपा अपनी टीम के साथ सालों से माउंट एवरेस्ट की चोटी के पास जमे हुए शवों को निकालने और कूड़ा -कचरा साफ करने का काम कर रहे है। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन मनुष्य ने दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत पर भी कूड़ा-कचरा कर वहां की खूबसुरती को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। इस दौरान वहां भारी मात्रा में कूड़ा-कचरा भरा पड़ा है, जिसे साफ करने में कई साल लगेंगे।
साउथ कोल में 40-50 टन कचरा
नेपाल सरकार द्वारा वित्तपोषित सैनिकों और शेरपाओं की टीम ने इस वर्ष के पर्वतारोहण सत्र के दौरान एवरेस्ट से 11 टन (24,000 पाउंड) कचरा, चार शव और एक कंकाल हटाया। बता दें कि शेरपाओं की टीम का नेतृत्व अंग बाबू शेरपा कर रहे है। उन्होंने हैरान कर देने वाले आंकड़े पेश किए है जिसके अनुसार, साउथ कोल में अभी भी 40-50 टन (88,000-110,000 पाउंड) तक कचरा हो सकता है। साउथ कोल, पर्वतारोहियों के शिखर पर चढ़ने से पहले का आखिरी शिविर है।
जम गए है कचरा, निकालने में आ रही दिक्कतें
शेरपा ने कहा, ‘वहां छोड़ा गया कचरा ज्यादातर पुराने टेंट, कुछ खाद्य पैकेजिंग और गैस कार्ट्रिज, ऑक्सीजन की बोतलें, टेंट पैक और चढ़ाई और टेंट बांधने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रस्सियां थीं। उन्होंने कहा कि कचरा परतों में है और 8,000 मीटर (26,400 फीट) की ऊंचाई पर जम गया है जहां साउथ कोल कैंप स्थित है। 1953 में पहली बार इस चोटी पर विजय प्राप्त करने के बाद से, हजारों पर्वतारोही इस पर चढ़ चुके हैं। आंग बाबू ने कहा, ‘टीम के शेरपाओं ने ऊंचे इलाकों से कचरा और शव एकत्र किए।’
साउथ कोल क्षेत्र में कैसे होता है कचरा साफ?
अंग बाबू के अनुसार, साउथ कोल क्षेत्र में उनके काम के लिए मौसम एक बड़ी चुनौती है।
यहां ऑक्सीजन का स्तर सामान्य से लगभग एक तिहाई है।
हवाएं जल्दी ही बर्फ़ीले तूफ़ान की स्थिति में बदल जाती है और तापमान गिर सकता है।
ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होने पर लंबे समय तक रहना मुश्किल है।
कचरे को खोदना भी एक बड़ा काम है, क्योंकि यह बर्फ के अंदर जम जाता है
साउथ कोल के पास एक शव को खोदने में दो दिन लग गए, जो बर्फ में गहरी स्थिति में जम गया था।
टीम को खराब मौसम के कारण निचले शिविरों में वापस जाना पड़ता है।
फिर मौसम ठीक होने के बाद फिर से काम शुरू करना पड़ता है।