प्रयागराज: अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद् के दिवंगत महंत नरेंद्र गिरि ने कानूनी तौर पर बलबीर गिरी के नाम पर वसीयत तैयार करवाई थी. यह खुलासा महंत नरेंद्र गिरि के वकील ऋषि शंकर द्विवेदी ने मीडिया से बात करते हुए किया है. वकील के अनुसार, महंत नरेंद्र गिरि ने 2010 से 2020 के बीच में 3 वसीयत बनवाई थीं. 7 जनवरी 2010 को नरेंद्र गिरी ने पहली वसीयत बनवाई थी. इसमें उन्होंने बलवीर गिरी को उत्तराधिकारी बताया था. 29 अगस्त 2011 को दूसरी वसीयत में बलवीर के स्थान पर आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनवाया था.

महंत नरेंद्र गिरि ने 4 जून 2020 को तीसरी और अंतिम वसीयत बनवाई थी. इसमें महंत ने फिर बलवीर गिरि को अपना उत्तराधिकारी बनाया था. बलवीर को बाघमबारी की संपत्ति का अकेला उत्तराधिकारी बनाया गया था. उन्होंने दोनों वसीयत निरस्त करवा दी थीं. महंत नरेंद्र गिरि अपने वकील ऋषि शंकर द्विवेदी से भी मुलाकात करना चाहते थे. यह बात खुद ऋषि शंकर द्विवेदी ने बताई. उन्होंने बताया कि अनजान नंबर से महंत नरेंद्र गिरि ने फ़ोन किया था. वे उनकी आवाज भी पहचान गए थे. फ़ोन करके उन्होंने कहा था कि मिलना चाहते थे. इस पर ऋषि शंकर द्विवेदी ने कहा कि वे अदालत में हैं. इसके बाद कॉल कट गई. यह कॉल 12:30 से 1:00 के बीच आई थी.
महंत नरेंद्र गिरि के वकील ऋषि शंकर द्विवेदी के अनुसार, महंत नरेंद्र गिरि और मठ के अकाउंट में लगभग 30 से 40 करोड़ जमा हैं. मठ के नाम पर प्रयागराज हरिद्वार कौशांबी सहित तमाम शहरों में 200 करोड़ के करीब की संपत्ति है. वर्तमान में बलवीर गिरी कानूनी तौर पर मठ और उसकी चल अचल संपत्ति के मालिक हैं. अदालत में महंत नरेंद्र गिरि की आखिरी वसीयत की ओरिजिनल कॉपी जमा है.
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