मध्यप्रदेश : पूर्व मंत्री बिसेन को हाईकोर्ट से झटका

बीजेपी नेता गौरीशंकर बिसेन को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट से झटका लगा है। कोर्ट ने बिसेन के खिलाफ चल रहे मानहानि प्रकरण की सुनवाई पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने मंगलवार को कहा कि किसी जनप्रतिनिधि द्वारा सार्वजनिक स्थल पर किसी दूसरे का जातिसूचक अपमान करने को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

भाजपा के वरिष्ठ नेता व प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन को हाईकोर्ट से झटका लगा है। एक वर्ग विशेष के व्यक्ति को जाति सूचक रूप से चोर कहने पर पन्ना जिला न्यायालय ने उनके खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज करने के आदेश जारी किये थे। जिसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली थी। प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने जिला न्यायालय के आदेश पर स्थगन आदेश जारी किये थे। हाईकोर्ट जस्टिस संजय द्विवेदी की एकलपीठ ने सुनवाई के बाद याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में जिला न्यायालय के आदेश को उचित ठहराया है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि प्रकरण में मानहानि के पर्याप्त तथ्य उपलब्ध है।

पन्ना जिले के केंद्रीय जिला सहकारिता समिति के तत्कालीन अध्यक्ष संजय नगाइच ने साल 2015 में प्रदेश सरकार के तत्कालीन सहकारिता मंत्री गौरीशंकर बिसेन सहित पांच व्यक्तियों के खिलाफ मानहानि का परिवाद सीजेएफ पन्ना के समक्ष दायर किया गया था। जिसमें कहा गया था कि दो सार्वजनिक बैठक में मंत्री गौरीशंकर बिसेन तथा बृजेन्द्र प्रताप सिंह ने उन्हें ‘ब्राह्मण चोर है’ कहकर संबोधित किया। इसके अलावा उनके चरित्र के संबंध में भी टिप्पणी की थी। परिवाद की सुनवाई के दौरान न्यायालय ने गवाहों के बयान के आधार पर मानहानि का मामला दर्ज करने के निर्देश दिये थे।


जिसके खिलाफ गौरी शंकर बिसेन ने हाईकोर्ट की शरण ली थी। हाईकोर्ट ने याचिका की प्रारंभिक सुनवाई करते हुए 5 दिसंबर 2019 को हाई कोर्ट स्थगन आदेश जारी किया था। याचिका की सुनवाई के दौरान उनकी तरफ से तर्क दिया गया कि राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण अनावेदक ने परिवाद दायर किया है। अनावेदक को भ्रष्टाचार के आरोप में सात सालों के लिए पद से हटा दिया गया था। सहकारिता मंत्री से उनकी खुन्न थी,इसलिए बिना किसी तथ्यों के आधार पर परिवाद दायर किया था।


सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर की थी
अनावेदक की तरफ से तर्क दिया गया कि पद से हटाये जाने को चुनौती देते हुए उनकी तरफ से हाईकोर्ट में याचिका व अपील दायर की गयी थी। अपील की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला दिया था। जिसके खिलाफ सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में एसएलपी दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने एसएलपी को एक लाख की कास्ट के साथ खारिज कर दिया।

 
एकलपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया
एकलपीठ ने सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय  के आदेश का हवाला देते हुए अपने आदेश में कहा है कि प्रकरण में मानहानि के पर्याप्त तथ्य उपलब्ध है। जिला न्यायालय के आदेश को सही ठहराते हुए एकलपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। अनावेदक की तरफ से अधिवक्ता प्रवीण दूबे ने पैरवी की।

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