नई दिल्ली। मई, 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार के लिए यह पहला साल ऐसा होगा जब देश के बैं¨कग सेक्टर की स्थिति अच्छी दिख रही है। कोरोना के बावजूद सरकारी बैंकों का मुनाफा पिछली तीन तिमाहियों से लगातार बढ़ रहा है, फंसे कर्ज (एनपीए) की स्थिति काफी हद तक काबू में दिखाई दे रही है, कर्ज वितरण की रफ्तार भी बढ़ने के संकेत हैं और नई तकनीक अपनाने की वजह से लागत भी घटने के संकेत है। ऐसे में आम बजट 2022-23 में भारतीय बैं¨कग सेक्टर को खास वित्तीय मदद मिलने की उम्मीद नहीं है। लेकिन बैंक निजीकरण को आगे बढ़ाने को लेकर लेकर केंद्र सरकार और खुलकर सामने आ सकती है। तैयारी यह भी है कि सरकारी बैंकों के निजीकरण का एक पूरा रोडमैप भी पेश किया जाए और इसके लिए आवश्यक कानूनों में संशोधन की रूप-रेखा भी सामने रखा जाए।पिछले आम बजट में दो बैंकों और बीमा कंपनी के निजीकरण करने की घोषणा करने के बावजूद सरकार उस पर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी है।
बैंकिंग उद्योग के सूत्रों का कहना है कि सरकारी बैंकों या बीमा कंपनियों के निजीकरण के काम को सरकार इस कैलेंडर वर्ष के दौरान ही पूरा करना चाहेगी। अप्रैल-मई, 2024 में आम चुनाव से ठीक पहले सरकार विपक्ष को बैंक व बीमा निजीकरण का मुद्दा नहीं देना चाहेगी। यह लगभग तय है कि हर साल बजट से सरकारी बैंकों को मिलने वाली राशि इस बार नहीं दी जाएगी। यह भी संभव है कि बैं¨कग सेक्टर में बड़े कारपोरेट घरानों के प्रवेश को लेकर भी सरकार बजट में कोई नीतिगत स्पष्टता लाने की कोशिश करे। इस बारे में नीतिगत स्पष्टता नहीं होने की वजह से ही बैंक निजीकरण की राह आसान नहीं हो पा रही।बैंकों की तरफ से भी वित्त मंत्री के समक्ष अपनी मांगों की सूची सौंपी जा चुकी है।
बैंकों की एक प्रमुख मांग यह है कि पिछले कुछ वर्षों से जमा दरों का आकर्षण काफी तेजी से खत्म हुआ है। बाजार में नए निवेश विकल्प आने की वजह से आगे भी जमा आकर्षित करना आसान नहीं होगा। ऐसे में बैं¨कग जमा को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ खास कदम उठाए जाने चाहिए तथा होम लोन पर कर छूट के लिए देय ब्याज दर की मौजूदा सीमा दो लाख रुपये से बढ़ाई जानी चाहिए। इस तरह की मांग रियल एस्टेट इंडस्ट्रीज से भी हुई है।आगामी बजट में गैर बैं¨कग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) पर भी खास ध्यान दिए जाने के संकेत हैं।
यह एक ऐसा वर्ग है जिस पर वर्ष 2020 में कोविड महामारी की शुरुआत होने के बाद से ही काफी ध्यान दिया जा रहा है। सरकार यह मान चुकी है कि देश के हर व्यक्ति व हर गांव तक वह अपनी मदद एनबीएफसी के बिना नहीं पहुंचा सकेगी। आरबीआइ व वित्त मंत्रालय ने पिछले दो वर्षों के दौरान कई तरह से इन्हें मदद दिलाई है, लेकिन अभी यह सेक्टर अपनी क्षमता के मुताबिक भूमिका नहीं निभा पा रहा है। एनबीएफसी के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती फंड की है और पिछले दिनों वित्त मंत्रालय के भीतर इन्हें फंड उपलब्ध कराने के नए तरीकों पर चर्चा हुई है।