बरगाड़ी कांड और बहिबल कलां फायरिंग मामले पर शिरोमणि अकाली दल और इसके नेतृत्व की परेशानी कम होने के बजाए बढ़ती जा रही है। सुखदेव सिंह ढींडसा और अन्य नेताओं के बाद अब दिल्ली गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी (डीएसजीएमसी) के प्रधान मनजीत सिंह जीके ने भी अपनी नाराजगी जताई है। जीके और अन्य नेताओं की नाराजगी की आंच शिरोमणि अकाली दल को पंजाब में बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है।
पंथक मुद्दों पर बढ़ी शिरोमणि अकाली दल की परेशानी, पंजाब की राजनीति भी होगी प्रभावित
शहरी सिख बिरादरी पर अच्छी पकड़ रखने वाले मनजीत सिंह जीके ने बेशक दिल्ली में प्रेस कान्फ्रेंस करके दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान पद से इस्तीफा देने की बात को खारिज कर दिया है, लेकिन बरगाड़ी मामले और डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को दी गई माफी पर अपनी असंतुष्टि जता दी। उन्होंने अपनी नाराजगी साफ-साफ जता दी। उन्होंने माना कि शिरोमणि अकाली दल को इन मुद्दों का खामियाजा भुगतना पड़ा है और पार्टी को इस पर तुरंत सुधार करने की जरूरत है।
टकसाली नेताओं के बाद डीएसजीएमसी अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके भी शिअद नेतृत्व से नाराज
बेशक जीके भी माझा के नेताओं की तरह केवल नाराजगी व्यक्त करके ही रह गए हैं, लेकिन उनकी नाराजगी पार्टी को महंगी पड़ सकती है। दरअसल, शिरोमणि अकाली दल, जिसे पंथक वोट बैंक की बड़ी हिमायत थी, आज उसी पंथक वोट बैंक को अनदेखा करने के कारण बुरी तरह से घिर गया है।
अगर इससे जुड़ी घटनाओं को चरणबद्ध ढंग से देखें, तो ऐसा पहली बार हुआ है कि अकाली दल के खिलाफ ऐसे कई सुबूत हैं, जिसे उसके नेता झुठला नहीं सकते। विरोधियों के अनुसार सबसे पहली घटना गांव जवाहर बुर्ज सिंह वाला से श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ का चोरी होने पर कोई कार्रवाई न किए जाना, चोरी करने वालों की ओर से बरगाड़ी में पोस्टर लगाना इसके बावजूद पुलिस का हाथ पर हाथ धरे रहना, विरोध करने वाली पंथक पार्टियों पर गोली चलाना , डेरा सच्चा सौदा प्रमुख को माफी देना, उनकी फिल्म रिलीज करवाना ऐसी घटनाएं हैं, जिसने पंथक वोट बैंक के दिलों को आघात पहुंचाया है।
इसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा के चुनाव में मात्र 15 सीटों पर सिमटकर भुगतना पड़ा। इसके बाद भी सत्ता में आकर कांग्रेस ने उन्हें इसी मुद्दे पर और हाशिए पर धकेलना शुरू किया है। पंजाब की राजनीति के जानकारों का कहना है कि अकाली दल की लीडरशिप की ओर से अपनी गलतियों को मानने की बजाय रैली दर रैली करके पंथ से जुड़े लोगों को और ठेस पहुंचाने से अकाली दल की टकसाली लीडरशिप भी उखड़ गई है। इससे शिअद नेतृत्व पर घेरा लगातार कसता जा रहा है ।
बगावत की ढींडसा ने की शुरुआत
सबसे पहले बगावत प्रकाश सिंह बादल के बाद सबसे सीनियर सुखदेव सिंह ढींडसा ने की। उन्होंने 7 अक्टूबर की रैली से एक हफ्ता पहले पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया। ढींडसा के बाद रंजीत सिंह ब्रहमपुरा, रतन सिंह अजनाला, सेवा सिंह सेखवां आदि ने भी बगावती सुर अपनाए। पंजाब विधानसभा चुनाव हारने के बाद से सुखदेव सिंह ढींडसा चाहते थे कि पार्टी नेताओं को अपनी गलतियों की श्री अकाल तख्त साहिब पर जाकर माफी मांगनी चाहिए।
दरबार साहिब जाने की थी तैयारी
सूत्रों के अनुसार, एक बार सारी लीडरशिप ने दरबार साहिब जाने की तैयारी भी कर ली थी, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। ढींडसा इससे आहत थे। दरअसल, डेरा सच्चा सौदा के समर्थकों की वोट लेने के लिए अपने कोर वोट बैंक की अवहेलना करना ही पार्टी को भारी पड़ रहा है। शहरी सिख पहले ही अकाली दल के साथ ज्यादा नहीं हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जत्थेदार अवतार सिंह मक्कड़ को एसजीपीसी के प्रधान पद से हटाने और उनकी मर्जी के बगैर डेरा प्रमुख को माफी देने से शहरी सिखों को तो पार्टी पहले ही मनाने में नाकामयाब हो रही है। इस पर अब दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान मनजीत सिंह की नाराजगी भी पार्टी को महंगी पड़ सकती है।