देहरादून, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आराध्य बाबा केदार को लेकर अब सियासत गर्मा गई है। कांग्रेस के नेता अब देवों के देव महादेव की शरण में पहुंच रहे हैं। पंजाब में प्रदेश संगठन और सरकार के बीच मचे घमासन के बीच अब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और अन्य दिग्गज केदारनाथ धाम के दर्शन को पहुंच रहे हैं। पंजाब में कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई को थामकर एकजुटता दिखाने की कोशिश के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। प्रधानमंत्री मोदी के दौर से पहले इन नेताओं के केदारनाथ दर्शन को राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की सियासत से जोड़कर देखा जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दीपावली के एक दिन बाद यानी पांच नवंबर को केदारनाथ के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। मोदी के दौरे को राष्ट्रीय स्तर पर संदेश के तौर पर देखा जा रहा है। भाजपा भी इस दौरान 12 ज्योतिर्लिंगों और शिवालयों में जलाभिषेक की तैयारी कर चुकी है। जाहिर है कि राष्ट्रीय राजनीति में मोदी की प्रतीकों की राजनीति हलचल पैदा कर चुकी है। कांग्रेस का इस मामले में अतिरिक्त सतर्कता बरतना यही संकेत दे रहा है। प्रदेश स्तर पर कांग्रेस पांच नवंबर को सभी जिलों के 12-12 प्रमुख शिवालयों में जलाभिषेक करने की घोषणा कर चुकी है।
अब कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर भी इसे लेकर गंभीरता दिखाई जा रही है। खास बात ये है कि बाबा केदार के माध्यम से राष्ट्रीय राजनीति में गर्माहट पंजाब के रास्ते महसूस की जा रही है। पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी और पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू, विधानसभा अध्यक्ष केपी राणा और पंजाब प्रभारी हरीश चौधरी केदार दर्शनों के लिए रवाना हो रहे हैं। इस बीच उन्होंने देहरादून में पंजाब कांग्रेस के पूर्व प्रभारी हरीश रावत से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की।
पंजाब के नेताओं के केदार दौरे की रणनीति के पीछे पूर्व प्रभारी हरीश रावत की रणनीति मानी जा रही है। कांग्रेस की इस यात्रा के माध्यम से एक तीर से कई निशाने साधने की मंशा है। पंजाब में कांग्रेस के भीतर असंतोष थामकर एकजुट होकर राष्ट्रीय स्तर पर संदेश तो दिया ही जा रहा है, साथ में मोदी को दाैरे से पहले विधानसभा चुनाव से पहले दोनों ही राज्यों पंजाब और उत्तराखंड के मतदाताओं को भी संदेश देने की कोशिश की जा रही है।
उत्तराखंड की राजनीति पर भी असर, त्रिवेंद्र का हो चुका विरोध
पंजाब के कांग्रेस नेताओं के केदार दौरे का असर उत्तराखंड की राजनीति में भी दिखना तय है। बीते रोज पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के केदारनाथ दौरे का स्थानीय तीर्थ-पुरोहितों और पंडा समाज ने मुखर विरोध किया था। इस वजह से त्रिवेंद्र को बाबा केदार के दर्शन से वंचित होना पड़ा था। देवस्थानम बोर्ड को लेकर पुरोहित और पंडा समाज में रोष है। कांग्रेस इस असंतोष के बहाने राज्य सरकार आैर प्रधानमंत्री मोदी को भी निशाने पर ले चुकी है।