पंजाब की प्रतिष्ठा अब ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय पहुंच गई है। विपरीत परिस्थितियों को मात देते हुए होशियारपुर की प्रतिष्ठा ने इंग्लैंड की ऑक्सफोर्ड यूनिवॢसटी में दाखिला पाया है। अपने अदम्य साहस के बल पर यह उपलब्धि हासिल करने वाली वह भारत की पहली दिव्यांग युवती बनी हैं। अब वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर डिग्री की पढ़ाई करेंगी। उनकी कक्षाएं सितंबर से शुरू होंगी। इस उपलब्धि के लिए मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वीडियो कॉल कर उनका हौसला भी बढ़ाया है। 21 वर्षीय प्रतिष्ठा का लक्ष्य आइएएस अधिकारी बनना है।
ऑक्सफोर्ड में दाखिला पाने वाली पहली दिव्यांग युवती बनीं हाेशियारपुर की प्रतिष्ठा
मुख्यमंत्री की शाबाशी ने उनमें और ज्यादा उत्साह भर दिया है। वह कहती हैं कि मुख्यमंत्री से बातचीत के बाद ट्विटर और इंस्टाग्राम पर मेरे और ज्यादा फालोअर बढ़ गए हैं। व्हीलचेयर के सहारे कामयाबी की मंजिल पर पहुंच रही प्रतिष्ठा समाज के लिए किसी नजीर से कम नहीं हैं। वह समाज के लिए दूसरों से कुछ हटकर करना चाहती हैं।
पांच वर्ष घर से बाहर तक निकल नहीं सकीं, जन्म से थीं ठीक, 13 साल की उम्र में हादसे में हो गईं दिव्यांग
प्रतिष्ठा बचपन से ही सिविल सेवा में जाना चाहती थीं। इसी बीच एक हादसे ने उम्मीदों को थोड़ा झटका जरूर दिया था, लेकिन हौसला टूटा नहीं था। 2011 में जब वह 13 साल की थी, तब चंडीगढ़ जाते समय कार दुर्घटना में घायल हो गई थीं। हादसे में रीढ़ की हड्डी पर काफी गहरी चोट लगने से छाती से नीचे का हिस्सा पैरालाइज हो गया था। वह तबसे लेकर अब तक व्हीलचेयर पर ही हैं। पांच वर्ष तक वह घर से बाहर नहीं जा सकीं। पूरी तरह से परिवार पर ही निर्भर थीं, लेकिन मेहनत का दामन नहीं छोड़ा। मेहनत रंग लाई और उन्होंने हाेशियारपुर के जेम्स कैंब्रिज स्कूल इंटरनेशनल स्कूल से बारहवीं कक्षा में टॉप किया।
पब्लिक पॉलिसी में मास्टर डिग्री की करेंगी पढ़ाई, सीएम अमरिंदर सिंह ने बढ़ाया हौसला
इसके बाद उन्होंने परिवार से दूर स्वतंत्र रहने का फैसला किया। उन्होंने निश्चय किया कि वह बिना किसी सहारे के अपना जीवन व्यतीत करेंगी और वह पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गईं। वह दिल्ली यूनिवर्सिटी के लेडी श्रीराम कॉलेज फॉर वूमेन से राजनीतिक शास्त्र में बीए. ऑनर्स कर रही हैं। विगत तीन वर्ष से वह अकेले ही रह रही हैं। प्रतिष्ठा के पिता मुनीष शर्मा होशियारपुर में ही स्पेशल ब्रांच में डीएसपी के पद पर तैनात हैं और माता अध्यापिका हैं। प्रतिष्ठा दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर भी काफी सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
आठ से दस किलोमीटर व्हीलचेयर से तय किए सफर
प्रतिष्ठा कहती हैं कि दिल्ली जाने का निर्णय बहुत जोखिम भरा था। मम्मी-पापा होशियारपुर में रहते हैं तो मैं दिल्ली में अकेले कैसे रह सकती हूं, यह एक बहुत बड़ा सवाल था। मैंने सोचा कि जिंदगी में कुछ करना है तो रिस्क लेना ही होगा। यही सोच कर मैं दिल्ली चली गई। वहां पर मुझे व्हीलचेयर के हिसाब से घर ढूंढने में पांच से छह महीने लग गए थे।
वह कहती हैं, कोई साधन न मिलने पर कई मैंने आठ से दस किलोमीटर का सफर व्हीलचेयर से ही तय किया। व्हीलचेयर लेकर बस से सफर करना मुमकिन नहीं है। ऐसे में कैब ही मात्र एक रास्ता होता था। मैं कई बार कैब वालों से आग्रह कर व्हीलचेयर पिछली सीट पर रखवाती और फिर सफर करती थी। दिल्ली में तीन वर्षों में खाना बनाना भी सीख लिया है।