भगवान विष्णु के दस अवतार बताए जाते हैं, जिनमें नौ का जन्म हो चुका है। दसवें का जन्म अभी बाकी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विष्णु के दसवें अवतार कल्कि होगें, जो कलयुग के अंत में सफेद घोड़े पर सवार होकर दुष्टों का संहार करेंगे। अभी तक विष्णु ने जितने भी अवतार लिए हैं, उसमें श्रीकृष्ण पूर्ण अवतार माने जाते हैं। उनमें किसी भी व्यक्ति में पाई जाने वाली सभी सोलह कलाएं थीं।
हर अवतार में कलाओें की अलग-अलग संख्याएं हैं। इसे जानने के लिए कलाओं को समझना जरूरी है। कलाएं वे गुण या अंश हैं, जिनसे जीवों की योग्यताएं तय होती हंै। मनुष्यों में आमतौर पर पांच कलाएं मानी गई हैं। श्रेष्ठ जनों में यह संख्या छह से आठ तक होती है। नौ से पंद्रह कलाओं वाले जीव को अंश अवतार कहा गया है। सोलह कलाओं से संपन्न जीव पूर्णावतार हैं। इसीलिए विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण सोलह कलाओं से संपन्न माने जाते हैं।
पौराणिक काल में जब जल-प्रलय से सृष्टि का अंत हो रहा था, तब आदि-पुरुष मनु की रक्षा के लिए विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया। मान्यता है कि इस लीला के जरिए भगवान ने मत्स्यावतार लेकर मनु को जल-प्रलय से बचाया और उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले गए। इसका उद्देश्य था कि सृष्टि का क्रम बढ़ सके था। मत्स्य अवतार के रूप में आदि-पुरुष एक कला से ही युक्त थे। कूर्म या कश्यप और वराह अवतार में भी एक ही कला मानी जाती है।
हिरण्यकश्यप को मारने के लिए विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया, तो वामन रूप धारण कर भक्त प्रह्लाद के पौत्र असुर राजा बलि से वरदान लेकर दो पग में आकाश से लेकर भूलोक तक नाप लिया। तीसरा कदम रखने के लिए कुछ नहीं बचा तो बलि ने अपना सिर उनके कदमों के आगे कर दिया। वचन की प्रतिबद्धता देखते हुए वामन अवतार ने बलि को पाताल का स्वामी बनाकर वहां भेज दिया। माना जाता है कि विष्णु ने बलि की धर्मनिष्ठा को पुरस्कृत करते हुए उन्हें अपने अध्यात्मलोक में जगह दी। विष्णु के ये दोनों अवतार दो कलाओं से संपन्न माने जाते हैं।
अपने फरसे से दुष्टों का संहार करने वाले परशुराम तीन कलाओं वाले अवतार माने जाते हैं। हालांकि मान्यता है कि मनुष्य के रूप में अवतार लेने के लिए कम से कम पांच कलाएं होनी चाहिए। इस स्थिति में वामन और परशुराम का दो व तीन कलाओं से युक्त होना आश्चर्यजनक है, लेकिन पुराणों में यही सू़चना है। सातवें अवतार राम में बारह कलाएं हैं। इसका एक कारण यह है कि राम सूर्यवंशी थे और सूर्य की 12 कलाएं मानी जाती हैं। यानी, राम में सूर्य की सभी कलाएं समाहित हैं।
विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण माने जाते हैं। एकमात्र वही ऐसे अवतार हैं, जिन्हें सोलह कलाओं से युक्त पूर्ण अवतार माना जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि कृष्ण चंद्रवंशी थे और इस कारण वे चंद्रमा की सभी सोलह कलाओं से संपन्न थे। बुद्ध और कल्कि को क्रम से नवां और दसवां अवतार माना जाता है। यद्यपि बुद्ध के अवतार रूप पर विद्वानों में मतभेद है। जहां तक कल्कि का प्रश्न है, तो उन्होंने अभी अवतार नहीं लिया है। शास्त्रों का मानना है कि वे श्वेत अश्व पर सवार होकर दुष्टों का संहार करने के लिए अवतरित होंगे।
अब कुछ बातें कलाओं के बारे में। पहले तो यह कि चंद्रमा की सोलह कलाएं मानी गई हैं। ‘योगचूड़ामणि’ के अनुसार सोलह कलाओं से युक्त व्यक्ति ईश्वर के समान होता है। कुमति, सुमति, विक्षित, मूढ़, क्षित, मूर्छित, जाग्रत, चैतन्य, अचेत आदि मन की स्थितियां होती हैं। कहा जाता है कि मन की इन स्थितियों का जो व्यक्ति बोध करने लगता है, वही कलाओं में गति कर सकता है। इन कलाओं के नाम ग्रंथों में अलग-अलग मिलते हैं।