
पितृ पक्ष में लोग पितरों को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय करते हैं. इस दौरान पांच जीवों को भोजन कराए बिना श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है.
आश्विन मास कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक 15 दिनों के लिए पितृगण अपने वंशजों के यहां धरती पर अवतरित होते हैं और आश्विन अमावस्या की शाम समस्त पितृगणों की वापसी उनके गंतव्य की ओर होने लगती है. इस अवधि को पितृ पक्ष कहा जाता है. इस दौरान पितरों की इच्छापूर्ति और उनका श्राद्ध कर पितृ दोष को दूर किया जा सकता है. हालांकि, इस दौरान पितर जानवरों, पक्षियों के माध्यम से हमारे निकट आते हैं और उनके माध्यम से भोजन ग्रहण करते हैं.
जीवों के माध्यम से पितर ग्रहण करते हैं भोजन
पितर जिन जीवों के माध्यम से आहार ग्रहण करते हैं, उनमें गाय, कुत्ता, कौवा और चींटी जीव शामिल हैं. ऐसे में श्राद्ध के समय बनाए जाने वाले भोजन में से एक हिस्सा इन जीवों के लिए रखा जाता है. इनको भोजन कराए बिना श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता है.
इन जीवों के लिए रखें हिस्सा
श्राद्ध के समय पितरों को अर्पित करने वाले भोजन में से गाय, कुत्ता, चींटी, कौवा और देवताओं के लिए हिस्सा रखा जाता है. इन पांचों हिस्सों को पञ्चबलि कहते हैं. चुने गए पांचों जीवों में से कुत्ता जल तत्व, चींटी अग्नि तत्व, कौवा वायु, गाय पृथ्वी और देवता आकाश तत्व के प्रतीक होते हैं.
होगा श्राद्ध कर्म पूरा
गाय, कुत्ता, चींटी और देवताओं के लिए पत्ते और कौवे के लिए भूमि पर भोजन के अंश रखे जाते हैं. हिंदू धर्म में गाय की काफी मान्यता है. इन जीवों में से केवल गाय ही ऐसी जीव है, जिसमें एक साथ पांच तत्व पाए जाते हैं. गाय को चारा खिलाने और सेवा करने से पितरों को तृप्ति मिल जाती है और श्राद्ध कर्म भी पूरा माना जाता है.
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