भारत 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की अच्छी खासी संख्या का लक्ष्य हासिल कर सकता है. फेम-2 योजना की सफलता और अन्य उपायों से 2030 तक देश में इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में अच्छी वृद्धि हो सकती है. नीति आयोग की एक रिपोर्ट में यह कहा गया है. ‘भारत में इलेक्ट्रिक वाहन रूपांतरण: अब तक की प्रगति और भविष्य की संभावनायें’ विषय से नीति आयोग और रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में कहा गया है कि दो पहिया वाहनों के मामले में इलेक्ट्रिक वाहनों की पहुंच 80 प्रतिशत जबकि निजी कारों के मामले में यह 30 प्रतिशत हो सकती है.
30 प्रतिशत 4 व्हीलर की बिक्री की संभावना
रिपोर्ट में यह बताया गया है कि फेम-2 योजना के तहत इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहन देने से कितनी मात्रा में तेल और कार्बन उत्सर्जन में कमी आ सकती है.
इसमें कहा गया है, ‘विश्लेषण के अनुसार अगर इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में फेम-2 तथा अन्य उपाय सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र में सफल होते हैं तो 2030 तक निजी कारों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री 30 प्रतिशत, वाणिज्यिक वाहनों के मामले में 70 प्रतिशत, बसों के संदर्भ में 40 प्रतिशत तथा दो एवं तीन पहिया वाहनों के मामले में 80 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहनों की पहुंच हो सकती है.’
आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि 2030 तक जितने इलेक्ट्रिक वाहन सड़कों पर होंगे उनके जरिये उन वाहनों के जीवलकाल तक संचयी रूप से जो तेल की बचत होगी और कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, वह फेम-2 से होने वाली प्रत्यक्ष बचत से कहीं ज्यादा होगी.
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84.6 करोड़ टन सीओ2 के उत्सर्जन में कमी आएगी
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘उदाहरण के लिये 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की बाजार हिस्सेदारी उक्त स्तर पर पहुंचने से गाड़ियों के पूरे जीवन काल के दौरान 84.6 करोड़ टन सीओ2 (कार्बन डाई आक्साइड) के उत्सर्जन में कमी आएगी.’ इसमें कहा गया है कि फेम-2 योजना के तहत पात्र वाहन अपने पूरे जीवन काल के दौरान तेल समतुल्य 54 लाख टन ईंधन की बचत करेंगे जिसका मूल्य करीब 17.2 हजार करोड़ रुपये बैठता है.
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