न्याय के देवता और दंडाधिकारी सूर्यदेव और माता छाया के पुत्र शनिदेव का प्रकटोत्सव वैशाख मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या पर 22 मई को मनाया जाएगा।
ज्योतिषचार्य गौरव उपाध्याय के अनुसार इस बार अमावस्या तिथि का शुभारंभ 21 मई को शाम 9 बजकर 21 मिनट से होगा तथा 22 मई की रात्रि 11 बजकर 8 मिनट तक रहेगी। इसलिए शनि अमावस्या 22 मई को मनाई जाएगी।
शनिदेव तुला राशि में उच्च एवं मेष राशि में नीच के हो जाते हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशियों के स्वामी हैं, शनि का रंग काला है, शनि की दिशा पश्चिम है।
ज्योतिषशास्त्र में शनि ग्रह को क्रूर माना जाता है। शनिदेव कुंडली के जिस भाव में बैठते हैं उसको बढ़ा देते हैं और जिस भाव पर दृष्टि डालते हैं उस भाव को कमजोर कर देते हैं।
11 मई को शनि के मकर राशि वक्री होने से बीमारियां बढ़ेंगी और आमजनों को पीड़ा का सामना करना पड़ेगा। वहीं 29 सितंबर 2020 को शनि मार्गी हो जाएंगे। शनिदेव अत्यंत धीमी गति से चलते हैं, इस कारण न्याय मिलने की गति भी धीमी रहती है।
शनिदेव के प्रभाव से मनुष्य को विभिन्न प्रकार के रोग हो सकते हैं। इनमें पक्षाघात, मिर्गी, कैंसर, बार-बार सर्जरी होना, हड्डियों में दर्द, कृमि रोग, वात रोग आदि होते हैं।
शनिदेव का मुख्य रत्न नीलम है, जबकि शनिदेव के उप रत्न है, जमुनिया,नीली, लाजवर्त, काला अफीक। शनिदेव का कोयला, नौकरियां, निर्माण कार्य आदि का प्रभाव रहता है।
शनिदेव एक राशि में ढाई साल तक रहते हैं, तथा सभी 12 राशियों में भ्रमण करने में उन्हें 30 साल का समय लगता है। एक मनुष्य के जीवनकाल में साढ़े साती के तीन चरण होते हैं, इनमें प्रथम चरण में चढ़ती साढ़े साती कहते हैं।
जबकि मध्य साढ़े साती का प्रभाव हृदय और शरीर के मध्य भाग पर रहता है। वहीं उतरती साढ़े साती का प्रभाव पैरों पर माना जाता है।