दुनिया के सबसे खतरानक स्कूल का रास्ता

एक तरफ जहाँ एजुकेशन का स्तर इतना बड़ा गया है कि स्कूलों में छात्रों की छोटी से छोटी समस्या का ख्याल रखा जाता है वहीँ  कुछ जगह ऐसी भी हैं जहाँ पर बच्चे को खतरनाक चट्टानें, सर्पीली पगडंडियां या फिर मुश्किल से नदी पार करना पड़ता है तब जाकर स्कूल पहुँच पाते हैं. कई देशों में हजारों गरीब बच्चे आज भी इसी तरह स्कूल जाते हैं. ग्रामीण इलाकों के इन बच्चों के पास और कोई विकल्प भी नहीं है.

चीन के शिचुआन प्रांत के अतुलेर गांव का एक स्कूल शायद दुनिया का सबसे खतरनाक स्कूल है. हर दिन बच्चों को बेहद कड़ी 800 मीटर की चढ़ाई चढ़ स्कूल जाना पड़ता है, वापसी में इसी रास्ते से नीचे भी उतरना पड़ता है.

स्कूल पहुंचने में बच्चों को करीब डेढ़ घंटा लगता है. पथरीली चट्टान में कुछ जगहों पर लकड़ी के तख्तों वाली सीढ़ी भी लगाई गई है. भीगने के बाद फिसलने वाली इस कामचलाऊ सीढ़ी से गिरकर कई लोगों की मौत हो चुकी है. अब आखिरकार शिचुआन की प्रांतीय सरकार ने स्टील की सीढ़ियां लगाने का वादा किया है.

अतुलेर का स्कूल अपवाद नहीं है. दक्षिणी चीन के गुआंशी प्रांत में भी बहुत से बच्चों को हर दिन दो घंटे पहाड़ी रास्ते पर चलकर स्कूल पहुंचना पड़ता है. नोग्योंग के इस पहाड़ी रास्ते में कोई रैलिंग वगैरह भी नहीं है

चीन के गुलु नेशनल जियोपार्क के पास बसे पहाड़ी गांव गुलु के बच्चे हर दिन ऐसे ही स्कूल जाते हैं. पहाड़ी पगडंडी वाला यह रास्ता कुछ जगहों पर दो फुट चौड़ा है. एक तरफ चट्टान है तो दूसरी तरफ गहरी खाई और वहां उफनती नदी.

ट्यूब का सहारा
टायर ट्यूब कितनी अहम होती है, इसका जबाव दुनिया भर में दूर दराज के इलाकों में बिना गाड़ियों के रहने वाले लोगों से पूछिये. फिलिपींस में बच्चे टायरट्यूब में हवा भरकर नदी पार करते हैं. बच्चे इस बात का भी ख्याल रखते हैं, उनकी यूनिफॉर्म गीली न हो.

इंडोनेशिया के ही लेबना हुंग जिले में कई बार आर पार जाने के लिए सिर्फ रस्सी बचती है. नदी पार स्कूल जाने के लिए रस्सी वाले जुगाड़ को पार करना ही पड़ता है. अब वहां पुल बनाया जा रहा है.

पानी के ऊपर

इंडोनेशिया के बोयोलाली के बच्चे हर दिन पेपे नदी के ऊपर संतुलन साधते हुए 30 मीटर नदी पार करते हैं. साइकिल हो तो और सावधानी से रास्ता पार करना पड़ता है.

तरह तरह के जुगाड़

फिलिपींस के एक पिछड़े गांव में बच्चे बांस की जुगाड़ु नाव के सहारे रिजाल नदी पारकर स्कूल जाते हैं. ये हाल सिर्फ यहीं का नहीं है, देश के दूसरे पिछड़े इलाकों में भी हालात ऐसे ही हैं.

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